
सासाराम (रोहतास) गोपाल नारायण सिंह विश्वविद्यालय, जमुहार के अंतर्गत संचालित नारायण कृषि विज्ञान संस्थान के शस्य विज्ञान विभाग के सहायक प्राध्यापक डॉ. धनञ्जय तिवारी ने बताया कि इस समय गेहूं की कटाई का समय चल रहा है और किसान भाई मजदूरों की कमी तथा मजदूरी अधिक होने के कारण अपनी गेहूं की फसल की कटाई कम्बाइन हार्वेस्टर मशीन के द्वारा करते है। इससे खेत में फसल अवशेष अधिक मात्रा में बच जाता है क्योंकि कम्बाइन हार्वेस्टर फसल की कटाई काफी ऊपर से करता है। फलस्वरूप किसानों को उसका उचित प्रबंधन करने में काफी श्रम तथा लागत का सामना करना पड़ता है। इस परिस्थिति में किसान भाई फसल अवशेष को खेत में जलाना बेहतर समझते है। ऐसे में फसल अवशेष जलाने से किसान का खेत जल्दी खाली हो जाता है और उनको अगली फसल लगाने में कोई कठिनाई नहीं होती। लेकिन फसल अवशेष जलाने से काफी जहरीली गैसे वायु में मिश्रित हो जाती है जिससे मनुष्यो के स्वास्थ्य के साथ-साथ मृदा के स्वास्थ्य पर भी इसका विपरीत प्रभाव पड़ता है तथा मृदा में उपस्थित लाभदायक जीवाणु तथा किसानो का मित्र कहा जाने वाला केचुआ, जो मिटटी को भुरभुरा बनाता है। जिससे मृदा की उर्वरा शक्ति बढ़ती है, के ऊपर पराली को जलाने का विपरीत प्रभाव पड़ता है और फसल उत्पादन भी प्रभावित होता है। इसी के साथ संस्थान के उपनिदेशक डॉ. प्रशांत बिसेन ने अनुरोध करते हुए कहा कि किसान बंधु पराली न जलाएं तथा फसल अवशेष प्रबंधन के लिए उपलब्ध विकल्पों जैसे हैप्पी सीडर, मल्चर, सुपर सीडर, स्ट्रॉ बेलर, सुपर स्ट्रा मैनेजमेंट सिस्टम तथा रोटावेटर का उपयोग करें। उन्हों आशा व्यक्त की है कि अगर किसानों को जागरूक किया जाए तो उन्हें पराली जलाने से रोका जा सकता है। इससे मनुष्य तथा मृदा के स्वास्थ्य के साथ साथ पर्यावरण को भी संरक्षित किया जा सकता।