दिल्ली में 10 साल से ज्यादा रहने के बाद लॉकडाउन में घर लौटा। नौकरी छोड़ी और खुद का काम शुरू किया। फ्रीडम किसको पसंद नहीं? लेकिन समस्या तो है हर जगह। महानगर में रहने के दौरान खुद के लिए समय नहीं मिल पाता था। और घर वापस लौटा तो सब कुछ बदल गया। श्री मां कहती है कि जैसा समाज हो वैसा ढल जाना चाहिए। प्रयास जारी है.. कुछ बातों से आज भी आकर्षण खत्म नहीं हुआ। उसमें अपना गांव अकबरपुर रोहतास औऱ कैमूर पहाड़ियां रही। आज भी गाहे बगाहे निकल जाता हूं एक्सप्लोर करने पूरे इलाके को। साउथ दिल्ली और मेरे प्यारे शहर डेहरी-ऑन-सोन के बीच कुछ भी समानता नहीं है। रात 11 बजे से तफरी शुरू करते औऱ 2 बजे तक दिल्ली के सड़कों को छानते रहते। ना ग्रीन पार्क में आइस्क्रीम खाने का मौका मिलता ना ही मूलचंद के पराठे खाने के लिए लॉन्ग ड्राइव जाने का मौका। ले देकर एक रेलवे स्टेशन है जहां रात में चाय पीने, नए चेहरे देखने को मिल जाता।
अपना शहर बहुत खुबसुरत है। सोन नद का किनारे का यह शहर एक समय में बिहार के महत्वपूर्ण उद्योग समुह का हिस्सा रहा। समय बदला लेकिन नियति बिगड़ती गई।वक्त बदला। लेकिन अपनी दिवानगी कम नहीं हुई। गांव के नाम पर जिले का नाम है तो स्वांतसुखाए की भावना रहती ही है हमेशा। आज सुबह 4 बजे नींद खुली और मोबाइल पर पूराने रिल्स देखने लगा। याद आ रहा नौहट्टा के दारानगर गांव के किनारे में कड़ाके की ठंड में खेत में पूरी रात रुका। नौहट्टा के पत्रकार विजय कुमार पाठक जी का सोन नद् के किनारे खेत है और गांव के लोग आवारा पशुओं (लमटेर) के खेत को बचाने के लिए वहीं रहते हैं। ग्रामीणों की समस्या ऐसी है जिसका निदान प्रशासनिक स्तर पर कतई संभव नहीं है।
बिहार को राजनीतिक तौर पर पंगु किया गया। बिहार के विकास को। इसका कारण समझने का प्रयास करता हूं। विकास के नाम पर राजनीति है और राजनीति का आधार केवल जाति है। जबकि पिछले तीस वर्षों के सामाजिक न्याय की कथित राजनीति से किसी भी जाति का भला हुआ हो मुझे नहीं लगता। इन सब बातों पर कई बार चर्चा व्यर्थ लगती है। क्योंकि समस्या का समाधान कई बार समझ में नहीं आता। देश के कई कोनों में लोग बस चुके है। माइग्रेशन अब भी जारी है। निवेश की खबरों के बावजूद उद्योग का नहीं लगना अचरत में डालता है। सार्थक पहल का अभाव दिखता है। बिहार वैभव का प्रतीक रहा और अभाव युवाओं को व्यथित करते हैं। खैर इंसान को सकारात्मक रहना चाहिए। कुछ बेहतर हो इसका इंतजार है!
गोविंदा मिश्रा,
फाउंडर- केबी न्यूज
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