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डिजिटल टीम, नई दिल्ली। मेरी उंगली पकड़ के चलते थे, अब मुझे रास्ता दिखाते हैं। मुझे किस तरह से जीना है, मेरे बच्चे मुझे सिखाते हैं। बदलते सामाजिक परिवेश में इन पंक्तियों की प्रासंगिकता पूरी तरह गौड़ हो जाती है। दरअसल, मध्य प्रदेश के 90 साल की एक महिला के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। वरिष्ठ नागरिकों के भरण-पोषण से जुड़े कानून में ऐतिहासिक बदलाव किया गया है। सुप्रीम कोर्ट ने पिछले दिनों दिए अपने एक फैसले में साफ कर दिया कि इस कामून में माता-पिता औऱ वरिष्ठ नागरिकों के भरण पोषण और कल्याण अधिनियम 2007 के तहत गठित न्यायाधिकरण संपत्ति के हस्तांतरण व बेदखली का आदेश दे सकते हैं।
90 साल की महिला उर्मिला दीक्षित ने की थी अपील
मध्य प्रदेश की रहने वाली 90 साल की महिला उर्मिला दीक्षित ने दावा किया था कि जीवन के अंतिम समय तक देखरेख करने का वादा उनके बच्चों ने नहीं निभाया। सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के 2022 के फैसले को खारिज कर दिया। जिसमें न्यायाधिकरण के फैसले को बरकरार रखने वाले एकल पीठ के आदेश को खारिज किया गया था। अपीलकर्ता उर्मिला दीक्षित की ओर से बेटे सुनील शरण और अन्य के पक्ष में 1968 में अर्जित संपत्ति के संबंध में दिए उपहार विलेख को 2019 में रद्द किया गया था। शीर्ष कोर्ट ने इस मामले में 28 फरवरी 2025 तक अपीलकर्ता को संपत्ति को वापस करने का आदेश दिया।

मामले में सुप्रीम कोर्ट में महिला की ओर से वकील डॉक्टर सर्वम ऋतम खरे ने बताया कि जस्टिस सीटी रविकुमार और जस्टिस संजय करोल की पीठ ने कहा कि 2007 का कानून वरिष्ठ नागरिकों के समक्ष आने वाले चुनौतियों को देखते हुए उनके अधिकारों को सुरक्षित करने के लिए लाभकारी कानून है। यह नहीं कहा जा सकता है कि अधिनियम के तहत गठित न्यायाधिकरण धारा-23 के तहत अधिकार का प्रयोग करते हुए कब्जे को हस्तांतरित करने का आदेश नहीं दे सकते। पीठ का कहना था कि इससे हटकर निर्णय लेने से कानून का मकसद विफल हो जाएगा। खरे के अनुसार, शीर्ष कोर्ट ने कहा कि हमारे विचार से धारा 23 के तहत वरिष्ठ नागरिकों को उपलब्ध राहत अधिनियम के उद्देश्यों और कारणों से जुड़ा हुआ है। देश के बुजुर्ग नागरिकों की देखभाल नहीं कई मामलों में सही तरीके से नहीं की जा रही है। यह अधिनियम के उद्देश्यों को आगे बढ़ाने में प्रत्यक्ष रुप से सहायक है और बुजुर्गों को संपत्ति हस्तांतरित करते समय अपने अधिकारों को तुरंत सुरक्षित करने का अधिकार देता है। बशर्ते हस्तांतरितकर्ता द्वारा रखरखाव किया जाए।
अध्यात्मिक संस्थान से जुड़ी हिमानी गुप्ता कहती हैं कि शीर्ष न्यायालय का यह निर्णय वास्तव में सराहनीय है। क्योंकि यह वरिष्ठ नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करता है तथा बच्चों को उनकी जिम्मेदारियों की उपेक्षा करने के लिए उत्तरदायी ठहराता है। माता-पिता हमारे जीवन को आकार देने में एक अमूल्य भूमिका निभाते हैं। हमारे जीवन का उपहार ही उनका सबसे बड़ा योगदान है। उनकी देखभाल करना वह कम से कम है जो हम बदले में कर सकते हैं। मुझे खुशी है कि यह निर्णय वरिष्ठ नागरिकों को, विशेष रूप से उनके सबसे विषम वर्षों के दौरान, बहुत जरूरी सहायता और सुरक्षा प्रदान करेगा।
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