गोविंदा मिश्रा, ऑरोविल।
साल 1996 का था। देश की राजधानी में स्थित प्रतिष्ठित फैशन डिजाइनिंग संस्थान निफ्ट से पढ़ाई पूरी करने के बाद तमिलनाडू के ऑरोविल में उमा पहुंची और फिर यही की हो गईं। मूल रुप से बिहार की रहने वाली उमा अंतराष्ट्रीय स्तर की ख्याति प्राप्त फैशन डिजाइनर हैं। उपासना नामक स्टोर का वो संचालन करती है। उनसे केबी न्यूज की टीम ने लंबी बातचीत की। दो दशक से ज्यादा समय से वो यहां पर हैं औऱ ऑरोविल के विकास गाथा को बड़े फख्र के साथ बताती हैं। उमा कहती हैं कि जब को इस अंतराष्ट्रीय शहर में पहुंची तो जीवन काफी सरल था। ऑरोविल वासियों को काफी समस्याओं के बीच काम करना पड़ता था। बदलाव के लिए लगातार यहां के लोगों ने काम किया। जिसकी परिणति बिल्डिंग और सड़के दिखती हैं। बंजर जमीन को हरा भरा करने के लिए ऑरोवील के लोगों ने लगातार मेहनत की।
श्री अरविंद की आधायात्मिक सहयोगिनी श्रीमां ने एक ऐसे शहर का सपना देखा था। जिसमें लोग धर्म की अवधारणा से दूर होकर मानवीय एकता के सपनों को साकार कर सके। आज इस शहर में करीब 60 देश के 1400 से ज्यादा लोग रहते हैं। इसके अलावा देश औऱ दुनिया के कई कोनों से लोग आकर वॉलंटियर कर रहे हैं। शिक्षा, स्वास्थ्य, योग में किए जा रहे प्रशंसनीय कार्य के कारण ऑरोविल पूरी दुनिया में जाना जाता है । स्थानीय निवासियों का मानना है कि पहली पीढ़ी के लिए यहां जीवन काफी मुश्किल भरा था। ऑरोवील की ख्याति इसलिए भी है कि यह शहर धर्म की अवधारणा को छोड़ने औऱ जीवन में अधयात्म को स्वीकारने की बात करता है।
मातृमंदिर में दर्शन के लिए हजारों की संख्या में लोगों की भीड़ उमड़ती है। इटली की रहने वाली लोपा सरीखे दर्जनों युवा-युवती इस शहर में रहकर मानवीय एकता के विश्व सपनों को साकार करने के लिए लगातार काम कर रहे हैं। शिक्षा में अद्भूत प्रयोग किया जा रहा है। दर्जनों स्कूल का संचालन मानवीय चेतना के विकास के लिए किया जा रहा है। जिसमें पढ़ने वाले बच्चे अपने जीवन को बेहतर करने के साथ साथ दुनिया में अपनी अलग पहचान बना रहे हैं। इस अंतराष्ट्रीय शहर में पूरी दुनिया के हर देश का अपना सांस्कृतिक केंद्र होगा। अगर आप यहां आते हैं तो निश्चित तौर पर एक बार इसे समझने का प्रयास करें। मातृमंदिर के अलावा एक बार फ्रेंच पैवेलियन, भारत केंद्र औऱ सावत्री भवन जरूर देखें।