नई दिल्ली, 23 फरवरी (हि.स.)। वित्त वर्ष 2023-24 के केंद्रीय बजट में पूंजीगत व्यय में बढ़ोतरी, हरित अर्थव्यवस्था को बढ़ावा और वित्तीय बाजार को मजबूत बनाने के उपायों की घोषणा से नौकरियां बढ़ने के साथ आर्थिक वृद्धि दर को गति मिलने की उम्मीद है। वित्त मंत्रालय ने अपनी मासिक आर्थिक समीक्षा में यह बात कही है।
वित्त मंत्रालय ने गुरुवार को जारी मासिक आर्थिक समीक्षा में कहा है कि वित्त वर्ष 2022-23 की अक्टूबर-दिसंबर तिमाही में जो महत्वपूर्ण आंकड़े (निर्यात, जीएसटी संग्रह, पीएमआई आदि) के हैं। वे आमतौर पर नरमी का संकेत देते हैं। इसकी एक वजह मौद्रिक नीति को कड़ा किया जाना है, जिससे वैश्विक मांग पर प्रतिकूल प्रभाव दिखना शुरू हो गया है। ‘यह स्थिति 2023 में भी जारी रह सकती है। दरअसल कई एजेंसियों ने वैश्विक वृद्धि में गिरावट की आशंका जताई है।
मंत्रालय के मासिक समीक्षा के मुताबिक मौद्रिक नीति कड़ी किए जाने से उत्पन्न प्रभाव के अलावा दुनिया के कुछ देशों में कोरोना महामारी का असर बने रहने तथा यूरोप में तनाव से वैश्विक वृद्धि पर प्रतिकूल असर पड़ सकता है। वैश्विक उत्पादन में नरमी के अनुमान की आशंका के बावजूद अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष और विश्व बैंक ने वर्ष 2023 में भारत के तीव्र आर्थिक वृद्धि दर हासिल करने वाली अर्थव्यवस्था बने रहने की उम्मीद जताई है।
मासिक समीक्षा में कहा गया है कि वित्त वर्ष 2022-23 की तरह भारत अगामी वित्त वर्ष का सामना पूरे भरोसे के साथ करने को तैयार है। इसका कारण कुल मिलाकर समग्र वृहत आर्थिक स्थिरता है। साथ ही वैश्विक स्तर पर राजनीतिक और आर्थिक जोखिमों को लेकर देश पूरी तरह से सतर्क भी है। समीक्षा में कहा गया है कि संसद में पेश वित्त वर्ष 2022-23 की आर्थिक सर्वेक्षण में वित्त वर्ष 2023-24 में आर्थिक वृद्धि दर 6.5 फीसदी रहने का अनुमान जताया गया है। समीक्षा में कहा गया है कि इसमें इसके ऊपर जाने की तुलना में नीचे जाने का जोखिम अधिक है।
वित्त मंत्रालय की मासिक रिपोर्ट के मुताबिक देश के लिए मुद्रास्फीति जोखिम वित्त वर्ष 2023-24 में कम रहने की उम्मीद है, लेकिन रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण वैश्विक स्तर पर जारी तनाव और उसके कारण आपूर्ति बाधित होने जैसी वैश्विक स्थिति के कारण यह पूरी तरह समाप्त नहीं हुई है। इससे 2022 में ऊंची महंगाई दर रही है, यह स्थिति अब भी मौजूद है। हालांकि, वित्त वर्ष 2023-24 के केंद्रीय बजट में एक बार फिर पूंजीगत व्यय के जरिए वृद्धि को गति देने का प्रयास किया गया है। इस बजट में केंद्र का पूंजीगत व्यय 10 लाख करोड़ रुपये है, जो चालू वित्त वर्ष के मुकाबले 33 फीसदी अधिक है।
मासिक रिपोर्ट के मुताबिक अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देना और वित्तीय बाजारों को मजबूत करने की पहल जैसे उपायों से रोजगार सृजन को बढ़ावा मिलने और आर्थिक वृद्धि को गति मिलने की उम्मीद है। सरकार ने पिछले कुछ साल में वृहत आर्थिक स्थिरता पर जोर दिया है। इससे भारतीय अर्थव्यवस्था नए वित्त वर्ष में जोखिमों को लेकर सतर्क रुख अपनाते हुए भरोसे के साथ आगे बढ़ने को पूरी तरह तैयार है।
मंत्रालय की रिपोर्ट के मुताबिक बजट में खर्च और उपभोक्ता मांग बढ़ाने के उपायों की भी घोषणा की गई है। आयकर टैक्स स्लैब को युक्तिसंगत बनाने और नई व्यक्तिगत आयकर टैक्स व्यवस्था (एनपीआईटीआर) के तहत मूल आयकर छूट की सीमा को 2.5 लाख रुपये से बढ़ाकर तीन लाख रुपये करना शामिल है। सूक्ष्म, लघु एवं मझोले उद्यम (एमएसएमई) क्षेत्र के लिए घोषित उपायों से कोष की लागत में कमी आएगी। छोटे उद्यमों को सहायता मिलेगी। नई व्यक्तिगत आयकर व्यवस्था के तहत टैक्स स्लैब में संशोधन से खपत को बढ़ावा मिलने की उम्मीद है, जिससे आर्थिक वृद्धि को और अधिक गति मिलेगी।