
डिजिटल टीम, डेहरी-ऑन-सोन (रोहतास)। रोहतास जिले के निजी स्कूलों में नए सेशन के शुरुआत के साथ ही कमीशनखोरी का धंधा ड्रेस और किताबों में शुरू हो जाता है। इस पर विशेष रपट आपको केबी न्यूज पर पढ़ने को मिली होगी। एनसीईआरटी की किताबों की जगह निजी प्रकाशकों के साथ सेटिंग गेटिंग का काम जारी रहता है। जबकि सीबीएसई और बिहार सरकार के शिक्षा विभाग के तय नियमावली के तहत इन स्कूलों को निजी प्रकाशकों के पुस्तकों की जगह एनसीईआरटी के किताबों को वरीयता देने को कहा जाता है। लेकिन रोहतास जिले के शहरी और ग्रामीण इलाकों में कुकुरमुत्ते के तरह खुले निजी स्कूल इस तरह के किसी भी नियम का पालन नहीं करते हैं। 40 से 50 प्रतिशत के कमीशन के आधार पर अभिभावकों को जमकर आर्थिक शोषण किया जाता है। इसके अलावा शिक्षकों और कर्मचारियों का इस तरह के निजी स्कूल आर्थिक शोषण करते हैं। तय नियम के तहत श्रम के बदले कम से कम 18 हजार रुपय इन निजी स्कूलों को शिक्षकों को न्यूनतम मजदूरी देना चाहिए। बैंक खाते से संबंधित शिक्षक और कर्मचारी के खाते में इसका भुगतान होना चाहिए। इसके अलावा काम के घंटे और न्यूनतम छूट्टी के नियम का भी पालन होना चाहिए। लेकिन नियम के विपरित ज्यादातर स्कूलों में स्टांप पेपर पर हस्ताक्षर कराकर कैश भुगतान स्कूल प्रबंधन करते हैं। तय सरकारी नियमों के विपरित निजी स्कूलों में काम करने वाले कर्मी जिसमें ड्राइवर, माली, गार्ड शामिल है उन्हें न्यूनतम वेतन का भी भुगतान नहीं किया जाता है। इसके साथ ही पीएफ संबंधित नियमों का भी पालन नहीं किया जाता है। अवहेलना करने वाले बिहार सरकार से पंजीकृत औऱ सीबीएसई से मान्यता प्राप्त स्कूल हैं। श्रम विभाग के सूत्रों का कहना है कि इस मामले में तय नियमो के तहत कार्रवाई होती है। विभाग समय समय पर इसकी जांच करता है।
निजी स्कूलों की मनमानी बच्चों पर इस कदर हावी है की उनके बैग का वजन बढ़ता जा रहा है. निजी स्कूल वैन प्राइवेट पब्लिशर मिल कर के मनमानी किताबें लगवाते है, जिसकी वजह से बच्चों के स्कूल बैग का वजन बढ़ता जा रहा है, जबकि बच्चों के कंधे झुकते जा रहे हैं. नियमावली के अनुसार 10वीं के बच्चे का स्कूल बैग का वजन 5 KG होना चाहिए, लेकिन यहां तो पहली दूसरी क्लास के बच्चों के बैग का वज़न ही 6 से 7 किलो है.
निजी स्कूल कर रहे मनमानी
एक अभिभावक ने कहा कि कुछ किताबें तो हमें फालतू में लगा रखी है, जिनके पूरे साल किसी प्रकार का कोई पढ़ाई से लेना देना नहीं होता इस वजह से भी बैक के वजन बढ़ रहे है. स्कूल के भारी बैग होने की वजह से बच्चों की ग्रोथ रुक रही है स्कूल तक तो बच्चे ऑटो रिक्शा बस या अन्य साधन से पहुंच जाते है. परंतु स्कूल के प्रांगण में और कक्षा में जाने के लिए कई बार बच्चों को दूसरी से तीसरी मंजिल तक सीढ़ीओं से जाना पड़ता है. स्कूल बैग का इतना वजन होता है कि बच्चों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है. परंतु निजी स्कूलों की मनमानी के चलते सब बेबस है.