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किशोरी के मामले में जज की टिप्पणी पर सुप्रीम कोर्ट की सलाह, कहा- उपदेश की जरुरत नहीं

GOVINDA MISHRA
Last updated: 2023/12/08 at 7:14 PM
GOVINDA MISHRA  - Founder Published December 8, 2023
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नयी दिल्ली, आठ दिसंबर (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने कलकत्ता उच्च न्यायालय के उस फैसले की शुक्रवार को कड़ी आलोचना की जिसमें किशोरियों को ‘अपनी यौन इच्छाओं पर नियंत्रण’ रखने और किशोरों को महिलाओं का सम्मान करने की आदत डालने की सलाह दी गई थी। उच्चतम न्यायालय ने साथ ही कहा कि न्यायाधीशों से अपने व्यक्तिगत विचार रखने अथवा उपदेश देने की अपेक्षा नहीं की जाती। शीर्ष अदालत ने उच्च न्यायालय की इन टिप्पणियों को आपत्तिजनक और गैर जरूरी बताया। न्यायमूर्ति अभय एस. ओका और न्यायमूर्ति पंकज मिथल की पीठ ने कहा कि ये टिप्पणियां संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत प्रदत्त किशोरों के अधिकारों का पूरी तरह से उल्लंघन हैं।

कलकत्ता उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति सी रंजन दास और न्यायमूर्ति पार्थ सारथी सेन की खंडपीठ ने 18 अक्टूबर के अपने आदेश में कहा था कि किशोरियों को अपनी ‘‘यौन इच्छाओं पर नियंत्रण’’ रखना चाहिए और ‘‘दो मिनट के सुख के लिए खुद को समर्पित नहीं करना चाहिए।’’ शीर्ष अदालत ने कहा कि उच्च न्यायालय के समक्ष मुद्दा 19-20 सितंबर 2022 के आदेश और निर्णय की वैधता का था जिसके तहत एक व्यक्ति को धारा 363 (अपहरण) और 366 के तहत दोषी ठहराया गया था।

पीठ ने कहा, ‘‘प्रधान न्यायाधीश के आदेश के अनुसार स्वत: संज्ञान रिट याचिका दाखिल की गई है, खासतौर पर उच्च न्यायालय की खंडपीठ द्वारा दर्ज की गई व्यापक टिप्पणियों-निष्कर्षों के कारण।’’ पीठ ने कहा, ‘‘ दोषसिद्धि के खिलाफ एक अपील में उच्च न्यायालय को केवल याचिका के गुण-दोष पर निर्णय करने के लिए कहा गया था। प्रथम दृष्टया हमारा विचार है कि ऐसे मामले में माननीय न्यायाधीशों से अपने व्यक्तिगत विचार व्यक्त करने या उपदेश देने की अपेक्षा नहीं की जाती है।’’

पीठ ने अपने निर्णय में कहा,‘‘ फैसले के सवधानीपूर्वक अध्ययन के बाद हमने पाया कि पैराग्राफ 30.3 सहित उसके कई हिस्से आपत्तिजनक और गैर जरूरी हैं। प्रथम दृष्टया उपरोक्त टिप्पणियां संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत प्रदत्त किशोरों के अधिकारों का पूरी तरह से उल्लंघन है । पीठ ने मामले में पश्चिम बंगाल सरकार और अन्य पक्षों को नोटिस जारी करते हुए कहा, ‘‘हमारा प्रथम दृष्टया यह मानना है कि न्यायाधीशों से व्यक्तिगत विचार व्यक्त करने या उपदेश देने की अपेक्षा नहीं की जाती।’’

शीर्ष अदालत ने इस मामले में अपनी सहायता के लिए वरिष्ठ अधिवक्ता माधवी दीवान को न्याय मित्र नियुक्त किया। न्यायालय ने न्याय मित्र की सहायता के लिए अधिवक्ता लिज मैथ्यू को अधिकृत किया है। मामले की अगली सुनवाई के लिए चार जनवरी 2024 की तारीख निर्धारित की गई है।

उच्च न्यायालय ने यह फैसला एक लड़के की यचिका पर सुनाया जिसे यौन उत्पीड़न के जुर्म में 20वर्ष की सजा सुनाई गई थी। उच्च न्यायालय ने लड़के को यह कहते हुए बरी कर दिया था कि यह दो किशोरों के बीच सहमति से यौन संबंध का मामला था हालांकि पीड़िता की उम्र को देखते हुए सहमति का कोई मतलब नहीं है।

GOVINDA MISHRA

Proud IIMCIAN. Exploring World through Opinions, News & Views. Interested in Politics, International Relation & Diplomacy.

TAGGED: advice of sc judge, comment, law latest update, law news, law update, supreme court judge
GOVINDA MISHRA December 8, 2023 December 8, 2023
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