दिल्ली उच्च न्यायालय ने पोस्टमार्टम के दौरान शवों से हड्डियों और ऊतकों सहित मानव अंगों को कथित रूप से अवैध रूप से हटाने की जांच की मांग वाली एक याचिका के जवाब में दिल्ली सरकार और मौलाना आजाद मेडिकल कॉलेज (एमएएमसी) को अपना जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है।
नई दिल्ली, 21 अगस्त (आईएएनएस)। दिल्ली उच्च न्यायालय ने पोस्टमार्टम के दौरान शवों से हड्डियों और ऊतकों सहित मानव अंगों को कथित रूप से अवैध रूप से हटाने की जांच की मांग वाली एक याचिका के जवाब में दिल्ली सरकार और मौलाना आजाद मेडिकल कॉलेज (एमएएमसी) को अपना जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है।
एमएएमसी में फॉरेंसिक मेडिसिन विभाग के पूर्व प्रोफेसर और प्रमुख उपेंद्र किशोर द्वारा दायर याचिका को न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद द्वारा 15 जनवरी, 2024 को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया गया है।
किशोर ने अपनी याचिका में दलील दी कि मृतकों के शरीर से अंगों, ऊतकों और हड्डियों को निकालना न केवल गैरकानूनी और अनैतिक है, बल्कि मृत व्यक्तियों की गरिमा का भी हनन है।
उन्होंने कहा कि शव-परीक्षण करने वाला डॉक्टर किसी के शरीर पर स्वामित्व नहीं रखता है और अकादमिक हितों के आधार पर अंगों को नहीं हटा सकता।
बाबा साहेब अंबेडकर मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में कार्यरत किशोर नामक व्यक्ति ने मानव अंगों और ऊतकों को कथित रूप से अवैध रूप से हटाने के मामले में उच्च न्यायालय या जिला अदालत के पूर्व न्यायाधीश के नेतृत्व में एक स्वतंत्र जांच की मांग की, जो कि अधिनियम का उल्लंघन है।
उन्होंने दावा किया कि एमएएमसी से जुड़े कई डॉक्टर इन कृत्यों में शामिल थे, उन्होंने कहा कि आपत्तियां उठाने के बाद उन्हें उत्पीड़न और आपराधिक आरोपों का सामना करना पड़ा।
किशोर ने यह भी सुझाव दिया कि कार्रवाई शैक्षणिक उद्देश्यों की आड़ में की गई थी।
याचिकाकर्ता ने चिंता व्यक्त की कि “शैक्षणिक उद्देश्यों” शब्द का दुरुपयोग चिकित्सा पेशे की अखंडता को खतरे में डाल सकता है। उन्होंने दावा किया कि ऐसी प्रथाओं की अनुमति संभावित रूप से व्यक्तियों के अधिकारों और डॉक्टरों और सर्जनों के नैतिक आचरण को कमजोर कर सकती है।
इन कथित अवैध प्रथाओं के बारे में 2019 से लगातार शिकायतों के बावजूद किशोर ने तर्क दिया कि एमएएमसी ने इस मुद्दे के समाधान के लिए पर्याप्त कदम नहीं उठाए हैं।
उन्हें डर है कि अधिकारी इस मामले को नज़रअंदाज कर सकते हैं या मामले को रफा-दफा कर सकते हैं।
याचिका में मानव अंगों और ऊतकों के प्रत्यारोपण अधिनियम की धारा 22 के तहत संबंधित प्राधिकारी को अंगों और ऊतकों के कथित अवैध निष्कासन के लिए जिम्मेदार लोगों के खिलाफ क्षेत्राधिकार मजिस्ट्रेट के साथ औपचारिक शिकायत दर्ज करने का निर्देश देने की भी मांग की गई है।
याचिका में आगे दावा किया गया कि मानव शरीर के अंगों का काला व्यापार खूब फल-फूल रहा है।