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Reading: आखिर रोहतास जिले में क्यों हुआ एनडीए का बंटाधार!
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KB News > समाचार > क्षेत्रीय > आखिर रोहतास जिले में क्यों हुआ एनडीए का बंटाधार!
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आखिर रोहतास जिले में क्यों हुआ एनडीए का बंटाधार!

GOVINDA MISHRA
Last updated: 2020/11/19 at 8:07 AM
GOVINDA MISHRA  - Founder Published November 19, 2020
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बिहार में पहली चुनावी सभा के दौरान पीएम नरेंद्र मोदी के साथ नीतीश कुमार. फोटो: जय प्रकाश मौर्य
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गोविंदा मिश्रा

शाहाबाद और मगध क्षेत्र में इस बार के चुनाव में बीजेपी और जेडीयू की मुंह की खानी पड़ी। पीएम मोदी ने अपनी चुनावी सभा की शुरुआत रोहतास जिले के डेहरी विधानसभा से की थी। लेकिन पीएम के चुनावी सभा के बावजूद एनडीए के सभी प्रत्याशी चुनाव हार गए। बीजेपी के नेतृत्व ने कई बार साफ तौर पर कहा कि एलजेपी के उम्मीदवारों से बीजेपी या गठबंधन से किसी भी तरह का सरोकार नहीं है। इस बात को धरातल पर लाने के लिए और बीजेपी ने अपने बागियों पर नियंत्रण रखने का हर तरीके से प्रयास किया। रोहतास जिले में बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा, प्रदेश अध्यक्ष संजय जायसवाल और जेडीयू के आरसीपी सिंह की मौजूदगी में स्थानीय इकाइयों से इस संबंध में बातचीत औऱ विमर्श कर ऐसी हर समस्या को सुलझाने का प्रयास किया गया। इसके बावजूद रोहतास जिले की चार सीटों पर सीधे तौर पर एलजेपी उम्मीदवार के कारण जेडीयू को हार का सामना करना पड़ा। जिसमें पहली सीट दिनारा की रही। दूसरी सीट सासाराम और तीसरी सीट चेनारी और चौथी सीट करगहर की रही। इसके अलावा नोखा में भी कुछ हद तक एलजेपी के कारण मतों का बंदरबाट हुआ है।

डेहरी से आरजेडी का दांव हुआ कामयाब
आज विधानसभा वार इस इलाके की हर सीट पर एक बार बात कर लेते हैं। शुरुआत रोहतास जिले की डेहरी सीट से कर रहे हैं। डेहरी विधानसभा सीट पर इस बार आरजेडी की टिकट पर फतेह बहादूर सिंह ने जीत हासिल की है। फतेह बहादुर सिंह ने बीजेपी के सत्यनारायण यादव को 500 से कम मतों से मात दी। बीजेपी का आजादी के बाद पहली बार इस सीट से खाता पिछले साल हुए उपचुनाव के दौरान खुला था। मई 2019 में हुए चुनाव के दौरान बीजेपी के उम्मीदवार को लगभग 72000 मत मिले। जबकि उनके खिलाफ आरजेडी से चुनाव लड़ रहे फिरोज हुसैन को 38 हजार मत मिले थे। अब जानने का प्रयास कर रहे हैं कि आखिर बीजेपी के उम्मीदवार की इस सीट से क्यों हार हुई। डेहरी विधानसभा सीट से आरजेडी ने कुशवाहा जाति से उम्मीदवार को मैदान में उतारा था। आरजेडी की रणनीति संभवत यादव और मुस्लिम मतों में कुशवाहा जाति के मत जुड़ने पर उम्मीदवार के जीतने की थी। चुनाव परिणाम से यह माना जा रहा है कि आरजेडी नेतृत्व की यह रणनीति सफल रही। फतेह बहादुर सिंह और सत्यनारायण यादव के कड़ी टक्कर हुई। और 500 से कम मतों से बीजेपी उम्मीदवार चुनाव हार गए। बीजेपी उम्मीदवार के पक्ष में बीजेपी के कैडर वोटरों के अलावा समाज के हर वर्ग और साइलेंट वोटर खड़े दिखे। जबकि यादव, कुशवाहा और मुस्लिम मतदाता ने एकतरफा आरजेडी का साथ दिया। यादव मतों में सेंधमारी का बीजेपी का प्रयास सफल होता नहीं दिखा।

माले से गठबंधन को मिला फायदा

अब बात करते हैं दूसरी सीट काराकाट की। रोहतास जिले की काराकाट सीट से बीजेपी के उम्मीदवार राजेश्वर राज चुनाव लड़ रहे थे। जबकि उनके खिलाफ महागठबंधन के उम्मीदवार के तौर पर सीपीआई एमएल के अरुण कुमार खड़े थे। यहां से माले के अरुण कुमार चुनावी जीत हासिल किए। कुशवाहा जाति से आने वाले अरुण कुमार का समाज के नीचले तबके में काफी प्रभाव है। वो यहां से पहले भी विधायक रह चुके हैं। माना जा रहा है कि माले के कैडर वोटरों के अलावा यादव और मुस्लिम मतदाताओं ने अरुण कुमार का साथ दिया। इस कारण उनकी चुनावी जीत पक्की हो सकी। अरुण कुमार ने 17819 मतों से बीजेपी के राजेश्वर राज को चुनावी मात दी।

दिनारा में चला राजेंद्र सिंह का जादू

तीसरी और बिहार में सबसे ज्यादा चर्चा में रहने वाली महत्वपूर्ण सीट दिनारा की चर्चा कर लेते हैं। दिनारा में इस बार के चुनाव में राजेंद्र सिंह की हवा ऐसी बही की जेडीयू के उम्मीदवार और नीतीश सरकार में मंत्री रहे जय कुमार सिंह तीसरे नंबर पर चले गए। एलजेपी की टिकट पर चुनाव लड़ने वाले राजेंद्र सिंह इस बार आरजेडी के विजय कुमार मंडल से 8516 मतों से चुनाव हार गए। इस सीट पर जेडीयू और एलजेपी के उम्मीदवार के वोटों को जोड़ा जाए तो ये संख्या 78565 हो जाती है। एलजेपी यहां से सीट की हार के लिए सीधे तौर पर जिम्मेदार बताई जा सकती है।

सासाराम में बागी और वैश्य उम्मीदवार बने हार का कारण

रोहतास जिले की एक अन्य महत्वपूर्ण सीट सासाराम की थी। यहां से बीजेपी के बागी रामेश्वर चौरसिया एलजेपी से चुनाव लड़ रहे थे। आरजेडी ने उनकी पार्टी से पिछले बार विधायक रहे अशोक कुशवाहा के जेडीयू में शामिल होने के बाद वैश्य उम्मीदवार संजय गुप्ता को मैदान में उतारा। अशोक कुशवाहा और जेडीयू नेतृत्व ने इस सीट से चुनावी जीत पक्की करने का लाख प्रयास किया। चुनाव में एलजेपी का फैक्टर भी काम आया। यहां से रामेश्वर चौरसिया को 21426 मत मिले। जबकि दूसरे नंबर पर रहे जेडीयू उम्मीदवार को 56880 मत मिले। जबकि विजेता उम्मीदवार राजेश कुमार गुप्ता को 83303 मत मिले। जेडीयू और एलजेपी के उम्मीदवारों के मतों को जोड़ने पर यह 78,306 आंकड़ा माना जा सकता है कि इस सीट पर हार का कारण एलजेपी रही। एक अन्य कारण वैश्य उम्मीदवार का होना भी रहा। इसके अलावा बीजेपी कार्यकर्ताओं में नाराजगी को भी इसका कारण माना जा रहा।

एलजेपी चेनारी सीट पर हार का एक कारण

अब बात करते हैं चेनारी सुरक्षित सीट की। चेनारी सीट से जेडीयू की टिकट पर ललन पासवान मैदान में थे। 2015 क चुनाव में ललन पासवान आरएलएसपी की टिकट पर यहां से विधायक चुने गए थे। बात में वो उपेंद्र कुशवाहा का साथ छोड़कर जेडीयू में शामिल हो गए। इस बार ललन पासवान को पूर्व विधायक और कांग्रेस के उम्मीदवार मुरारी प्रसाद गौतम ने चुनावी मैदान में मात दी। मुरारी गौतम को 71701 मत मिले। उन्होंने जेडीयू के ललन पासवान को 18003 मतों से हराया। यहां पर एलजेपी के टिकट पर चुनाव लड़ रहे चंद्रशेखर पासवान को 18074 मत मिले। इस सीट पर एलजेपी ने जेडीयू उम्मीदवार का काफी नुकसान किया। जेडीयू उम्मीदवार और एलजेपी उम्मीदवार के मतों को जोडने पर ये आंकड़ा 71772 पहुंच जाता है।

करगहर में ब्राह्मण वोटों में कांग्रेस ने लगाई सेंध, एलजेपी ने भी किया नुकसान

रोहतास जिले की एक अन्य महत्वपूर्ण सीट करगहर की थी। इस सीट से कांग्रेस के उम्मीदवार संतोष मिश्रा चुनाव जीतने में कामयाब हुए। 2020 के विधानसभा चुनाव में जेडीयू उम्मीदवार और 2015 में विधायक चुने गए वशिष्ठ सिंह 4083 मतों से चुनाव हार गए। इस सीट से एलजेपी उम्मीदवार राकेश कुमार सिंह 16907 मत पाने में कामयाब हुए। अगर जेडीयू और एलजेपी के उम्मीदवारों के मतों को जोड़ते हैं तो यह कुल मतों का 72668 पहुंच जाता है। जबकि विजेता उम्मीदवार को 59763 मत मिला है। इस सीट पर बहुजन समाज पार्टी के उम्मीदवार उदय प्रताप सिंह का काफी अच्छा प्रदर्शन रहा है। उन्हें कुल 47321 मिले। करगहर विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस की चुनावी जीत का कारण ब्राह्मण मतों में कांग्रेस की सेंधमारी और यादव और मुस्लिम मतों का साथ माना जा रहा है।

नोखा में एलजेपी और आरएलएसपी बनी हार का कारण

जिले की एक अन्य सीट नोखा में आरजेडी की प्रत्याशी अनीता देवी ने चुनावी जीत हासिल की। इस सीट पर जेडीयू के उम्मीदवार के तौर पर नागेंद्र चंद्रवंशी चुनावी मैदान में थे। नोखा सीट पर बीजेपी के उम्मीदवार रामेश्वर चौरसिया चार बार विधायक रह चुके हैं। लेकिन सीट बंटवारे में यह सीट जेडीयू के खाते में चली गई। यहां से जेडीयू के उम्मीदवार नागेंद्र चंद्रवंशी को 48018 मत मिले। जबकि लोक जनशक्ति पार्टी के उम्मीदवार कृष्ण कबीर को 12313 मत मिले। आरजेडी की विजेता उम्मीदवार अनीता देवी को 65690 मत मिले थे। अगर हम जेडीयू और एलजेपी के मतों को जोड़ते हैं तो यह आंकड़ा 60330 पहुंच जाता है। माना जा रहा है कि एलजेपी के कारण यहां वोट बंटे हैं। इस सीट पर आरएलएसपी के उम्मीदवार को भी 10275 मत मिले हैं। राजपूत जाति से आने वाले अखिलेश्वर सिंह ने संभवत बीजेपी के कोर वोटों में भी कुछ हद तक सेंधमारी की है।

(चुनाव पर यह विशेष टिप्पणी खबरचीबंदर के मैनेजिंग एडिटर ने लिखी है. ये उनका व्यक्तिगत विचार है.)

GOVINDA MISHRA

Proud IIMCIAN. Exploring World through Opinions, News & Views. Interested in Politics, International Relation & Diplomacy.

TAGGED: Bihar assembly election 2020, BJP, ljp, Nda, RJD, Rohtas Latest News, rohtas news
GOVINDA MISHRA November 19, 2020 November 19, 2020
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