गोविंदा मिश्रा,
संपादक-केबी न्यूज
अधिकारी अब बदल गए। पहले भी वैसे ही रहे होंगे शायद। या फिर हमारी मुलाकात वैसे से नहीं हुई। जैसे आज समाज में मौजूद है। शायद लोगों से किसी भी तरह का वास्ता नहीं रहा। समाज बदला है औऱ उसका असर साहेब पर भी हो गया। या फिर घमंड आ गया। पत्रकार ने सवाल पूछा तो धमकाने के अंदाज में मैसेज देने लगे। शायद उन्हें अल्पज्ञानी संवाददाताओं से ज्यादा वास्ता रहा होगा। खबरों की लेन देन करते होंगे। देश के प्रतिष्ठित सेवाओं के अधिकारियों का यह हाल है। पद मिला और लगा कि नौकरशाही अंग्रेजी हुकुमत वाली मिल गई। केंद्रीय सेवाओं के ज्यादातर अधिकारियों का यही हाल है। खासकर जिनकी नियुक्ति हाल के 10 से 12 साल के भीतर हुई है। पटना दिल्ली में बैठने वाले अधिकारी इन्हीं बातों से परेशान रहते हैं। मसूरी, दिल्ली और हैदराबाद की ट्रेनिंग में पब्लिक डिलिंग सही तरीके से शायद नहीं सिखाई जा रही। जिले के कलेक्टर और एसपी का आम जन से कोई वास्ता नहीं रहा और उनके मातहम अधिकारी भी उसी ढर्रे पर चल रहे हैं। अन्य केंद्रीय सेवाओं वाले अधिकारियों को याद ही नहीं रहता कि कुर्सी जनता की है और मीडिया सवाल पूछने के लिए। नियमों का पाठ पढ़ाने वाले ये अधिकारी कितने नियमों में बंधे हैं सब को पता है। नीतीश राज में अफशरशाही बढ़ गई और लालू राज से इनका डर खत्म हो गया। वो वही राज था जब राजद के कार्यकर्ता इनके सर पर बैठकर आम लोगों का काम करा लेते थे। यूपीएससी के सिलेबस में बदलाव हुआ और चयन उस तरह के अधिकारियों का हो रहा है जिनके सर पर कुर्सी का भूत सवार है। किस्सा कुर्सी का है औऱ कुर्सी पर जाने के बाद व्यक्ति के असली धैर्य की परीक्षा होती है। सवाल पूछने वालों से सवाल करने से पहले ये समझ लेना चाहिए कि आप हमेशा सवालों के घेरे में है। कानून का पाठ पढ़ाने से पहले ये ध्यान रखना चाहिए कि कानून की समझ कुर्सी वालों को केवल नहीं है। मीडिया आपको आस पास झांकने का भी मौका नहीं देगी। और हां आप ये मत भूलिए की आप सामाजिक क्षेत्र में हैं जहां आपको हमेशा याद किया जाएगा। इसी जिले में डीएफओ संजय सिंह थे। जिन्होंने अपने काम की बदौलत पहचान बनाई। आम लोगों की सरोकार के कारण मातृभूमि को न्योछावर हुए। इसी जिले में एसपी बच्चू सिंह मीणा, विकास वैभव और मनु महाराज भी थे। जिनको लोग गाहे बगाहे याद करते हैं।