कैब में बैठने के बाद बीड़ी की गंध मिली। बिहारी जब इलिट् हो जाता है तो उसके दुनिया देखने का भी नजरिया बदल जाता है। ठेठ बिहारन को चारपाई पर बैठ आज यही कहानी सुना रहा था। यात्रा करीब 12 किलोमीटर की थी। और कार में आने वाली बीड़ी की दुर्गंध ने कान में बजने वाले भोजपुरी म्यूजिक सुनने का मजा किरकिरा कर दिया था। मन में यही चल रहा था कि आखिर ये ड्राइवर एटिकेट कब सीखेंगे। इनको यह नहीं समझ में आता कि कैब में बैठने वाले हम जैसे लोगों का क्लास कौन सा है। इस तरह की बतदमिजी बर्दाश्त से बाहर होती जा रही थी। पत्रकार मन चुप रहने को कह रहा था तो बिहारी इलिटिज्म ड्राइवर की धज्जियां उड़ाने को। खैर 22 मिनट बितते बितते हम अपनी डेस्टिनेशन पर पहुंच गए थे। ठेठ बिहारन अपने गंवई अंदाज में पूछ ही ली कि ऐ जी आज मुंह काहे बिचकाएं हैं। कुछो बात है का? मैं सकपकाया रह गया और………………… !