नई दिल्ली। साउथ दिल्ली (South Delhi) का एक इलाका। शनिवार का दिन और रात के 8 बजने को थे। देश के अलावा दिल्ली की धड़कन भी उन दिनों थम सी गई थी। लॉकडाउन (Lockdown) के कारण ज्यादातर लोग अपने घरों में रहने को मजबूर और सड़क पर निकलने के बाद एक सूनापन साफ देखने को मिलता। लेकिन इन सब के बीच मीडिया में एक बात पर लगातार चर्चा होती रही और वो है यहां रहने वाले उन लोगों के भूखे रहने की। जो अपने गुजारे के लिए यहां आते हैं। इनमें वैसे लोग भी शामिल हैं, जो फुटपाथ पर रहकर अपना जीवन गुजारते थे। लेकिन दिल्ली वाकई दिलवालों की है। ये बात कई बार दिख जाती। दरसअल, ऐसे कई लोग हैं जो बिना किसी नाम की कामना के फुटपाथ पर रहने वाले इन गरीबों तक खाना पहुंचाते रहे। कोरोना संकट के कारण लागू लॉकडाउन में हमारी मुलाकात एयर इंडिया में कार्यरत अविनाश नामक एक व्यक्ति से हुई। अविनाश आईआईटी फ्लाइओवर के नीचे रहने वाले गरीबों तक खाने का सामान पहुंचा रहे थे। इस दौरान एक और व्यक्ति वहां स्कूटी से पहुंचा जिसने इन लोगों को खाने की पैकेट्स दिए। सड़क की दूसरी ओर फूल बेचकर अपना गुजारा करने वाले राजस्थान के रहने वाले इन बंजारों के पास भी हर दिन कोई ना कोई खाने का सामान पहुंचाता रहा। जब हमने इन लोगों से इस बाबत पूछा तो उनका कहना था कि उन्हें किसी भी तरह की दिक्कत नहीं है।
साथ देने में नहीं था कोई भी पीछे
दरअसल, दिल्ली में केजरीवाल सरकार, दिल्ली पुलिस के अलावा कई एनजीओ भी इस काम में लगे हुए थे। इसके अलावा आप पास रहने वाले लोग भी अपने घरों से खाने के पैकेट्स या सामान पहुंचाते रहे। मेरा अनुमान था कि सोशल मीडिया पर की गई अपील का आम लोगों पर काफी असर हुआ। इसके अलावा रास्ते में बने बैरिकेट्स पर नियुक्त पुलिसकर्मी भी खाने के पैकेट्स बांटते दिखते रहे।
नहीं सुनाई दे रहा सड़को पर शोर, माहौल में शांति और चुप्पी बरकरार
वैसे इन दिनों बस की शोर और हर दिन सबेरे से देर रात हौजखास ले जाने के लिए इंतजार करने वाले ऑटो वालों की आवाज सुनने को नहीं मिल रही थी। माहौल में शांति और चुप्पी बरकरार रही। शहीद जीत सिंह मार्ग नाम वाले इस सड़क की एक ओर घनी आबादी और दूसरी तरफ बड़े बड़े संस्थानों के मुख्यालय हैं। इस इलाके के पास प्रतिष्ठित संस्थान आईआईटी, जेएनयू भी था। ये सड़क मुख्य तौर पर वसंत कुंज और सराय नाम वाले ज्यादातर इलाकों को श्री अरविंद मार्ग से जोड़ती है।
सुनी सड़क पर पर मुश्किल से दिख रहे लोग
इस 2 किलोमीटर की लंबी सड़क पर शाम को भी पैदल चलने वालों की संख्या 15-20 के करीब दिख रही है। सड़क की दूसरी ओर संस्थानों के गेट की तरफ सुरक्षा अधिकारी और गार्डस दिख रहे थे। अधचीनी मोड़ के पास महरौली और एम्स आने जाने वाले वाहनों की बड़ी कतार नजर आई। इस दौरान पुलिस वाले बीच बीच में उनके आईडी की जांच करते और कभी कभी पूछताछ करते दिखें। इस बीच एक मोटरसाइलिकल पर 3 लोग सवार दिखें, जिन्ंहें एक पुलिसकर्मी ने रोक लिया। उसके बाद इन तीनों की कड़ाई से डांट-डपट भी शुरू की।
पुलिसवाले का सुना नपातुला जवाब
सड़क की दूसरी ओर एक बड़े जनरल स्टोर के बाहर कई कार खड़े दिख रहे थे। यहां सोशल डिस्टेंशिंग का पालन लोग कर रहे थे। इस दौरान मैंने वहां मौजूद ट्रैफिक पुलिसकर्मी से बातचीत शुरू की। इस ट्रैफिक पुलिसकर्मी ने बताया कि फिलहाल 8 घंटे की उनकी शिफ्ट है और कोरोना से बचने के लिए वो जरूरी नियमों का पालन कर रहे हैं। लौटते वक्त दिल्ली पुलिस के एक जवान से बातचीत करने की कोशिश की। वहां पर खाने के 10-12 पैकेट्स दिखे। पुछा – खाना बांटने के लिए रखें हैं? पुलिसिया तेवर में इस जवान का नपातुला जवाब सुन मैं अपने रास्ते की ओर निकल पड़ा। इस दौरान एक और व्यक्ति से मुलाकात हुई जो पंचकुला में एक बैंक से अपनी सैलरी निकाल कर वापस लौट रहा था।
कोरोना संकट के दौरान मई महीने में हम अपने कमरों में कैद रहें। इस दौरान लगातार राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली और एनसीआर के कई इलाको में कोरोना संक्रमित मरीजों की संख्या बढ़ने की खबर मिलती रही। लॉकडाउन के कारण केवल उन्हीं लोगों को आवाजही की अनुमति मिली थी, जो आवश्यक सेवाओं से जुड़े हुए हैं।