
डेहरी आन सोन
आत्मोद्धार का सर्वश्रेष्ठ साधन है भक्ति। लेकिन आज की भक्ति अज्ञान , आडम्बरयुक्त जड़ भक्ति है।जड़ भक्ति से ऊपर उठकर भक्ति के चेतन पथ पर अग्रसर होने की आवश्यकता है। उक्त बातें विहंगम योग के सद्गुरु आचार्य श्री स्वतंत्रत देव जी महाराज ने शनिवार को कटार स्थित सद्गुरु सदाफल देव आश्रम परिसर में विहंगम योग के प्रथम परंपरा सद्गुरु आचार्य श्री धर्मचंद्र देव जी महाराज के 105 वीं जन्म जयंती के पावन अवसर पर चल रहे त्रिदिवसीय विहंगम योग समारोह के समापन पर उपस्थित भक्तों से कही । उन्होंने कहा कि योग का मूल स्वरूप आत्मज्ञान व परमात्मज्ञान की आंतरिक साधना की प्रक्रिया गौण होती जा रही है। विहंगम योग एक संपूर्ण योग है। जिसके मध्यम से शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक व आत्मिक विकास संभव है। संत प्रवर श्री विज्ञान देव जी महाराज ने बताया कि मानव जीवन अनमोल है, यह ईश्वर का महान प्रसाद है। हमारे भीतर अनन्त की शक्ति है, अनन्त आनन्द का श्रोत है। आत्मा के अंदर अन्तरात्मा रूप से ईश्वर ही विराजमान है। आवश्यकता है आध्यामिक ज्ञान की , स्वर्वेद सद्ज्ञान की, ध्यान की, जिसके आलोक में एक साधक का जीवन सर्वोन्मुखी विकास होता है। इस परम निर्वाण कार्यक्रम में उत्तर प्रदेश के साथ दिल्ली उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, बंगाल, ,राजस्थान हरयाणा, बिहार, झारखंड,छत्तीसगढ़,, आदि प्रदेशों से विहंगम योग के अनुयायी साधक पहुंचे थे ।