नवीन कुमार सिंह
बिहार में 5 अप्रैल 2016 से पूर्ण शराबबंदी लागू है। तब से लगभग 7 साल से ज्यादा का समय गुजर चुका है। इन सात सालों में शराब बनाने के चूल्हे की आग गांव गांव तक पहुंच चुकी है। अब इस आग को बुझाना पुलिस प्रशासन के लिए एक बड़ी चुनौती बन गई है। हकीकत है कि लगभग 7 साल के प्रयास के बाद भी शराब बनाने व तस्करी का धंधा थमने के बजाय और तेजी से फल-फूल रहा है। गली-गली में शराब तस्करों का नेटवर्क फैला हुआ है। पूर्ण शराबबंदी के मामले में पहले कई गांव इस मामले में आदर्श माने जाते थे, लेकिन, पूर्ण शराबबंदी के दौर में शायद ही ऐसा कोई गांव है, जहां दावे के साथ कहा जा सकता है कि यह शराब नहीं बनती है या नहीं बिकती है। उत्पाद विभाग एवं पुलिस प्रशासन की लाख चौकसी के बावजूद कारोबार फल-फूल रहा है।
कम उम्र के लोग करते हैं होम डिलेवरी
एक तरफ जहां विदेशी शराब माफियाओं के द्वारा भोले भाले युवाओं एवं किशोरों को बिना पूंजी के अधिक मुनाफा कमाने वाले इस रोजगार से जोड़कर उनके भविष्य के साथ खिलवाड़ किए जा रहे हैं। स्कूलों एवं कॉलेजों में पढ़ने वाले कम उम्र के युवा इसके लत में पड़कर अपने भविष्य को शराब माफियाओं के हाथों बेचने पर विवश हो रहे हैं। इसके एवज में ऐसे युवकों को मोटी रकम भी देते हैं। सूत्रों के अनुसार जिस बोतल को शराब माफियाओं द्वारा युवाओं 800 एवं 1000 में उपलब्ध कराए जाते हैं, उसे होम डिलीवरी करने वाले युवक 1600 से लेकर 1800 रुपये तक में बेच रहे हैं। इस तरह से युवाओं को भी शराब की बोतलें दी जाती हैं।
महिलाएं और कम उम्र के बच्चे भी हैं शामिल
इस गोरखधंदे में महिलाएं एवं छोटे- छोटे बच्चे भी शामिल है। गांवों में उत्पाद विभाग एवं स्थानीय पुलिस के द्वारा लगातार छापामारी भी किए जा रहे हैं फिर भी कारोबारी चोरी-छिपे झुग्गी -झोपड़ियों, झाड़ियों, गांव के किनारे एवं गंदगी वाले स्थानों पर भी शराब बनाने और बेचने का काम कर रहे हैं। ऐसे स्थानों पर भी जाकर लोग शराब खरीदकर सेवन कर रहे हैं।