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KB News > समाचार > राष्ट्रीय > पूनम की खिलती चांदनी ‘लाडो’ की मासिक पीड़ा में दे रही शीतलता
राष्ट्रीयसमाचार

पूनम की खिलती चांदनी ‘लाडो’ की मासिक पीड़ा में दे रही शीतलता

GOVINDA MISHRA
Last updated: 2022/08/26 at 8:50 PM
GOVINDA MISHRA  - Founder Published August 26, 2022
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अरे तुमने आचार क्यों छू लिया? रसोई में मत जाना। तब तक स्कूल भी जाना बंद कर दो। समझती क्यों नहीं। कैसी लड़की हो तुम… लड़कियों के मासिक धर्म के दिनों को लेकर यह आम धारणा है। लड़कियों की मासिक पीड़ा को ले नसीहतें आज भी सुनी जाती हैं। शहरों में स्थिति तो बदली है। अब ग्रामीण क्षेत्रों में भी मासिक दिनों में अपवित्र मानी जानी वाली लड़कियों को लेकर सोच में बदलाव आने लगा है। रोहतास में ऐसे ही बदलाव की वाहक बनी हैं पूनम। वे 2019 से अब तक पांच हजार लड़कियों को माहवारी स्वच्छता के प्रति जागरूक कर चुकी हैं, उनकी माताओं की धारणा व भ्रांतियां बदली हैं। पूनम रोहतास के माहवारी स्वच्छता प्रबंधन की मास्टर ट्रेनर भी हैं। संझौली के प्रोजेक्ट बालिका प्लस टू विद्यालय में अर्थशास्त्र की शिक्षिका पूनम जिले के सभी 285 उच्च व इंटर स्तरीय विद्यालय में माहवारी स्वच्छता को ले एक एक महिला शिक्षकों को भी प्रशिक्षित कर चुकी है। पूनम की जागरूकता का परिणाम है कि जिले में अब स्कूली छात्राएं माहवारी के दिनों में पहले के जैसा स्कूल नहीं छोड़ती। संझौली का प्रोजेक्ट बालिका प्लस टू विद्यालय में पूनम के प्रयास से जिले का पहला सैनिटरी पैड बैंक भी खुला है।

लड़कियों के माताओं के साथ शुरू की गोष्टी
माहवारी को ले समाज में फैली भ्रांतियां व अंधविश्वास को दूर करने के लिए पूनम ने छात्राओं के माताओं के साथ गोष्टी की शुरुआत भी की है। पूनम बताती हैं कि भ्रांतियों के कारण लडकियां अपने ही घरों में माहवारी के समय अछूत बन जाती हैं , जिसे लेकर समय समय पर माताओं के साथ विद्यालय में गोष्टी की जाती हैं , ताकि अंधविश्वास से परिवार के महिलाओं में भी जागरूकता आएं।

 

 

 

 

छात्राओं की पीड़ा ने पूनम को किया विवश
विद्यालयों में छात्राओं की माहवारी की दिनों की पीड़ा ने पूनम को इसके प्रति काम करने को विवश किया। वे बताती हैं कि 2007 में वे सूर्यपुरा उच्च विद्यालय में थी , उसी दौरान एक लडकी को परीक्षा में ही मासिक धर्म होने व फिर उसके मां के अंधविश्वास के कारण उसे परीक्षा से वंचित होने की घटना ने मुझे अंदर तक झकझोर दिया। फिर मैंने माहवारी को ले काम करना शुरू कर दी। यूनिसेफ के माध्यम से 2019 में ही जिलास्तरीय प्रशिक्षण में भाग लिया व फिर राज्य स्तरीय प्रशिक्षण में भाग ली। इसके बाद कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा। अब तो जिले में स्कूली शिक्षा वाली 80 प्रतिशत से अधिक लड़किया सैनिटरी पैड का उपयोग करने लगी हैं , जबकि 10 वर्ष पूर्व 32 प्रतिशत थी। जागरूकता का परिणाम रहा कि माहवारी के समय स्कूल छोड़ने वाली लड़कियों की संख्या में भी काफी कमी आ गई हैं।

 

परिवार के सदस्यों ने हमेशा किया सहयोग
केंद्रीय विद्यालय मेघाताबुरू ( झारखंड ) से पूनम की प्रारंभिक शिक्षा हुई हैं व मगध महिला कॉलेज पटना से 2000 में स्नातक किया। 2007 में नालंदा खुला विवि से एमए करने के बाद पटना ट्रेनिंग कॉलेज से बीएड की। पूनम बताती हैं कि पिता विश्वनाथ सिंह मैकेनिकल इंजीनियर थे। छोटा भाई सुनील कुमार चिकित्सक , बड़े भाई ब्रजमोहन सिंह इंजीनियर व मंझले भाई संजय एमसीए कर प्राइवेट जॉब में हैं। पति सुनील कुमार सिंह पटना हाई कोर्ट में अधिवक्ता हैं। ससुराल व मायके में परिवार के सारे सदस्यों के पढ़े लिखे होने के कारण माहवारी को लेकर काम करने में कभी परेशानी नहीं हुई। हमेशा सबका सहयोग मिला।

राज्य सम्मान से राज्य विकास आयुक्त कर चुके हैं सम्मानित
माहवारी स्वच्छता प्रबंधन में उत्कृष्ट कार्यों को ले पूनम को पिछले महीने जुलाई में ही राज्य सम्मान मिला था। राज्य के विकास आयुक्त विवेक कुमार सिंह द्वारा पूनम को सम्मानित किया गया था। शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव दीपक कुमार सिंह ने भी पूनम को पुरस्कृत किया है। यूनिसेफ से भी सम्मानित हो चुकी हैं।

बोली पूनम

मासिक धर्म के बारे में बताने वाली सबसे अच्छी जगह स्कूल हैं। यहां इस विषय को यौन शिक्षा और स्वच्छता से जोड़कर चर्चा की जा सकती है। मैंने विद्यालय को ही माध्यम बना पहल शुरू की। मात्र दो से तीन वर्षो में ही ग्रामीण क्षेत्रों में भी सुखद प्रणाम मिले। गोष्टी से गांव की बच्चियों की मां की सोच भी बदली। इसे लेकर किशोरियों की झिझक व शर्मिंदगी तेजी से दूर हो रही हैं।

पूनम कुमारी , शिक्षिका , प्रोजेक्ट बालिका + 2 विद्यालय , संझौली

स्वच्छता माहवारी में बिहार की अच्छी छलांग
राष्ट्रीय पारिवारिक स्वास्थ्य सर्वे ( एनएफएचएस-5 ) के अनुसार भारत में लगभग 77 प्रतिशत लड़कियां और महिलाएं (15-24 आयुवर्ग) माहवारी के दौरान स्वच्छता के सुरक्षित तरीके अपनाती हैं। यह एनएफएचएस-4 के आंकड़े से 20 अंक अधिक है। बिहार में भी 27 अंकों की अच्छी वृद्धि हुई है और इसी सर्वे के अनुसार अब 58 प्रतिशत लड़कियां और महिलाएं सुरक्षित माहवारी का साधन इस्तेमाल करती हैं। बिहार में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का महिला सशक्तीकरण पर विशेष ध्यान जेंडर संवेदनशील की कई पहलों का मुख्य आधार रहा है। मुख्यमंत्री कन्या उत्थान योजना लड़कियों के सशक्तीकरण के लिए प्रोत्साहन राशि योजना है जिसके तहत 7वीं से 12वीं क्लास की सभी लड़कियों को अपनी माहवारी का ध्यान रखने के लिए सालाना 300 रुपये दिये जाते हैं।

कहते हैं जिला शिक्षा पदाधिकारी

प्रोजेक्ट बालिका प्लस टू विद्यालय संझौली की शिक्षिका पूनम कुमारी के माहवारी स्वच्छता प्रबंधन को ले किए जा रहे कार्य काफी सराहनीय हैं। इनके उत्कृष्ट कार्य ने जिले के विद्यालयों में माहवारी स्वच्छता को न सिर्फ गति दी हैं बल्कि स्कूली छात्राओं में भी तेजी से जागरूकता आई हैं। हाल ही में पूनम को मिले राज्य सम्मान से जिले के शिक्षा जगत का मान को बढ़ा है।

संजीव कुमार , जिला शिक्षा पदाधिकारी , रोहतास

 

✍️ प्रमोद टैगोर , जर्नलिस्ट

 

 

GOVINDA MISHRA

Proud IIMCIAN. Exploring World through Opinions, News & Views. Interested in Politics, International Relation & Diplomacy.

TAGGED: rohtas news, डेहरी-ऑन-सोन, रोहतास न्यूज
GOVINDA MISHRA August 26, 2022 August 26, 2022
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