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विचारसमकालीन

बूंदों में उम्मीद: बेहतर मानसून से खिलेंगे ब्रज मंडल के खेत, पर जल प्रबंधन है विकट चुनौती

GOVINDA MISHRA
Last updated: 2025/04/16 at 4:18 PM
GOVINDA MISHRA  - Founder Published April 16, 2025
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बृज खंडेलवाल 
____________
भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) ने 2025 के लिए एक अत्यंत उत्साहवर्धक और राहत प्रदान करने वाली भविष्यवाणी जारी की है। इस वर्ष दक्षिण-पश्चिम मानसून सामान्य से अधिक रहने की संभावना है, जिसका अर्थ है कि औसत से लगभग 105% वर्षा होने का अनुमान है। यह शुभ समाचार विशेष रूप से उत्तर प्रदेश और आगरा मंडल के कृषि प्रधान क्षेत्रों के लिए एक नई आशा की किरण लेकर आया है, जहाँ खेती मुख्य रूप से वर्षा पर ही निर्भर करती है।

यमुना नदी के तट पर स्थित ऐतिहासिक शहर आगरा और इसके आसपास का ब्रज मंडल, अपनी उपजाऊ भूमि के लिए जाना जाता है। यहाँ मुख्य रूप से गेहूं, आलू, सरसों और बाजरे जैसी फसलों की खेती की जाती है, जो सीधे तौर पर मानसून की कृपा पर निर्भर हैं। उत्तर प्रदेश के कृषि परिदृश्य की बात करें तो, लगभग 70% कृषि क्षेत्र असिंचित है, और जून से सितंबर के बीच होने वाली 80-85% वार्षिक वर्षा ही इन खेतों के लिए सिंचाई का प्रमुख स्रोत है। ऐसे में, एक प्रचुर मानसून न केवल किसानों की आय में उल्लेखनीय वृद्धि कर सकता है, बल्कि खाद्य पदार्थों की महंगाई को नियंत्रित करने और स्थानीय अर्थव्यवस्था को एक नया जीवनदान देने की क्षमता रखता है।

हालांकि, कृषि क्षेत्र के अनुभवी जानकार एक महत्वपूर्ण प्रश्न उठाते हैं: “पानी तो आएगा, पर बहेगा कहां?” इस संभावित प्राकृतिक वरदान का पूर्ण लाभ उठाने में सबसे बड़ी बाधा जल प्रबंधन की सदियों पुरानी और अनसुलझी समस्याएं हैं। यमुना नदी, जो कभी आगरा की जीवनरेखा मानी जाती थी, आज प्रदूषण, अनियंत्रित शहरी कचरे के प्रवाह और गाद की गंभीर समस्या से जूझ रही है। वर्ष 2023 में, जब यमुना का जलस्तर खतरे के निशान 495 फीट को पार कर गया था, तो निचले इलाकों में विनाशकारी बाढ़ आई थी, जिससे जान-माल का भारी नुकसान हुआ था। इसके अतिरिक्त, सूर सरोवर जैसे महत्वपूर्ण तालाब भी गाद और अतिक्रमण के कारण अपनी मूल जलधारण क्षमता खो चुके हैं। ब्रज मंडल के हजारों छोटे-बड़े तालाब या तो लुप्त हो चुके हैं या सिकुड़ गए हैं, जिसके कारण बारिश के पानी का प्रभावी भंडारण एक बड़ी चुनौती बनी हुई है, ये बताते हैं वृंदावन के ग्रीन एक्टिविस्ट जगन नाथ पोद्दार।

उत्तर प्रदेश के प्रमुख जलाशयों की बात करें तो, माता टीला बांध और धौरा बांध जैसे सिंचाई परियोजनाएं मानसून के जल संग्रहण में आंशिक रूप से सफल रहे हैं। हालांकि, 2023 के आंकड़ों के अनुसार, इनकी वास्तविक उपयोगिता लगभग 60% तक ही सीमित रही, जो इनकी पूरी क्षमता से काफी कम है। सिंचाई के लिए उपयोग की जा रही पुरानी और अपर्याप्त नहर प्रणाली और पारंपरिक तकनीकों के कारण आज भी लगभग 55% कृषि भूमि सीधे तौर पर वर्षा पर ही निर्भर है। दूसरी ओर, कृषि क्षेत्र जलवायु परिवर्तन के बढ़ते प्रभावों का सामना कर रहा है, जहाँ एक ही समय में कुछ क्षेत्रों में सूखा पड़ता है तो कुछ अन्य क्षेत्रों में अप्रत्याशित बाढ़ आ जाती है। जलवायु परिवर्तन ने मानसून के स्वरूप को भी अनिश्चित बना दिया है। उदाहरण के लिए, 2023 में आगरा के कुछ हिस्सों में जहां सूखे की स्थिति बनी रही, वहीं कुछ अन्य इलाकों में किसानों को विनाशकारी बाढ़ का सामना करना पड़ा। यह विषम स्थिति किसानों के लिए एक दोहरा संकट उत्पन्न करती है—या तो उनकी फसलें पानी की कमी से बर्बाद हो जाती हैं या अत्यधिक जलभराव के कारण उन्हें बीज बोने का अवसर ही नहीं मिल पाता है।

हालांकि, केंद्र सरकार द्वारा चलाई जा रही प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (PMKSY) के तहत ड्रिप (टपक सिंचाई) और स्प्रिंकलर (फव्वारा सिंचाई) जैसी आधुनिक जल-कुशल तकनीकों को बढ़ावा दिया जा रहा है, लेकिन आगरा के कृषि क्षेत्रों में इनका उपयोग अभी भी सीमित स्तर पर है। कृषि विज्ञान केंद्र (KVK) जैसे संस्थानों की पहल से जैविक खेती और फसल विविधीकरण की दिशा में कुछ हद तक जागरूकता आई है, लेकिन इस परिवर्तन की गति अपेक्षाकृत धीमी है। किसानों को फसल की अनिश्चितताओं से बचाने के लिए शुरू की गई फसल बीमा योजना से कुछ किसानों को लाभ अवश्य मिल रहा है, लेकिन इसकी पहुंच और प्रभाव को और बढ़ाने की आवश्यकता है।

समाज विज्ञानी प्रोफेसर पारस नाथ चौधरी का मानना है कि “यदि प्रभावी जल प्रबंधन नहीं किया गया तो बेहतर मानसून भी व्यर्थ साबित हो सकता है। यदि वर्षा जल का आधुनिक और वैज्ञानिक तरीकों से उपयोग सुनिश्चित नहीं किया जाता है, तो भूमिगत जल स्रोतों पर दबाव लगातार बढ़ता रहेगा, जिससे भविष्य में जल संकट और गहरा सकता है।”

यह सत्य है कि पिछले दो दशकों में भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) की मानसून संबंधी भविष्यवाणियां पहले की तुलना में अधिक विश्वसनीय हुई हैं। मार्च 2025 में एडवांस्ड एरोसोल LIDAR (Light Detection and Ranging) सिस्टम की तैनाती से वर्षा के पूर्वानुमान की सटीकता में और सुधार हुआ है। हालांकि, आगरा जैसे जिलों में स्थानीय स्तर पर सटीक मौसम पूर्वानुमान और वास्तविक समय पर मौसम की निगरानी प्रणाली की कमी अभी भी एक बड़ी चिंता का विषय है। किसानों को बुवाई, सिंचाई और फसल कटाई जैसे महत्वपूर्ण कृषि कार्यों की योजना बनाने के लिए सटीक और समय पर मौसम संबंधी जानकारी की आवश्यकता होती है।

इस जटिल समस्या का समाधान स्थानीय स्तर पर केंद्रित रणनीतियों में निहित है। इसमें यमुना नदी और अन्य तालाबों से गाद को प्रभावी ढंग से हटाना शामिल है, ताकि बारिश के पानी का बहाव अवरुद्ध न हो और वह स्टोर हो सके। सिंचाई के लिए उपयोग की जा रही पुरानी नहरों का आधुनिकीकरण और मौजूदा जलाशयों का विस्तार करना भी आवश्यक है, ताकि हर खेत तक पर्याप्त पानी पहुंच सके। इसके अतिरिक्त, बाढ़ की पूर्व चेतावनी प्रणाली को मजबूत करने और जल-संरक्षण संबंधी बुनियादी ढांचे में निवेश बढ़ाने की आवश्यकता है। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) आधारित पूर्वानुमान प्रणालियों का विकास और कार्यान्वयन, जो खेतों के स्तर पर सटीक मौसम की जानकारी प्रदान कर सके, किसानों को बेहतर योजना बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।

नई सरकारी योजनाओं की चकाचौंध में हमें जमीनी हकीकत से मुंह नहीं मोड़ना चाहिए। सतत और प्रभावी जल प्रबंधन प्रणालियों को लगातार सुधारने और लागू करने की आवश्यकता है।

इस बीच, यमुना एक्सप्रेसवे औद्योगिक विकास प्राधिकरण (YEIDA) ने न्यू आगरा अर्बन सेंटर के महत्वाकांक्षी मास्टर प्लान में यमुना नदी के बफर जोन और हरित क्षेत्रों को प्राथमिकता दी है। इस योजना के तहत 823 हेक्टेयर भूमि को बफर जोन के रूप में, 485 हेक्टेयर को हरित क्षेत्र के रूप में और 434 हेक्टेयर को वन एवं कृषि भूमि के संरक्षण के लिए निर्धारित किया गया है। यह एक स्वागतयोग्य और दूरदर्शी कदम है, लेकिन इस योजना को प्रभावी ढंग से धरातल पर उतारना भी उतना ही महत्वपूर्ण है।
मौसम विभाग की सकारात्मक भविष्यवाणी ने ब्रज मंडल के किसानों में फिलहाल उत्साह और उमंग की एक नई लहर पैदा कर दी है। जैसे ही मानसून की पहली बूंदें इस क्षेत्र की प्यासी धरती पर गिरेंगी, खेतों में हरियाली की एक नई लहर दौड़ेगी और किसानों की आंखों में बेहतर भविष्य की नई उम्मीदें झलकेंगी। हालांकि, यह तभी संभव हो पाएगा जब आगरा और इसके आसपास के क्षेत्र जल संरक्षण और कुशल जल प्रबंधन को सर्वोच्च प्राथमिकता देंगे।

यह मानसून ब्रज मंडल के लिए एक महत्वपूर्ण अवसर लेकर आया है—यदि हमने वर्षा के पानी को बहने से रोका और उसे सही ढंग से प्रबंधित किया, तो इस क्षेत्र की कृषि निश्चित रूप से मुस्कुराएगी और किसानों के जीवन में समृद्धि आएगी। अन्यथा, हर साल की तरह, यह अच्छी बारिश की खबर भी केवल एक सुखद समाचार बनकर रह जाएगी, जिसका वास्तविक लाभ किसानों तक नहीं पहुंच पाएगा।

GOVINDA MISHRA

Proud IIMCIAN. Exploring World through Opinions, News & Views. Interested in Politics, International Relation & Diplomacy.

TAGGED: agra, agriculture, braj mandal, irrigation
GOVINDA MISHRA April 16, 2025 April 16, 2025
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