
करगहर (रोहतास) रमजान का मुकद्दस (पवित्र) महीना आज से शुरू हो गया। शुक्रवार को पहला रोजा रखा गया है। रमजान के पाक महीने में खुदा के बंदे उसकी इबादत करते हैं। मस्जिदों और घरों से कुरान शरीफ की तिलावत की आवाज आनी लाजमी है। जिस तरह नमाज पढ़ना हर मुसलमान के लिए फर्ज है उसी तरह रोजे रखना भी खुदा ने फर्ज करार दिया है। खुद अल्लाह ने कुरान शरीफ में इस महीने का जिक्र किया है। इस पाक महीने को रहमतों का महीना कहा जाता है। प्यास की शिद्दत, भूख की तड़प, गर्मी की तपिश होने के बावजूद भी एक रोजेदार खुदा का शुक्रिया अदा करता है। रोजेदार के सामने दुनिया की सारी अच्छी चीजें रखी हों पर वो खुदा की बिना इजाजत उसे हाथ नहीं लगाता। यही सब रोजेदार को खुदा के करीब लाती हैं।
रूह को पाक करके अल्लाह के करीब जाने का मौका देने वाला रमजान का मुकद्दस महीना हर इंसान को अपनी जिंदगी को सही राह पर लाने का पैगाम देता है। भूख-प्यास की तड़प के बीच जबान से रूह तक पहुंचने वाली खुदा की इबादत हर मोमिन को उसका खास बना देती है। आम दिनों में इंसान का पूरा ध्यान खाने-पीने और दूसरी जिस्मानी जरूरतों पर रहता है लेकिन असल चीज उसकी रूह है। इसी की तरबीयत और पाकीजगी के लिए अल्लाह ने रमजान बनाया है और यही रमजान माह की खासियतहै। रमजान के महीने को तीन अशरों (हिस्सों) में रखा गया है। पहला अशरा ‘रहमत’ है जिसमें अल्लाह अपने बंदों पर रहमत बरसाता है। दूसरा अशरा ‘बरकत’ है जिसमें खुदा अपने बंदों पर बरकत नाजिल करता है, जबकि तीसरा अशरा ‘मगफिरत’ का है। इसमें अल्लाह अपने बंदों को गुनाहों से पाक कर देता है। आम दिनों में बंदे को एक नेकी के बदले में 10 नेकी मिलती हैं लेकिन रमजान के पाक महीने में खुदा अपने रोजेदार बंदों को एक के बदले 70 नेकियां अदा फरमाता है। रमजान का मकसद खुद को गलत काम करने से रोकने की ताकत पैदा करना या उसे फिर से जिंदा करना है।
खुद को गलत कामों से रोकने की ताकत को शरीअत में तकवा कहा गया है जिसमें इंसान खुद को रोक लेता है। रोजेदार को सख्त प्यास लगी होती है लेकिन वो खुद को रोक लेता है। गलत बात होने के बावजूद खुद को गुस्सा होने से रोकता है। झूठ बोलने और बदनिगाही से परहेज करता है। इंसान से जिंदगी में सारे गुनाह इसीलिए होते हैं, क्योंकि वो खुद को गलत काम करने से नहीं रोक पाता। जिस तरह बारिश के मौसम में आसमान से गिरने वाली बूंदें तमाम गंदगी और कूड़े-करकट कचरे को किनारे लगा देती हैं, वैसे ही रमजान के महीने में अल्लाह की रहमतें अपने प्यारें बंदों को पाक-साफ कर देती हैं।