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Reading: दिल्ली विधानसभा चुनाव नतीजे तय करेंगे आआपा का भविष्य
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विचारसमकालीन

दिल्ली विधानसभा चुनाव नतीजे तय करेंगे आआपा का भविष्य

GOVINDA MISHRA
Last updated: 2025/01/25 at 10:32 AM
GOVINDA MISHRA  - Founder Published January 25, 2025
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मनोज कुमार मिश्र

5 फरवरी, 2025 को होने वाले दिल्ली विधानसभा चुनाव के नतीजे 08 फरवरी, 2025 को घोषित होंगे। केवल इस विधानसभा चुनाव में अगर जीत न मिल पाई तो आम आदमी पार्टी (आआपा) का बिखरना तय माना जा रहा है। चुनाव में तो वैसे अनेक दल अपने उम्मीदवार खड़े किए हुए हैं लेकिन चुनाव आआपा, भाजपा और कांग्रेस के बीच माना जा रहा है। अपने 13 साल के राजनीतिक जीवन की सबसे कठिन लड़ाई लड़ रहे आआपा के सर्वेसर्वा और दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की साख दांव पर है। शराब घोटाले में छह महीने जेल में रहने के बाद सुप्रीम कोर्ट से सशर्त जमानत पर बाहर आते ही उन्होंने विधानसभा चुनाव प्रचार शुरू कर दिया। संभावित हार से आशंकित केजरीवाल हर रोज कोई न कोई घोषणा करके चुनावी बाजी पलटने में लगे हुए हैं। उनके कट्टर ईमानदार की छवि को शराब घोटाले से अधिक शीशमहल (मुख्यमंत्री की सरकारी कोठी पर करोड़ों खर्च करके महल बनाने का मामला) कांड ने खराब कर दिया है। कैग (सीएजी) रिपोर्ट ने उनके और उनकी सरकार के भ्रष्टाचार के मामले उजागर करके उनको महाभ्रष्ट साबित कर दिया। उस रिपोर्ट को विधानसभा में न पेश करके उन्होंने अपनी खूब बेइज्जती करवाई। जिसे आम लोग कहते थे वही देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कह दिया। वे आआपा को आप-दा कहने लगे हैं और उनका कहना है कि हार को टालने के लिए केजरीवाल रोज कोई न कोई घोषणा कर रहे हैं।

1998 से दिल्ली की सत्ता से बाहर रही भाजपा इस बार पूरे दमखम से सत्ता पाने के लिए लगी हुई है। चुनाव प्रचार के आखिरी दौर में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, गृहमंत्री अमित शाह, भाजपा अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा से लेकर देशभर के बड़े भाजपा नेता, अनेक राज्यों के मुख्यमंत्री व नेता दिल्ली में सभा कर रहे हैं। दिल्ली में विधानसभा की 70 सीटें हैं। हर सीट पर भाजपा ने कई स्तर के नेताओं को जिम्मेदारी दी है। गुटबाजी टालने के लिए भाजपा ने बिना मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित किए चुनाव लड़ना तय किया है। चुनाव की घोषणा थोड़े ही दिन पहले हुई लेकिन भाजपा तो काफी समय से केजरीवाल और उनकी टीम का पर्दाफाश करने में लगी हुई है। इस बार सोशल मीडिया पर भी भाजपा आआपा से काफी आगे है। आआपा के सर्वेसर्वा केजरीवाल ने खुद पार्टी में शुरू से जुड़े अनेक बुद्धिजीवियों को पार्टी से अलग करके अपने हाथ काट लिए। अब उनका बचाव करने वाले बेहद नौसीखिए हैं जो रटा रटाया बयान दोहराकर अपनी और अपनी पार्टी की जगहंसाई करवा रहे हैं।

सालों दिल्ली पर राज करने वाली कांग्रेस साल 2013 यानी आआपा के वजूद में आने के बाद से लगातार हाशिए पर पहुंचती जा रही है। लगातार 15 साल दिल्ली की मुख्यमंत्री रही शीला दीक्षित 2013 का विधानसभा चुनाव न केवल खुद हारी बल्कि कांग्रेस को 24.50 फीसद वोट और केवल आठ सीटें मिली। 2015 के विधानसभा चुनाव में उसे कोई सीट नहीं मिली और उसका वोट औसत घटकर 9.71 फीसद रह गया। इतना ही नहीं 2020 के विधानसभा चुनाव में उसे केवल 4.26 फीसद वोट मिले। अभी 2024 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस का आआपा से सीटों का तालमेल था। सात में से तीन सीटों पर कांग्रेस और चार पर आआपा लड़ी। चुनाव में सभी सातों सीटें भाजपा लगातार तीसरी बार जीती। कांग्रेस को 18.50 फीसद वोट मिले। कांग्रेस के ताकतवर हो जाने के डर से इस चुनाव में आआपा ने कांग्रेस से समझौता नहीं किया लेकिन कांग्रेस ने मजबूती से चुनाव लड़ना तय किया।

कांग्रेस ने अपने मूल वोटर-अल्पसंख्यक, दलित और पूर्वांचल (पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड के मूल निवासी) के लोगों का समर्थन पाने के लिए चुनाव में पूरी ताकत झोंक दी है। दिल्ली में मुस्लिम आबादी अब 12 से बढ़ कर 15 फीसद से ज्यादा हो गई है। 70 में से 17 सीटें ऐसी हैं जहां मुस्लिम मतदाता 20 फीसद से ज्यादा हैं। इनमें सीलमपुर, मटिया महल, बल्लीमरान, ओखला, मुस्तफाबाद, किराड़ी, चांदनी चौक, गांधीनगर, करावल नगर, विकास पुरी, ग्रेटर कैलाश, कस्तूरबा नगर, बाबरपुर, मोतीनगर, मालवीय नगर, सीमापुरी और छत्तरपुर शामिल हैं। उनपर कांग्रेस के न केवल उम्मीदवार मजबूत हैं बल्कि कांग्रेस पूरी ताकत से लगी है। इसी तरह 12 अनूसूचित जाति के लिए आरक्षित सीटों पर भी कांग्रेस ने पूरी तैयारी की है। दलितों में कांग्रेस का कुछ असर अब भी बचा है। उन इलाकों में कांग्रेस की सभा में भीड़ जुट रही है। पूर्वांचल के प्रवासी दिल्ली में सालों कांग्रेस का साथ देकर उसे सत्ता दिलाते रहे। दिल्ली के 70 में से 42 सीटों पर पूरबियों (पूर्वांचल के प्रवासी) का वोट 20 फीसद से ज्यादा है।

यह तीनों और दिल्ली के गांव का एक वर्ग अगर कांग्रेस से जुड़ जाए तो उसके पुराने दिन लौट आ जाएंगे। कांग्रेस इस चुनाव में धन-बल से इस प्रयास में लगी है। कांग्रेस के सबसे लोकप्रिय नेता राहुल गांधी दिल्ली के अल्पसंख्यक इलाकों से जनसभा की शुरुआत कर चुके हैं।

कांग्रेस यह संदेश देने में लगी है कि वही देशभर में भाजपा से लड़ रही है। 2022 के नगर निगम चुनाव में कांग्रेस को सात अल्पसंख्यक सीटों पर जीत दिला कर यह संदेश पहले ही दे दिया था। इसी भरोसे 2013 के चुनाव में कांग्रेस को अल्पसंख्यकों का साथ मिला तो उसके वोट औसत बढ़ गए और साथ छोड़ा तो कांग्रेस हाशिए पर पहुंच गई। दिल्ली में भ्रष्टाचार के खिलाफ समाजसेवी अण्णा हजारे के आंदोलन में शामिल अनेक लोगों ने 26 अक्तूबर, 2012 को आआपा के नाम से राजनीतिक दल बनाकर 2013 में होने वाले दिल्ली विधानसभा चुनाव लड़ना तय किया। वैसे अण्णा हजारे ने राजनीतिक पार्टी बनाने का विरोध किया था। पहले ही चुनाव में ही बिजली-पानी फ्री का मुद्दा कारगर हुआ। आआपा को 70 सदस्यों वाले विधानसभा में करीब 30 फीसद वोट और 28 सीटें मिली। भाजपा करीब 34 फीसद वोट के साथ 32 सीटें जीती। दिल्ली में 15 साल तक शासन करने वाली कांग्रेस को 24.50 फीसद वोट के साथ केवल आठ सीटें मिली। माना गया कि दिल्ली का अल्पसंख्यक भाजपा को हराने वाले दल का सही अनुमान लगाए बिना कांग्रेस को वोट दिया था। अगले चुनाव में अल्पसंख्यक आआपा से जुड़ गए तो कांग्रेस हाशिए पर पहुंच गई।

कांग्रेस की कमजोरी और भाजपा की अधूरी तैयारी के चलते और बिजली-पानी फ्री के वायदे ने आआपा को 2015 के चुनाव में दिल्ली विधानसभा में रिकार्ड 54 फीसदी वोट के साथ 67 सीटों पर जीत दिलवा दी। उस चुनाव ने कांग्रेस को भारी नुकसान पहुंचाया। कांग्रेस कोई सीट नहीं मिली और उसका वोट औसत घट कर 9.7 पर आ गया। 2020 के विधानसभा चुनाव में आआपा को फिर से भारी जीत मिली। उसे 70 में से 62 सीटें मिली। फिर तो आआपा पंजाब में भी विधानसभा चुनाव जीत कर सरकार बना ली और अखिल भारतीय पार्टी का दर्जा हासिल कर लिया। इतना ही नहीं वह जगह-जगह कांग्रेस का विकल्प बनने की कोशिश करने लगी। इस दौरान विभिन्न आरोपों में एक-एक करके आआपा नेताओं की गिरफ्तारी और शराब घोटाले की आंच पार्टी के प्रमुख केजरीवाल तक पहुंचने, उनकी गिरफ्तारी आदि ने आआपा की साख को बट्टा लगा दिया। इस चुनाव में तो आआपा को हराने के लिए मुफ्त की रेवड़ियां घोषित करने में आआपा से आगे कांग्रेस और भाजपा निकल गई। भाजपा ने तो किश्तों में घोषणा (संकल्प) पत्र जारी किया और यह अभी जारी है। कांग्रेस भी आआपा से एक कदम आगे बढ़ कर घोषणाएं करनी शुरू कर दी है। आआपा को उसी के मुद्दे पर विरोधी दलों ने बुरी तरह से घेर दिया है। आआपा के लिए बचाव का रास्ता कम बचा है। आआपा के पक्ष में बोलने वाले बड़े नेताओं की तादाद लगातार घट रही है। कुछ को केजरीवाल ने पार्टी से अलग किया और कुछ खुद उनके व्यवहार से बाहर हो गए।

जेल जाने के बावजूद अरविंद केजरीवाल ने मुख्यमंत्री की कुर्सी नहीं छोड़ी और सुप्रीम कोर्ट ने जब जमानत देते हुए उन्हें दफ्तर न जाने, सरकारी फाइल न देखने आदि की हिदायत दी तब मुख्यमंत्री पद छोड़कर आतिशी को मुख्यमंत्री बना दिया। वह पहले दिन से अपने को केयरटेकर बताने में लगी हुई हैं। जिस भ्रष्टाचार को हथियार बनाकर राजनीति शुरू की, उसी भ्रष्टाचार में चारों तरफ से घिर गए। जो काम वे और उनकी पार्टी के लोग गिना रहे हैं, उस पर लोगों को यकीन नहीं हो रहा है। खुद केजरीवाल ने यमुना नदी की सफाई न कर पाने, हर घर को साफ पानी न दे पाने और दिल्ली की सड़कों को न ठीक करवाने के लिए माफी मांग ली। उनके काम के दावों पर लोगों को यकीन नहीं हो रहा है। कहने के लिए आआपा अब राष्ट्रीय पार्टी है। पंजाब में उसकी सरकार है लेकिन दिल्ली हारते ही केजरीवाल पस्त हो जाएंगे। यह पार्टी पूरी तरह से केजरीवाल की पार्टी है। उसके बाद पार्टी को बिखरते देर नहीं लगेगी।

चुनाव प्रचार के दौरान जो दिल्ली का माहौल लग रहा है, उससे यही लग रहा है कि भले कांग्रेस मुख्य मुकाबले में न आ पाए लेकिन इतने वोट पा जाएगी कि आआपा के वोट औसत में भारी गिरावट होगी। इसका लाभ सीधे भाजपा को मिलना तय है। अगर मतदान तक हालात नहीं बदले तो इस बार दिल्ली की सरकार से आआपा दूर हो सकती है। सभाओं के हिसाब से भी ज्यादा भीड़ भाजपा के नेता जुटा रहे हैं। हड़बड़ी में आआपा नेता अरविंद केजरीवाल गलतबयानी कर रहे हैं। रामायण प्रकरण पर उनकी टिप्पणी से उनकी खूब जगहंसाई हुई। हर रोज चुनाव प्रचार तीखा होता जा रहा है। चुनाव प्रचार में घटिया निजी आरोप लग रहे हैं। भाजपा लंबे इंतजार के बाद दिल्ली विधानसभा चुनाव जीतने के लिए और आआपा हार से बचने के लिए कोई कोर-कसर छोड़ने को तैयार नहीं। वैसे तो हर चुनाव महत्वपूर्ण होता है लेकिन यह चुनाव आआपा नेता के राजनीतिक जीवन का सबसे कठिन चुनाव बन गया है।

(लेखक, हिन्दुस्थान समाचार के कार्यकारी संपादक हैं।)

GOVINDA MISHRA

Proud IIMCIAN. Exploring World through Opinions, News & Views. Interested in Politics, International Relation & Diplomacy.

TAGGED: delhi assembly election, DELHI ELECTION, Delhi News
GOVINDA MISHRA January 25, 2025 January 25, 2025
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