
कोचस (रोहतास) बुधवार के दिन 125 कुण्डीय श्रीलक्ष्मी नारायण महायज्ञ हवन पूजन के साथ सम्पन्न हुआ। इस पावन अवसर पर जिसमें लगभग डेढ़ लाख लोगों ने यज्ञ भगवान का प्रसाद ग्रहण किये। बाहर से आये साधु संतो को यज्ञ समिति का अध्यक्ष सह आयोजक मंजीव मिश्र ने अंगवस्त्र, कंबल, चादर व नगदी देकर विदाई किया। यज्ञ का छठे दिन श्री जियर स्वामी ने कहा की लोग अपने पुत्री एवं पुत्रों के मोह माया में फसकर भगवान के चरणों को भूल जाते हैं। मन इधर उधर भटकता है वहीं माया है। उन्होंने माया पर वृहद चर्चा करते हुए कहा की एकबार माया के फेरे में पड़ गये थे। नारद ने माया की छाया में वशीभुत हो अहंकार के साथ अपने पिता ब्रम्हाजी से कहे कि हे पिताजी आप कामदेव पर विजय प्राप्त नहीं किया हमने कर लिया है। ब्रम्हा जी ने कहा कि यह हमसे तो कहा पर भगवान शिव एवं लक्ष्मीपति से नहीं कहना। लेकिन नारद जी मानने वाले कहा थे। वे दोनों लोग से भी जाकर कहा की आपलोग कामदेव पर विजय प्राप्त नहीं किये हैं, लेकिन मैने प्राप्त कर लिया हूं। कुछ ही दिन के बाद माया के घेरे में पड़कर सुंदर कन्या के प्राप्ति के लिए भगवान विष्णु का रूप माँगा, भगवान ने उन्हें बंदर का रूप दे दिया।