सोशल मीडिया पर कोटा शहर में हो रहे एक कार्यक्रम का वीडियो काफी वायरल हुआ था। देश की वर्तमान वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण उस कार्यक्रम में मौजूद थी। जब उन्होंने पूछा कि कितने बच्चे बिहार से हैं तो हॉल में उठे हाथों को देख वो सरप्राइज थीं। इन दिनों यह शहर आत्महत्या के बढ़ते मामलों के कारण चर्चा में है। अगस्त माह में कोटा में 6 बच्चों ने आत्महत्या किए। विगत रविवार यानी 28 अगस्त को दो बच्चों के आत्महत्या के मामले सामने आने के बाद दादा-दादी से लेकर माता- पिता के बच्चों से मिलने की खबरें पढ़ने को मिली।
दिल्ली-कोलकाता के व्यस्त एनएच 2 (परिवर्तित नाम एशियन हाईवे-1) के किनारे बसे रोहतास जिले के पुलिस मुख्यालय़ डेहरी-ऑन-सोन से 10 किलोमीटर दूर भड़कुड़िया गांव में लोगों का जीवन अपने ढर्रे पर चल रहा था. ग्रामीण गांव के एक बच्चे की आत्महत्या की खबर से हतप्रत थे. गांव का आदर्श नीट की तैयारी करने के लिए अपने भाई-बहन के साथ कोचिंग हब कोटा में पहुंचा था। प्रतिष्ठित निजी कोचिंग संस्थान का छात्र रविवार के दिन सब साथ मिलकर एक अपार्टमेंट के फ्लैट में खाना बना रहे थे। एकाएक मोबाइल पर कोई मैसेज आता है। जिसे देखकर आदर्श वहां से किनारे निकल जाता है। कमरा बंद कर लेता है। कुछ देर के बाद कमरा ना खुलता देख 17 साल के भाई-बहन लगातार आवाज देने के बाद दरवाजे को काफी मुश्किल से तोड़ते हैं।
घटना के बारे में बताते हुए मृतक छात्र के चाचा हरिशंकर सिंह बड़े शहरों के लोगों के दिल छोटे होने की बात कहते हैं। उनका कहना है कि 26 फ्लैट उस अपार्टमेंट में थे। लेकिन गार्ड से लेकर वहां रहने वाले किसी भी व्यक्ति ने बच्चों की मदद नहीं की। सिंह कहते हैं कि बच्चे की सांस चल रही थी और वे लिफ्ट से लेकर उसे नीचे उतरे काफी दूर तक गाड़ियों की तलाश की। लेकिन कोई सामने नहीं आया। आखिर में किसी कार वाले को दया आई और उस बच्चे को हॉस्पिटल पहुंचाया जा सका। जहां पहुंचने के बाद आदर्श को मृत घोषित कर दिया गया। सिंह का कहना है कि गांव छोटे ही सही लेकिन सरोकार की भावना जिंदा है। कोटा ने परिवार के एक बच्चे की जान लेने के बाद उनकी भावना को भी कचोटने का काम किया है। सिंह वामपंथी राजनीति में लगातार सक्रिय रहे हैं। मुखिया भी रह चुके हैं। कहते हैं कि छात्रों पर कोचिंग संस्थान का दबाव समस्या की जड़ है। उनका कहना है कि कोचिंग संस्थान दोहरा रवैया अपनाते हैं। जिन छात्रों का नंबर बेहतर आता है उनपर विशेष ध्यान रहता है। जबकि मेडिकोर बच्चों को लगभग किनारे कर दिया जाता है।
सामाजिक कार्यकर्ता संतोष उपाध्याय कहते हैं कि बच्चों पर किसी भी तरह के दबाव से निपटने की रणनीति तैयार रखनी चाहिए। काउंसलर से बातचीत भी करानी चाहिए।
बच्चे पर नहीं था किसी भी तरह का पारिवारिक दबाव
नम आंखों से सिंह कहते हैं कि अगर मेडिकल में आदर्श का सलेक्शन नहीं भी होता तो उनका भतीजा कुछ बेहतर ही करता। चाहता तो राजनीति में भी सक्रिय भूमिका निभा सकता था। लेकिन जब वो है नहीं तो फिर क्या किया जा सकता है। केबी न्यूज की टीम ने दो अन्य भाई-बहनो से बातचीत की पहल की लेकिन मनोस्थिति और तबीयत ठीक न होने से यह संभव नहीं हो सका।हमारी टीम करीब घंटे भर आदर्श के घर पर बैठी रही। सरकारी स्कूल के किनारे से निकली सड़क के उनके घर तक जा रही थी। गांव के लोग इसपर बात करने को तैयार नहीं थे। अपने माता-पिता के एकलौते बेटे के दाह संस्कार में इलाके के लोगों का जुटान हुआ। सपनों को पूरा करने के लिए हर साल बिहार से लाखों की संख्या में तैयारी करने के लिए बच्चे पहुंचते हैं। लेकिन इस बात पर सरकार, कोचिंग संस्थानों को सोचने की जरूरत है। इस तरह की पहल करनी चाहिए ताकि ऐसी घटनाओं पर पूरी तरह रोक लगाई जा सके।
(रिपोर्ट: गोविंदा/प्रशांत)