By using this site, you agree to the Privacy Policy and Terms of Use.
Accept
KB NewsKB News
Notification Show More
Aa
  • होम
  • समाचार
    • अंतराष्ट्रीय
    • क्षेत्रीय
    • राष्ट्रीय
  • विचार
    • अध्यात्म
    • कला
    • ज्योतिष
    • धर्म
    • परिचर्चा
    • समकालीन
    • संस्कृति
    • साहित्य
  • फोटो गैलरी
  • वीडियो
  • फैक्ट चेक
  • संपर्क
  • ई पेपर
Reading: “हरियाली का क़त्ल: शहरों के सीने से छिनते साँसों के साये”
Share
Aa
KB NewsKB News
Search
  • होम
  • समाचार
    • अंतराष्ट्रीय
    • क्षेत्रीय
    • राष्ट्रीय
  • विचार
    • अध्यात्म
    • कला
    • ज्योतिष
    • धर्म
    • परिचर्चा
    • समकालीन
    • संस्कृति
    • साहित्य
  • फोटो गैलरी
  • वीडियो
  • फैक्ट चेक
  • संपर्क
  • ई पेपर
Have an existing account? Sign In
Follow US
KB News > विचार > परिचर्चा > “हरियाली का क़त्ल: शहरों के सीने से छिनते साँसों के साये”
परिचर्चाविचार

“हरियाली का क़त्ल: शहरों के सीने से छिनते साँसों के साये”

GOVINDA MISHRA
Last updated: 2025/04/22 at 11:53 AM
GOVINDA MISHRA  - Founder Published April 22, 2025
Share
SHARE

बृज खंडेलवाल 

___________
सुप्रीम कोर्ट की सख़्त टिप्पणी और NGT की चेतावनियाँ अब वक़्त की पुकार हैं—हरे-भरे पेड़ों की कटाई पर नकेल कसना ज़रूरी हो गया है। शहरों के सीने में धड़कते ये पेड़ अब कंक्रीट की हवस के शिकार हो रहे हैं। वृंदावन, आगरा, हैदराबाद और मैसूर जैसे ऐतिहासिक शहरों में, जहां हरियाली कभी इबादत थी, आज वही पेड़ इंसानी लालच की ज़द में हैं।
“ये महज़ इत्तेफ़ाक़ नहीं, बल्कि सुनियोजित ‘इकोलॉजिकल कत्ल’ है,” कहते हैं जैव विविधता विशेषज्ञ डॉ. मुकुल पांड्या। वो आगे कहते हैं, “इस अंधाधुंध कटाई के पीछे एक मुनाफ़ा-परस्त सोच है जो भारत के पर्यावरणीय ढाँचे को चकनाचूर कर रही है। अब ज़रूरत है त्वरित हरित समाधानों की—जैसे मियावाकी जंगल, वर्टिकल गार्डन्स, और ब्लॉक फॉरेस्ट्री—ताकि शहर फिर से साँस ले सकें।” डॉ. मुकुल पांड्या कहते हैं, “ये लापरवाही के अलग-अलग कृत्य नहीं हैं, बल्कि अनियंत्रित शहरीकरण द्वारा प्रेरित भारत की पारिस्थितिक नींव पर एक व्यवस्थित हमला है। इसके परिणाम—खतरनाक वायु प्रदूषण, शहरी हीट आइलैंड्स और बढ़ते जलवायु परिवर्तन के जोखिम—शहरों को सभ्यता के गर्त में बदल रहे हैं। अब एक आमूल-चूल परिवर्तन का समय आ गया है। भारत को मियावाकी वन, वर्टिकल गार्डन, ब्लॉक फॉरेस्ट्री और नदी तटों के पुनर्जीवन जैसे हरित समाधानों को तेजी से लागू करना चाहिए ताकि शहरी परिदृश्यों को फिर से सांस लेने योग्य और टिकाऊ स्थान बनाया जा सके।”
पर्यावरणविद् डॉ. देवाशीष भट्टाचार्य कहते हैं, “पारिस्थितिक विनाश का पैमाना चौंका देने वाला है, जिसमें हाल के मामले विकासकर्ताओं की धृष्टता और शासन की विफलता को उजागर करते हैं। तेलंगाना के कंचा गाचीबोवली में, सर्वोच्च न्यायालय ने अप्रैल 2025 में हस्तक्षेप करते हुए हैदराबाद विश्वविद्यालय के पास 100 एकड़ वन भूमि पर बड़े पैमाने पर पेड़ों की कटाई रोक दी, जहाँ राज्य सरकार पर विकास परियोजनाओं के लिए अनधिकृत वनों की कटाई का आरोप लगाया गया था। न्यायालय ने आक्रोश व्यक्त करते हुए आगे की कटाई पर रोक लगा दी और सरकार को ‘पारिस्थितिकी तंत्र को बाधित करने’ का औचित्य साबित करने की कोशिश करने पर फटकार लगाई।”

राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) भी सक्रिय हुआ है। शिमला में, NGT ने राज्य के वरिष्ठ अधिकारियों को अदालत के आदेश की अवहेलना पर जवाबदेह ठहराया। दिल्ली के सदर्न रिज की 307 हेक्टेयर आरक्षित वन भूमि पर अतिक्रमण पर भी सुनवाई जारी है। मई 2024 में, NGT ने स्वतः संज्ञान लेते हुए भारत में 2000 से 2023 तक 23.3 लाख हेक्टेयर वन आवरण की हानि पर केंद्र से जवाब माँगा।

हरित कार्यकर्ता जगन नाथ पोद्दार कहते हैं, *”वृंदावन में, पवित्र उपवनों को बुनियादी ढाँचे के लिए नष्ट कर दिया गया है, जिससे आध्यात्मिक और पारिस्थितिक विरासत दोनों को नुकसान पहुँचा है। जाँच चल रही है और हमें उम्मीद है कि दोषियों को सजा मिलेगी।”
इको क्लब के अध्यक्ष प्रदीप खंडेलवाल कहते हैं, “आगरा का हरित आवरण सिकुड़ता जा रहा है क्योंकि व्यावसायिक परियोजनाएँ ताजमहल के नाजुक पारिस्थितिकी तंत्र पर कब्जा कर रही हैं। बिल्डरों और भ्रष्ट वन विभाग के अधिकारियों को हरियाली से कोई प्यार नहीं है।”
हरित कार्यकर्ता मुक्ता गुप्ता कहती हैं, *”मैसूर में, हाल ही में सरकारी विभागों ने सड़क चौड़ी करने के लिए लिए पेड़ों से घिरे मार्गों को साफ कर दिया है, जिससे जनता के विरोध और न्यायिक जाँच की माँग उठी है। ये मामले, जो सर्वोच्च न्यायालय और NGT के समक्ष लाए गए हैं, एक पैटर्न उजागर करते हैं: परिपक्व पेड़, जो महत्वपूर्ण कार्बन सिंक और वायु शुद्धिकरणकर्ता हैं, अल्पकालिक लाभ के लिए बलिदान किए जा रहे हैं, जिसके दीर्घकालिक विनाशकारी परिणाम होंगे।”

भारतीय शहरों की प्रदूषण रैंकिंग वैश्विक स्तर पर शर्मनाक है। दिल्ली का AQI अकसर 400 पार करता है। हर साल लगभग 16 लाख लोग प्रदूषण से असमय मौत का शिकार बनते हैं (लैंसेट, 2020)। बेंगलुरु में हरित आवरण 68% से गिरकर अब 15% से नीचे है। मुंबई के मैंग्रोव्स भी मिटते जा रहे हैं। गर्म होते शहरी द्वीप, अनियमित मानसून, और भूजल संकट—ये सब पेड़ों की क़ुर्बानी का नतीजा हैं।

क्या है समाधान?
1. मियावाकी वन:
घने देशी पेड़ जो 10 गुना तेज़ी से बढ़ते हैं और ज़्यादा कार्बन अवशोषित करते हैं। बेंगलुरु और मुंबई में इनकी सफलता साबित है। नगर निकायों को मियावाकी तकनीक को अनिवार्य करना चाहिए।
2. वर्टिकल गार्डन्स और ग्रीन रूफ्स:
चेन्नई और गुरुग्राम जैसे शहरों में ये सफल प्रयोग बन चुके हैं। टैक्स छूट और बिल्डिंग कोड्स में बदलाव इन्हें प्रोत्साहन दे सकते हैं।
3. ब्लॉक फॉरेस्ट्री और नदी तट पुनर्जीवन:
अरावली बायोडायवर्सिटी पार्क जैसे मॉडल अपनाकर बड़े भूखंडों पर देशी पेड़ लगाए जाएं। यमुना और मूसी जैसी नदियों के किनारे रोपण अभियान चलाए जाएं।
4. सख़्त क़ानून और प्रवर्तन:
वन संरक्षण अधिनियम में बदलाव लाकर अवैध कटाई पर कठोर दंड तय हो, जिसमें जेल भी शामिल हो। GIS आधारित पेड़ गणना और मोबाइल ट्रैकिंग ऐप्स विकसित किए जाएं। फैसला अब हमारे हाथ में है।
सुप्रीम कोर्ट और NGT ने चेताया है, अब ज़रूरत है जनता की साझी भागीदारी की। वरना वह दिन दूर नहीं जब हर शहर एक उजड़ा माज़ी बन जाएगा, और हम कहेंगे—“काश एक पेड़ और बचा होता।”
इस कटु सच्चाई को समझने का समय अब आ गया है। पेड़ सिर्फ हरियाली नहीं, बल्कि सांस्कृतिक, आध्यात्मिक और जीवनदायिनी अस्तित्व का प्रतीक हैं। वृंदावन के कुंज, आगरा के बाग़, और मैसूर के ग्रीन कॉरिडोर हमारी सभ्यता की नब्ज़ थे। उन्हें काटना केवल हरियाली का अंत नहीं, बल्कि हमारी पहचान, परंपरा और भविष्य का भी सफाया है।
सवाल ये नहीं कि हमने कितने पेड़ काटे, सवाल ये है कि हमने कितनी साँसें छीनीं? कितने पक्षी बेघर हुए? कितनी नदियाँ दम तोड़ गईं?
शहर अगर साँस नहीं लेंगे, तो उसमें रहने वाले कैसे ज़िंदा रहेंगे?
शहरों को फिर से सांस लेना सिखाइए, नहीं तो अगली पीढ़ी को हम सिर्फ पत्थरों का जंगल सौंपेंगे—बिना छाँव, बिना गीत, बिना जीवन।

GOVINDA MISHRA

Proud IIMCIAN. Exploring World through Opinions, News & Views. Interested in Politics, International Relation & Diplomacy.

TAGGED: Environment, special article
GOVINDA MISHRA April 22, 2025 April 22, 2025
Share This Article
Facebook Twitter Whatsapp Whatsapp Print
What do you think?
Happy0
Love0
Surprise0
Cry0
Angry0
Leave a comment

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Latest News

रालोमो “संवैधानिक अधिकार परिसीमन सुधार”महारैली को लेकर हुई बैठक
क्षेत्रीय समाचार
पाकिस्तान को भारत की सख्त चेतावनी-संघर्ष विराम तोड़ा तो देंगे तगड़ा जवाब
राष्ट्रीय
प्राईवेट स्कूलों से बेहतर कर रहे है सरकारी स्कूल के बच्चे – जिप सदस्य सुदामा राम
क्षेत्रीय समाचार
सासाराम में आयोजित राष्ट्रीय लोक अदालत में कुल 501 मामले निबटाये गये
क्षेत्रीय समाचार

Find Us on Socials

100 Like
200 Follow
220 Subscribe
KB NewsKB News
Follow US
© Copyright 2023 KBNews. All Rights Reserved
Welcome Back!

Sign in to your account

Lost your password?