गोविंदा मिश्रा
दक्षिण बिहार के सभी जिलों में नक्सलवाद बीते दिनों की बात हो गई। इसका कारण सरकार या कोई राजनीतिक दल नहीं रहा। आम लोगों के बीच इनकी पैठ कम होने का कारण माओवादी की उग्र सोच रही। जिससे दशकों तक विकास प्रभावित होता रहा। जनता को भटकाव से दूर करने में बड़े प्रशासनिक अधिकारियों की मुख्य भूमिका रही। आज बिहार के ज्यादातर जिलों में इसको पनाह देने वाले लोगों का माओवादियों से पूरी तरह मोह भंग हो गया। आज मेरे गृह जिले के नक्सल प्रभावित इलाके के लोगों के बच्चे बेहतर रोजगार और जीवन के अवसर तलाश रहे हैं। दो वर्ष पूर्व रोहतासगढ़ किले घूमने का मौका मिला। वहां आज भी जीवन पूराने ढर्रे पर चल रहा है। रोहतास बाजार से पहाड़े के गांवों में जाने वाली जीप पर लगी लाल मिट्टी साफ दिखा रही थी कि जीवन पथरीले रास्तों से गुजर रहा है। सड़क और रोपवे निर्माण की खबरों से वास्ता पड़ता है। लेकिन असल में क्या हुआ इससे किसी को लेना देना नहीं है। कम से कम सरकार नक्सलवाद के खत्म होने के दो दशक के बाद भी विकास के रास्ते पर इस इलाके को नहीं ला सकी। बिजली की उपलब्धता के लिए प्रयास की बात हो रही है। लेकिन बिहार सरकार के मुखिया का सालों पहले इस इलाके में आने की बात का कोई मतलब नहीं दिखता है। खैर इलाका बदल गया। कैमूर पहाड़ी के दो पंचायत दो प्रखंडों में बंटे हुए हैं। विकास का रास्ता पहाड़ के नीचे के रोहतास बाजार, पटना, गढ़वा और रांची से तय होता है। सरकारी नौकरी की तैयारी के लिए वनवासी समाज के बच्चे गांवों से चले गए हैं।
कॉम्यूनिटी पुलिसिंग का दिखा बेहतर नतीजा
बिहार के रोहतास जिले में कॉम्यूनिटी पुलिसिंग (सामुदायिक पुलिसिंग) का सबसे बेहतर परिणाम दिखा। तत्कालीन एसपी विकास वैभव ने आम लोगों के बीच विश्वास का माहौल बनाया। आगे के दौर में इसका असर नक्सलवादियों को पूरी तरह खत्म होने में दिखा। विश्वास के इस माहौल के कारण साल 2015 आते आते रोहतास जिले में माओवादी गतिविधियां पूरी तरह सीमट गईं।रोहतास जिले के नौहट्टा औऱ रोहतास प्रखंड में रहने वाले ज्यादातर लोगों के लिए नक्सलवादियों की कहानी किस्से औऱ कहानियों में रह गई है। हत्या और जनअदालत की बातें कुछ नेताओं और पत्रकारों से ही केवल सुनने को मिलती है।
मोदी सरकार के आने के बाद बदली है सूरत
आंदोलनकारी औऱ आंदोलनजीवी एनजीओ के अलावा माओवादियों के शहरी समर्थकों की संख्या काफी कम हो गई है। केंद्र सरकार की नीतियों औऱ कार्यप्रणाली के कारण इनका आम लोगों से मिलने वाला समर्थन कम हो गया है। यूं कहे तो मानसिक दोहन कर विकास को प्रभावित करने वाले संगठन अब लगभग मृतप्राय हो चुके हैं।
लेकिन अभी भी नक्सलवादियों की चपेट में छत्तीसगढ़, उड़ीसा हैं। झारखंड भी इससे प्रभावित दिखता है या दिखाया जाता है। केंद्रीय मंत्री अमित शाह छत्तीसगढ़ के दौरे पर जा रहे हैं। बीजेपी सरकार के गठन के बाद वहां पर लगातार नक्सलियों के विरुद्ध कठोर कार्रवाई की जा रही है। पांच दर्जन से ज्यादा नागरिकों को जान गंवानी पड़ी वो भी कंगारू जनअदालत के माध्यम हुई जनसुनवाई के दौरान। बंदूक का रास्ता छोड़ने के लिए इसके लिए सरकार लगातार प्रेरित कर रही है। प्रदेश सरकार मुख्यधारा में लौटने वाले नक्सलियों औऱ उनके परिजनों के लिए रोजगार के अवसर मुहैया करा रही है। आवासों का निर्माण किया जा रहा है। अमित शाह अपने दो दिवसीय प्रवास के दौरान के दौरान बस्तर के नक्सल प्रभावित इलाके के कैंप में रहेंगे। इस दौरान आसाम के विधायक गोबिंदा चंद्र बसुमतारी अपने साथियों के साथ बस्तर पहुंच रहे हैं। इस दौरान बोडो आंदोलन में सक्रिय रहे गोबिंदा मुख्यधारा में आने के बाद जीवन में आए बदलाव के लोगों को परिचित कराएंगे।
(लेखक केबी न्यूज के मैनेजिंग एडिटर हैं। 13 वर्षों से पत्रकारिता में सक्रिय। उनसे [email protected] पर संपर्क किया जा सकता है।)