
गोविंदा मिश्रा
डेहरी के विधायक फतेह बहादूर सिंह ने बुद्ध धमपद जयंती के एक कार्यक्रम के दौरान बक्सर में कथित तौर पर दुर्गा पर आपत्तिजनक टिप्पणी की थी। जिसके बाद यह विवाद काफी बढ़ गया। यह मुद्दा नेशनल टीवी पर भी चर्चा का विषय रहा। स्थानीय स्तर पर इसका जमकर विरोध हो रहा है। विधायक के साथ खड़े रहने वाले लोग इसकी दबे जुबान में निंदा कर रहे हैं। बीजेपी और अन्य हिन्दूवादी संगठनों ने विधायक का पुतला दहन किया। बजरंग दल के संयोजक गोपी कुमार का कहना है कि स्थानीय थाने में विधायक के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने के लिए आवेदन दिया गया। उनका आऱोप है कि इसपर किसी भी तरह की कार्रवाई नहीं हुई। पुलिस अधिकारियों ने चुप्पी साध ली। इस मामले में अनुमंडलीय न्यायालय में आवेदन देकर कानूनी कार्रवाई की मांग की गई है।
दरअसल, दशहरे के अगले दिन डेहरी शहर के लोकल व्हाट्सअप ग्रुप में डेहरी विधायक के कथित बयान का एक वीडियो जमकर वायरल होता है। जिसके बाद स्थानीय स्तर पर राजनीति गर्म होती दिखी। जिसका असर प्रदेश ही नहीं पूरे देश में देखने को मिला। आधिकारिक तौर पर प्रदेश आरजेडी के किसी भी प्रवक्ता ने इसका विरोध या समर्थन नहीं किया है। लेकिन स्थानीय स्तर पर इसका प्रभाव देखने को मिल रहा है। गुरुवार को आरजेडी समर्थकों के विधायक के स्वागत करते वीडियो वायरल हुआ। बीजेपी नेताओं का कहना है कि आरजेडी समर्थकों के बीच इस मामले को लेकर पक्ष में माहौल पैदा करने का प्रयास किया जा रहा है। कहना है कि आरजेडी विधायक इस मामले को राजनीतिक फायदे के लिए भुनाना चाह रहे हैं। जबकि विधायक समर्थकों का कहना है कि मनुवादी ही सिर्फ इसका विरोध कर रहे हैं।

इस इलाके में लोकप्रिय जदयू के वरिष्ठ नेता श्रीभगवान सिंह कुशवाहा एक वीडियो में साफ कहते हैं कि सब ठीक है लेकिन ज्यादा हो गया। उनका कहना था कि बयान देने वाला व्यक्ति को ब्राह्मणों और सवर्णों का वोट तो मिलना नहीं है। उनका कहना है कि नहीं मानना ठीक है लेकिन टीका टिप्पणी नहीं।
लंबे समय तक वामपंथी राजनीति करने वाले और पत्रकारिता में सक्रिय सुरेंद्र तिवारी का कहना है कि सवाल उठाने वाले लोगों की राजनीति नहीं बल्कि सोची समझी रणनीति का यह हिस्सा है। उनका कहना है कि भारत की राजनीति के संदर्भ में मार्क्स और लेनिन को नहीं समझने का प्रयास किया। राजनीतिक भूल रही इस कारण इस तरह की राजनीति विफल रही। हमारे यहां पुरातात्विक स्तर पर चार हजार साल पुराने मंदिरों का साक्ष्य/अस्तित्व मौजूद है। बौद्धों का आगमन 2600 वर्ष पहले हुआ। जानबुझकर बौद्ध और सनातन के पीछे के वैमनस्व को आगे लाने का प्रयास किया जा रहा है। सनातन को कमजोर करके धर्मांतरण के लिए प्रेरित किया जा रहा है। जिसके लिए साफ तौर पर ब्राह्मणों को सॉफ्ट टार्गेट किया जा रहा है। महिषासूर के विवाद के माध्यम से ईसाईयत और बुद्धिज्म धर्म मानने को प्ररित किया जा रहा है। इसपर किसी भी तरह का वैचारिक हमला होते देख देश के इस वर्ग के अराजकतवादी हावी होने का प्रयास करते हैं।
दुर्गा काल्पनिक तो महिषासूर के वंशज कैसे सामने आए
तिवारी का कहना है कि दुर्गा अगर एक मिथक और काल्पनिक चरित्र है तो महिषासूर के कथित वंशज सामने कैसे आ गए।आरएलजेडी नेता रिंकू सोनी केबी न्यूज से बातचीत के दौरान साफ कहते हैं कि सभ्य समाज में अभद्र टिप्पणी बर्दाश्त नहीं की जा सकती। किसी को मानना है माने या न माने। दुर्गा शक्ति की प्रतीक है औऱ विधायक ने इस तरह की टिप्पणी करके मातृशक्ति की तौहीन करने का प्रयास किया है।
2014 में शुरू हुआ था विवाद
इस पूरे मामले पर पहली बार विवाद साल 2014 में सामने आया था। दिल्ली के प्रतिष्ठित जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में एक कार्यक्रम के दौरान महिषासूर जयंती मनाया गया था। जिसके बाद आरएसएस से जुड़े अंबा शंकर वाजपेयी और अन्य छात्रों ने एफआईआर दर्ज कराई थी। बाजपेई ने केबी न्यूज से बातचीत के दौरान कहा कि यह मामला फिलहाल कोर्ट में लंबित है। उन्होंने कहा कि दिल्ली पुलिस ने ईसाई मिशनरी द्वारा संचालित फारवर्ड प्रेस नाम की मैग्जीन के दफ्तर और उससे जुड़े लोगों के घरों पर छापेमारी की थी। (इसी मैग्जीन में दुर्गा के खिलाफ अभद्र टिप्पणी की गई थी और आरोप है कि एक फोटो के माध्यम से मां दुर्गा के चरित्र हनन का प्रयास किया गया था)। उनका कहना है कि संबंधित मैग्जीन के प्रकाशन से फादर आइवन कोस्टका और सुनील सरदार नाम के लोग जुड़े हैं। जिनका सीधा संबंध अमेरिका की चर्चों से है। उनका कहना है कि लिटरेटर के माध्यम से करीब एक दशक से हिन्दू धर्म को कमजोर करने का प्रयास किया जा रहा है। एक अलग तरह की नैरेटिव विकसित करने में चर्च के एजेंट लगे हुए हैं।
पूरे देश में धर्मांतरण के लिए किया जा रहा है प्रयास
उन्होंने कहा कि ईसाई मिशनरी संस्थान बिहार-यूपी में यादवों को धर्म से तोड़ने के लिए महिषासूर से उनका संबंध बता रही है। दूसरी ओर चर्च प्रायोजित लिटरेटर के माध्यम से झारखंड के वनवासियों को महिषासूर से संबंध होने का दावा किया जा रहा है।
उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा स्थित दंतेश्वरी मंदिर में हर साल बड़ी संख्या में आदिवासी पुजा के लिए जुटते हैं। यहां पर कई साल से चर्च से जुड़े लोग महिषासूर जयंती मनाने के नाम पर समरसता बिगाड़ने का प्रयास कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि चर्च के धर्मांतरण के लंबे समय तक चलने वाले एक प्रोजेक्ट (Joshua Project) का यह हिस्सा है। अन्य जातियों के लिए भी देवता गढ़ने का काम ईसाई मिशनरी संस्थान कर रही है।
(श्री मिश्र एक दशक से ज्यादा समय से पत्रकारिता में सक्रिय हैं। IIMC से पढ़ाई करने के बाद उन्होंने प्रतिष्ठित मीडिया संस्थानों में काम किया है।)