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Reading: स्वतंत्रता आंदोलन में हवलदार त्रिपाठी सहृदय जी का योगदान
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विचारसाहित्य

स्वतंत्रता आंदोलन में हवलदार त्रिपाठी सहृदय जी का योगदान

GOVINDA MISHRA
Last updated: 2022/08/16 at 6:14 PM
GOVINDA MISHRA  - Founder Published August 16, 2022
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स्वर्गीय आचार्य हवलदार त्रिपाठी जी का जन्म परतंत्र भारत में हुआ था। जिन दिनों गरीबी जन-जन में ब्यपरथ और भोजन तक लोगों के लाले पड़े थे। उन्होंने खरभुरा संस्कृत महाविद्यालय से जीवन- यापन के लिए साहित्य आचार्य की उपाधि प्राप्त की थी लेकिन कहीं काम करने को शुभ अवसर नहीं मिला। ऐसे समय में जो भी काम हो सकते थे साहित्य का कार्य और स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ना सहृदय जी हवलदार जी का साहित्यिक उपनाम था। वे शुरू शुरू में कविता भी करते थे और उनकी कविताओ का संग्रह शशि दर्शन के नाम से प्रकाशित भी हुआ था। अतः साहित्यिक कालक्षेप के लिए उन्होंने लहेरियासराय में बालक मासिक का संपादन विभाग में भी कुछ दिनों तक काम किया। स्वतंत्रता की हवा ऐसी वही की कोई भी भारतीय अपने को उससे अलग नहीं रख सकता था। सहृदय जी भी शरीर से मन से और बुद्धि से जीवन के प्रारंभ से लेकर अंत तक स्वतंत्रता के पुजारी रहे थे। अतः उन्होंने अपने क्षेत्रीय स्तर से तक सारे काम किए थे जिससे उनका स्वतंत्रता सेनानी का जीवन प्रतिभात होता है । साहित्य के क्षेत्र में भी उन्होंने काम किया तथा राष्ट्र के लिए भी उनका जीवन पूर्ण समर्पित था।

उनका देश प्रेम उनकी रचना में व्याप्त हैं तथा राष्ट्रीय जीवन के प्रकर्षक को उन्होंने बहुत तरह से बहुत विधाओं के माध्यम से प्रगट किया है। कहा जाता है कि वे अपने क्षेत्र के एरिया कमांडर के पद पर छिपे छिपे काम करते थे और क्षेत्रीय संगठन को मजबूत बनाने के लिए उन्होंने अनेक स्तर पर कार्य किया। आज से 70-80 वर्ष पूर्व उनके गांव मानिक परासी , सातों परासिया, काराकाट से लेकर डुमराव डुमराव तक वनाच्छादित था और उस में छिपे रहकर अंग्रेजों के विरुद्ध छापामारी कला के अनुसार उन्होंने आंतरिक मुंह भी गाना था। वे जीवन भर राजनीतिक दृष्टि से अत्यंत सक्रिय रहे और कांग्रेस की विमुख होकर समाजवादी संगठन से लग गए। डॉक्टर लोहिया, जयप्रकाश आदि कई राष्ट्रीय स्तर के नेताओं से उनका व्यक्तिगत संबंध था और वे सक्रिय रूप से उन संगठनों के साथ थे। कई समाजवादी अधिवेशन में उन्होंने शिरकत थी और संगठन को बहुत मदद की थी।

उनका समाजवादी सोच साहित्य में भी प्रखरता से प्रगट हुआ था। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद वे राष्ट्रभाषा परिषद पटना प्रकाशनाधिकारी के रूप में काम करने लगे। वह राज्य भर के तथा राज्य के बाहर के संत साहित्यकार से साहित्य लेखन में सहायता मिलने लगी और वे लेखन में भी प्रवृत्त हुए जो देश के प्रति प्रेम था वह साहित्य के क्षेत्र में विविध प्रकार से प्रगट हुआ आचार्य शहीदे जी ने बिहार को चुना बिहार के साहित्यकार बिहार के तीर्थ स्थल बिहार की नदियां बिहार के धर्म संप्रदाय उनकी भोजपुरी भाषा और उनकी खूबियों के प्रति चरम आकृष्ट हुए। सर्वप्रथम उन्होंने बौद्ध धर्म और बिहार पर कार्य करना शुरू किया इनकी शुरुआत एक निबंध से हुई थी और उनका अंत लगभग 1000 पृष्ठों में भी नहीं आमा सका । यही उनका पहला ग्रंथ था। जिससे गौतम बुध की बचपन से लेकर निर्वाण प्राप्ति तक की घटनाओं का उल्लेख किया गया था। शहीदी जी ने उस काल की सभी नदियों पहाड़ों गुफाओं राजाओं की शासन और उनकी अधीनस्थ सभी उल्लेख स्थानों का जिक्र किया और उनकी महत्वपूर्ण उपयोगिता पर प्रकाश डाला। उस काल के जिन स्थानों में अशोक के शिलालेखों के उनकी भी व्याख्या की तथा बौद्ध धर्म के विस्तार में उनके विविध राजवंशों की योगदान का उल्लेख किया।

उस काल चैतनय ने बिहार, जिन स्थानों पर गौतम बुध विश्राम किए थे कौन-कौन लोग उनसे मिलने गए थे उनकी उपदेश से कितने लोग प्रभावित हुए थे किन् नर्तकियों ने गौतम बुध से प्रभाव ग्रहण कर अपने सात्विक मनुष्य जीवन को पहचाना और किन नदियों के तट पर गौतम बुद्ध ने कितने काल तक विश्राम किया इन सब का प्रमाणिक विवेचन उस ग्रंथ में हुआ है।बौद्ध धर्म और बिहार जैसे ग्रंथ रत्न में कुछ भी छूटा नहीं है। जिसके विषय में चर्चा नहीं की गई हो। गौतम बुध के समय में जो अन्य धर्मावलंबियों से बुध की चर्चा बौद्ध धर्म को लेकर हुई थी उनका भी संपूर्ण विवेचन उस पुस्तक में हुआ है इस प्रकार प्रथम प्रकाशन में ही सहृदय जी को बहुत बड़ा गौरव मिला और उन्होंने प्राचीन बिहार से संबंधित अर्थात आज से ढाई हजार वर्ष पहले कि बिहार को अपनी लेखनी से गौरवान्वित किया इससे राजनीतिक, सांस्कृतिक, सामाजिक ,शैक्षणिक कोई भी पहलू बाकी नहीं रह गए थे । जिनके विषय में सहृदय जी ने विचार नहीं किया हो। इस प्रकार अभूतपूर्व ग्रंथ पूरे बौद्ध धर्म के चर्चा के साथ सांगो-पांग रूप से प्रथम बार प्रगट हुआ और वह सी पुस्तक फिर दूसरी बार नहीं लिखी गई ना इसमें जोड़ने की जरूरत और ना कुछ घटाने की यह अपने आप में संपूर्ण पुस्तक थी दूसरी पुस्तक जो तीन भागों में अनूदित है वह है बिहार की नदियां इसमें भी बिहार को ही प्रमुख स्थान दिया गया है।

यद्यपि ये नदिया बिहार की बाहर से आती है लेकिन यहां से बिहार में उनकी धारा प्रकट होती है। सहृदय जी ने उनका सांस्कृतिक मूल्यों को भाषा विज्ञान के धरातल पर अंकित किया है। नदियों के ऊपर बहुत से ग्रंथ लिखे गए होंगे किंतु बिहार की नदियां बड़े आकार में छपी है इसके तीन भाग हैं और तीनों में विस्तार के साथ उनका पौराणिक महत्व बताते हुए इन स्थानों से होकर वे गई है उनका पूरा जनता के साथ उनका महत्व , महात्य वर्णन भी किया गया है। यह नदिया पूरा काल से बहती हुई कहीं पर अपना परिचय छोड़ती हुई कहीं नया रूप बनाती हुई मैदान को छोड़कर संकीर्ण स्थानों को पकड़ती हुई बड़ी नदियों से मिल गई है। उनको फिर उस में डालने की आवश्यकता हो।

पौराणिक कथाएं रामायण महाभारत गंभीर कथाएं और उनका अद्यतन रूप उनकी कथाओं का वर्णन सबकुछ इन तीन भागों में समाहित हो गया है सर्वप्रथम गंगा का वर्णन करते हैं और उसके बाद कोसी गंडक आदि नदियों का उन का प्राचीन नाम क्या था उन नाम के प्रवर्तन के पीछे कौन सी पौराणिक कथा है सब का उल्लेख किया गया है कथाओं के ऊपर कितने गांव हैं उनकी प्राचीनता पर भी लेखक ने अपनी ऐतिहासिक दृष्टि की मुहर लगा दी है यह गांव गांव शहर में परिवर्तित होते हुए और उनका पहला नाम जैसे भुला दिया गया ।सहृदय जी ने ऋषि मुनि की तपोस्थली से उन नदियों के स्वनाम और आकार के रूप में व्याख्या की और पूरी प्राचीन कथा को नवीन से जोड़कर ऐसी व्याख्या की और जैसे राजा गंभीर के समान उन सारे स्थलों का दर्शन करते हुए धारा के साथ चल रहे हो। सहृदय जी की तीसरी पुस्तक वाग्भट पर केंद्रित है ।ये भी बिहार के रहने वाले थे और संस्कृत में बाल्मीकि और व्यास के बाद दूसरा कोई नहीं दिखाई पड़ता जिससे उनकी प्रतिद्वंदिता हो ।

 

 

कहा जाता है कि वाण ही एक ऐसी कवि है जिसमें स्वर वर्ण पद वाम्य श्लेष में और कथन की भंगिमा में अर्थ लावव्य हो। यह विशेषता दूसरे किसी कवि के साहित्य में हमें प्राप्त नहीं होती है यह ऐसे गद कवि हैं जिसके साहित्य में संस्कृत के सारे कोश ग्रंथ केंद्रित हो गए हैं। तात्पर्य यह है कि जो शब्द उनके साहित्य में प्रयुक्त हैं वे शब्द संस्कृत कोष ग्रंथों में नहीं मिलते । वह पहला ओपन्यासिक है , जिसमें अपने उपाख्यानो में नाना प्रकार के कथाओं व लोकाचारों का और काव्य कथा को उनके आदर्श ग्रंथ के रूप में प्रकट करता है। वाण के साहित्य पर सहृदय जी की अंतिम पुस्तक है जो उनकी काव्य के संबंध में सभी अवधारणाओं को एक साथ समुस्त करती हैं । वाण अपनी आखियायिका कदमबरी और हर्षचरित्र के लिए विश्वविख्यात है ।

 

 

सहृदय जी ने इन दोनों पुस्तकों पर विस्तार से विचार किया है और इन पर कितने काम हो सकते हैं उनकी पूरी सूची भी इस पुस्तक में लगा दी है सहृदय जी ने बाण के प्रतिकूट ग्राम और च्यवन के आश्रम के वैशिष्ट्य तथा उनके इतियास पर भी विचार किया है। वाण के ऊपर कितने काम हो सकते हैं शोध की दृष्टि से ऐसे 50 से अधिक विषयों को इस पुस्तक में रेखांकित किया गया है।

इससे शहीद जी के साहित्य मंथन और विचार दृष्टि का संकेत मिलता है वार्ड और उनका कथा गजबंध संस्कृत साहित्य का मंथन का पहला ग्रंथ है इसमें कादंबरी और हर्ष चरित्र दोनों ग्रंथों की विशद व्याख्या है इस प्रकार सहित जी ने वंदे बिहार व सुधाय नामक लेख में त्रिभुवनतारिणी सुरसरिता गंगा की विपुल मर्यादा और गौरव गांभीर्य का संपूर्ण वर्णन करते हुए थकते नहीं है। समय के पद पर उन्होंने बार-बार उत्तर बिहार की धरती पर पहली नदियों का वर्णन करते हैं तो पुनपुन झुरही दाहा गंडकी बूढ़ी गंडक बागमती लखनदेई चमनिया केरह, कपलाबलान , भूतही बालान, कौशकी आदि दर्जनों नदियों की सूची देते हैं और यह सब सरिता ए गंगा की गोद की समृद्धि करती हैं इसमें हिमालय प्रदेश से लेकर नेपाल देश का सारा वर्णन करते हुए याज्ञक्यवलय जनक मंडलमिश्री वायस्पति और विद्यापति का वर्णन आता है।

इसमें बिहार और दक्षिणी बिहार के प्रमुख स्थानों का भी जिक्र है ताकि पर यह है की शहीदी जी बिहार के ही पद पर समय के साथ अपनी लेखनी रूपी कूची से सभी स्थानों एवं नदियों का मर जानते एकांतिक दृष्टि से दूसरा कोई साहित्यिक इतना काम करने वाला नहीं दिखाई पड़ता है इन किताबों में डूबने के बाद कोई पक्ष और विश्लेषक नहीं रह पाता है। नदियों को चारों तीर्थ स्थलों और प्राचीन स्थलों की यात्रा 17 इन पुस्तकों में मिल जाती है। सहृदय जी की ऐतिहासिक संस्कृति को पुरातात्विक दृष्टि की सराहना सतत करते हुए थकते नहीं यह सभी ग्रंथ अपने विषय की गौरव ग्रंथ हैं और इनके बिना कोई एक पल भी इस क्षेत्र में नहीं चल सकता हमसे वीर जी की आत्मा को बार-बार प्रणाम करते हैं जिन्होंने बिहार के बिना उदित पक्षों की ओर हमारा ध्यान दिलाया।।

लेखक रजनीकांत तिवारी पत्रकारिता से जुड़े हुए हैं. रोहतास जिले के डेहरी ऑन सोन शहर में रहते हैं.

GOVINDA MISHRA

Proud IIMCIAN. Exploring World through Opinions, News & Views. Interested in Politics, International Relation & Diplomacy.

TAGGED: dehri news, rohtas news, rohtas news in hindi
GOVINDA MISHRA August 16, 2022 August 16, 2022
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