गोविंदा मिश्रा/विनय कुमार पाठक, रोहतासगढ़ किला से वापस लौटकर.
किस्सों औऱ कहानियों के बीच इस साल के पहले दिन डेहरी-ऑन-सोन से पत्रकार मित्र अनिल और डेहरी के आचार्य विनय बाबा के साथ लगभग 75 किलोमीटर की दूरी तय कर रोहतासगढ़ किला पहुंचना वाकई सुकुन से भर देता है. इरादा पिकनिक मनाने का नहीं होकर एक सामाजिक सरोकार से जुड़े कार्य में भाग लेना था. डेहरी से भरी दोपहरी हालाकि जाड़े के इस मौसम में भरी दोपहरी शब्द रखना लाजमी नही है फिर भी कनकनी भरे ठंढ़ के बीच इस यात्रा की शुरुआत हुई. रोहतास बाजार या अकबरपुर बाजार में अपने प्रिय दारानगर के विनय कुमार पाठक का साथ मिला.
रोहतास पहुंचने के बाद मार्ग बताने वाले बड़े साइन बोर्ड पर दिखा रोहतासगढ़ किला 35 किलोमीटर. कोड़ियारी से शुरू होने वाली धनसा घाटी जिसका नाम मन स्मृति के पटल पर अखबारों की कतरनों को पढ़ने के कारण हमेशा रहा वहीं किनारे के शुरू हुई रोहतासगढ़ किले की रोमांचक यात्रा. दुर्गम घाटी के चढ़ाई शुरू करने के ठीक पहले रास्ते में एक गांव में चाय नाश्ता करने के बाद हम सभी घटवार बाबा के पास चार पहिया वाहन में हिचकोले खाते पहुंचे जहां पर कंबल वितरण के बाद आगे की यात्रा का सिलसिला जारी रहा.
किले तक पहुंचने के दौरान गाड़ियों की लंबी कतार यह साफ संकेत झलका रहा था कि यहां पर लोगों को घूमने ही नही जंगल पहाड़ के वादियों में रोमांचक यात्रा के लिए भी आना काफी पसंद आ रहा है.मोबाइल व नेटवर्क के इस युग मे समझ में आ रहा था कि शाहाबाद महोत्सव और सोशल मीडिया पर चलने वाली वीडियो और खबरों का युवा वर्ग पर काफी प्रभाव पड़ा है.
किला के प्रांगण में स्थित घुड़साल गेट के बाहर बना होटल और चाय दुकान यह बता रहा हैं कि हां आपका रोहतासगढ़ किला स्वागत कर रहा है. लेकिन यह किला अपने गौरवशाली कालजयी गाथा को समेटे बेबसी के आंसू रो रहा है. किले की जीर्ण शीर्ण अवस्था यह कह रहा कि जीर्णोद्धार की आवश्यकता है और स्थानीय लोगों की शिकायत है कि छोटे स्तर पर भी मरम्मती का कोई कार्य यहां वर्षो से नही हुई है ।
किला के आस पास बसे गांव के निवासी कहते है कि एएसआई भी इसके लिए किसी भी तरह की पहल नहीं कर रही है. रोपवे निर्माण की पहल में देरी के सवालों का जवाब शायद किसी भी राजनीतिक दल के नेताओं का पास न हो. मलाल यह है कि जगजीवन राम और मीरा कुमार जैसे राजनीतिक दल के कद्दावर नेता भी इसके लिए कुछ खास नहीं कर सके. जनप्रतिनिधियों से स्थानीय लोगों को नाउम्मीदी ही हासिल हुई है.
विरासत में मिले धरोहर को सहेजने में दिखती है विफलता
रोहतागढ़ किला, चौरासन मंदिर और गणेश मंदिर की वर्तमान स्थिति स्प्ष्ट संकेत कर रहा है कि इसको सहेजने की कोई भी कामयाब कोशिश नहीं की गई है. शेरशाह सूरी ने जिस किले की प्रतिकृति वर्तमान पाकिस्तान में बनवाई वो विश्व धरोहर के मानचित्र में शामिल है. जबकि वास्तविक मूल किला तक पहुंचने में जंगल पहाड़ के रास्ते ही नही, दुर्गम घाटी पर करीब दो हजार फीट चढ़ाई को तय करना पड़ता है।दुर्गम घाटियों की चढ़ाई दर्शा रहा है कि सत्ता के गलियारे में बैठे लोग वाकई अपनी दुनिया में व्यस्त हैं और पुरखो दर पुरखो के विरासत जो धरोहर के रूप में है उसके कालजयी वास्तविकता से उनका कोई वास्ता नहीं है।
साल 1796 में रोहतासगढ़ किले के बाहरी प्रांगण में स्थित गणेश मंदिर की पेंटिंग थौमस डेनियल ने बनाई थी. जिससे साफ समझ में आता है कि उन दिनों यह मंदिर पुजा पाठ के लिए महत्वपूर्ण होता था. लेकिन वो केवल इतिहास ही रह गया. एएसआई के अधीन यह ऐतिहासिक धरोहर आज भी उपेक्षित दिखती है.