-गोविंदा मिश्रा
बिहार के जिस इलाके का मैं रहना वाला हूं वहां शराब भी बंद है और किसी भी तरह का अवैध कारोबार नहीं हो रहा। यह दावा केवल पुलिस और प्रशासन का है। सच्चाई इससे काफी दूर है। नीतीश कुमार की सरकार की शराबबंदी योजना का खामियाजा समाज को अलग तरीके से भुगतना पड़ रहा है। अवैध धंधे ने आपराधिक तत्वों का जमावड़ा हर शहर के खड़ा कर रखा है। शराब की होम डिलेवरी होती है या नहीं इसका मुझे नहीं पता। क्योंकि देश की राजधानी से निकलने के पहले ही इससे दूरी बना चुका।
अपने परिचितों और परिवार के लोगों को फाइनेंस कराकर बाइक खरीदते देख रहा हूं। लेकिन शहरों के गल्ली मुहल्लों में युवाओं को एक लाख रुपए से ज्यादा के कीमत वाली बाइक खरीद धमाचौकड़ी मचाते देखता हूं तो दाल में कुछ काला नजर आता है। बेतरतीब दिन रात पेट्रोल जलाने वाले कम उम्र के लोगों के पास पैसे कहां से आ रहा है इसका कोई भी जवाब नहीं मिलता।
सच में हालत बदतर है
वाकई बिहार की आर्थिक हालत काफी बदतर है। आर्थिक तौर पर समपन्नता मुख्य रूप से चार वर्गों में नजर आ रही है। जिसमें डॉक्टर, बड़े ठेकेदार, अधिकारी और राजनेता शामिल हैं। अन्यको इसका कोई विशेष लाभ नहीं मिलता। 3-4 हजार रुपए में लोग दुकानों में 12 घंटे की ड्यूटी कर रहे हैं तो 5-7 हजार रुपए स्कूलों और कॉलेजों में काम के बदले दिया जा रहा है।
सोन के बालू ने बर्बाद की सैंकड़ों जिंदगी
सोनभद्र नद जब अमरकंटक से निकलती है तो बिहार, यूपी और मध्य प्रदेश के हजारों एकड़ की खेतों को अमरत्व देने का काम करती है। हमारे इलाके को पहले करूष प्रदेश के नाम से जाना जाता था। जो एक समय में दस्यूओं के एकाधिकार में रथा। पूरे शाहाबाद और मगध इलाके में सोन के बालू ने सैंकड़ों युवाओं के जीवन को बर्बाद कर दिया है। रंगदारी, हत्या और अन्य आपराधिक घटनाएं बढ़ी है। सोन के अवैध बालू के धंधे ने सैंकड़ों युवाओं को गर्त में ढकेलने का काम किया है।
कभी कभी देर रात में औरंगाबाद से अपने होम टाउन लौटने के क्रम में बालू की गाड़ियों को देखता हूं। बारूण थाना क्षेत्र में खुली आवाजाही नजर आती है तो डेहरी में एंट्री के बाद सोन पुल पर पुलिस जीप के जाने का इंतजार करते ट्रैक्टर वाले दिखते हैं। लाईनर शायद किनारे खड़ा हो….
(लेखक केबी न्यूज के फाउंडर हैं और यह उनके निजी विचार है।)