प्रमोद टैगोर , सीनियर जर्नलिस्ट
कभी सिर्फ पुत्रों की प्राप्ति के लिए छठ पूजा में प्रसाद का सूप सजती थी। लेकिन अब इस अनूठी परंपरा को ले लोगों की सोच बदली हैं। माता – पिता व घर परिवार की अभिमान बनती बेटियों के लिए भी अब प्रसाद का सूप सजने लगी है। बेटियों के लिए मन्नतें मांगी जाने लगी है। वैसे तो यह पर्व नारी शक्ति को भी दर्शाता हैं। छठ इकलौता पर्व है , जिसमे भगवान भास्कर व छठ माई से बेटी व उसके लिए मन्नतें मांगी जाती है। इसका प्रत्यक्ष प्रमाण भी छठ पूजा में बेटी के लिए गाई जाने वाली गीतों से मिलता है। छठ गीतों से ही पता चलता है कि घर – आंगन में बेटियों की किलकारियां कितनी आवश्यक है। संस्कृति विद्यालय संझौली से सेवानिवृत प्राचार्य आचार्य शिवजगत मिश्र बताते हैं कि छठ गीतों में तो बेटियों के सम्मान को ले वर्षो पूर्व से परंपरा चली आ रही है। पर वह सिर्फ गीतों तक सीमित था। हाल के वर्षों में छठ पूजा में बेटियों के प्रति सोच बदली हैं। अब बेटियों लिए भी बेटों की तरह प्रसाद का सूप सजने लगी हैं। पुत्री प्राप्ति , उनकी सफलता और सुख के लिए भी व्रत रखी जाने लगी है। माता – पिता बेटियों के लिए घर से छठ घाटों तक दंडवत करते हुए दिख जाते हैं। हाल के वर्षों में आए इस बदलाव का कारण बेटियों का बेहतरी है , जो आज हर क्षेत्रों में अपनी कामयाबी को बुलंद कर माता – पिता के मान – सम्मान को बढ़ा रही हैं। नारी सशक्तिकरण का अध्याय गढ़ रहीं हैं।
छठ गीतों में बेटियों के लिए कामना
दुर्गापूजा में भी नारीशक्ति की पूजा है। लेकिन छठ में बेटी के लिए कामना की जाती हैं। छठ के बारे में कहा ही जाता है कि इस व्रत को पहली बार सतयुग में राजा शर्याति की बेटी सुकन्या ने रखा था। इसलिए इसमें स्त्री स्वर की प्रधानता है। छोटी रे मोटी मालिन बिटिया के लामी लामी हो केश, पांच पुतुर, अन्न-धन-लक्ष्मी, धियवा मंगबो जरूर , रुनकी-झुनकी बेटी मांगिला, पढ़ल पंडितवा दामाद , फूलवा ले अइह हो बिटिया अरघिया के बेर , अंगना में दे द एगो सोनचिरैया कि उरके छूई आसमान.. जैसे छठ के गीत हमें यह याद दिलाते हैं कि यह पर्व महज पुत्रों के लिए नहीं है, बल्कि बेटियों की शुभेच्छा से भी भरा हुआ है।
बिहारियों के लिए आदर्श है छठ पूजा
छठ हम बिहारियों को आदर्श नागरिक बनने के लिए प्रेरित करता है। छठ में जहां डूबते सूर्य को अर्घ्य देते हुए हम यह स्वीकारते हैं कि डूबना जीवन का सत्य है लेकिन पुनः उदय होना भी सच्चाई है, वैसे ही छठ के लोकगीतों में बेटियों के जन्म के लिए प्रार्थना करना यह दर्शाता है कि बेटी पूजक हैं। बेटियों को भी वही स्थान मिला हुआ है जो पुरुष प्रधान समाज में बेटों को है। बेटियां भी ऐसी चाहिएं जो तेज तर्रार और दुनिया से कदम से कदम मिलाकर चले , लेकिन वह अपनी सारी सफलताओं के बाद भी गर्व से कहे, हम बिहारी हैं और हमारी अस्मिता छठ है।
विकास वैभव , सीनियर आईपीएस
बेटियों के मान – सम्मान को दर्शाता छठ
छठ पूजा के गीतों में बेटियों का जिक्र घर – परिवार में उनके मान – सम्मान को दर्शाता है। मैंने तो कभी छठ नही की , पर गांव में कई बार इस आस्था का हिस्सा जरूर बनी। मेरी कामना के लिए सबसे पहले मेरी नानी ने मेरे लिए छठ व्रत रखी थी। फिर मां ने भी मेरे लिए छठ पूजा कर मेरी कामयाबी के लिए कामना की थी। यह पर्व हम बेटियों की शुभेच्छा से भरी हैं।
स्वेता कुमारी , बीपीआरओ , संझौली
छठ सामाजिक समरसता का महापर्व है। केवल धार्मिक दृष्टिकोण से ही नही बल्कि सामाजिक दृष्टिकोण से भी यह पर्व महत्वपूर्ण है। सभी वर्ग और जातियों के लोगों को एक साथ लाने में मदद करता है। अधिकारी के तौर पर देखा हैं कि छठ की महत्ता में बेटियों के प्रति आज सम्मान बढ़ा है। मेरी मां ने भी मेरे लिए मन्नतें मांगी थी।
शिबू , अंचलाधिकारी , संझौली
ससुराल आने के बाद भी मेरी खुशियों के लिए मेरी मां छठ पूजा में मेरे लिए कामना करती हैं। मैं भी छठ पूजा करती हूं। यह पर्व हम महिलाओं में एक हिम्मत देती हैं। परिवार की कामना के लिए हम सब व्रत रखती हैं।
अंजू कुमारी , पुलिस इंस्पेक्टर