निंदक नियरे राखिए… कबीर की ये पंक्तियां लोग कब के भूल गए. लोकतंत्र के चौथे स्तंभ को भी यह याद नहीं रहता है। क्योंकि प्रभाव भटयुग का है। शर्म करो शर्म करो जब पुलिस के लिए एक पत्रकार यह बात कह रहे थे तो तंत्र में हुई खामियां उजागर हुई। पुलिस जागी। लोकतंत्र के प्रहरी को मान सम्मान मिला। लेकिन फिर से वहीं तीन पांच शुरू हो गया। तीन साल से बिहार के एक शहर में हूं। शहर पुराना है और महत्वपूर्ण भी. लेकिन मीडिया को भटकाने का काम पुलिसिया तंत्र कर रही है। खबरों पर रोक है और उस तक पहुंचने के लिए कोई रास्ता न बनने दिया जा रहा है और न ही बताया जा रहा है। पुलिस कप्तान प्रयागराज में हुई एक पूर्व सांसद के इनकाउंटर के बाद अपने व्हाट्सअप ग्रुप में साफ लिखते हैं कि कोई भी यूट्यूबर और गैर मान्यता प्राप्त पत्रकार थाना, एसडीपीओ और एसपी के कार्यालय के पास नहीं जाएगा। लेकिन सलाह देने वाले आलाधिकारी ने कभी भी लोकल यूट्यूबर को इंटरव्यू देने से मना नहीं किए। लेकिन पुलिस के नए अधिकारी अब पहले वाले नहीं रहे। आम लोगों से कोई सरोकार नहीं है और कोई संपर्क भी नहीं। सब राम भरोसे हैं। अब एसपी साहेब ने साफ कर दिया है कि कोई भी खबर पत्रकारों को डायरेक्ट नहीं मिलेगी। मैसेज साफ है लोकतंत्र के चौथे स्तंभ से दूरी बनाकर रखिए नहीं तो आपका पीआर गड़बड़ हो जाएगा।
अब बताने की जरूरत है क्या है स्व नियामक प्रणाली
हिन्दी में यह बात बताने की जरूरत है कि भारत में मीडिया की स्वतंत्रता के लिए कोई अलग से कानून नहीं बनाया गया। आम लोगों को मिलने वाली अभिव्यव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार में यह शामिल है। मीडिया पर किसी भी तरह की डायरेक्ट मॉनिटरिंग नहीं हो सकती है। डिजिटल मीडिया पर स्व नियामक प्रणाली लागू है। अगर आपको किसी भी खबर से आपत्ति है तो आप उनको आवेदन देकर शिकायत कर सकते है। संबंधित संस्थान उसकी अपनी टीम से जांच कराएगी और आपत्ति पर अपनी राय देगी।