गोविंदा मिश्रा
भारत की कर व्यवस्था लंबे समय से जटिलता और उलझनों में फंसी रही है। कभी एक ही सामान पर अलग-अलग राज्यों में अलग टैक्स, तो कभी इतने सारे स्लैब कि व्यापारी यह समझ ही न पाए कि उसे कितनी दर चुकानी है। इसने न सिर्फ कारोबारियों की परेशानियां बढ़ाईं बल्कि आम लोगों की जेब पर भी असर डाला। हाल ही में केंद्र सरकार ने इस दिशा में एक बड़ा कदम उठाया है। अब जीएसटी को सरल बनाते हुए केवल दो दरें रखी गई हैं—5 प्रतिशत और 18 प्रतिशत। यह बदलाव केवल एक तकनीकी सुधार नहीं बल्कि भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए एक नई शुरुआत है।
इसका सबसे बड़ा असर आम आदमी पर पड़ेगा। जब रोजमर्रा की चीज़ों पर टैक्स कम लगेगा तो उनका दाम घटेगा और सीधे-सीधे घर के खर्च पर राहत मिलेगी। पहले किसी दुकानदार को यह तय करने में उलझन होती थी कि किसी सामान पर 12% लगेगा या 18%, और यही गड़बड़ी अक्सर उपभोक्ता तक पहुँचती थी। अब यह भ्रम खत्म हो गया है। छोटे दुकानदार हों या बड़े व्यापारी, सबके लिए हिसाब-किताब साफ और आसान हो जाएगा।
निर्यातक भी इस सुधार से राहत महसूस करेंगे। मान लीजिए, बनारस का कोई बुनकर अपना हैंडलूम कपड़ा यूरोप भेजना चाहता है या केरल का मसाला व्यापारी खाड़ी देशों में सौदा करता है, तो पहले उसे टैक्स रिफंड में महीनों का इंतजार करना पड़ता था। अब दरें स्पष्ट होंगी तो रिफंड तेज़ होगा और भारतीय सामान विदेशी बाजार में और आकर्षक दाम पर बिक सकेगा। इसका सीधा फायदा निर्यात को बढ़ाने में होगा और दुनिया के बाजार में भारत की हिस्सेदारी मजबूत होगी।
छोटे उद्योग, जिन्हें हम एमएसएमई कहते हैं, इस सुधार से सबसे ज्यादा फायदा पाएंगे। यही वर्ग देश की जीडीपी का बड़ा हिस्सा देता है और करोड़ों लोगों को रोजगार देता है। लेकिन यही टैक्स की पेचीदगियों से सबसे ज्यादा परेशान रहा। अब गुजरात का हीरा उद्योग हो या तमिलनाडु का कपड़ा कारोबार, महाराष्ट्र का चमड़ा व्यापार हो या बिहार की महिला डेयरी समितियां—सबको इनपुट लागत में राहत मिलेगी। ग्रामीण इलाकों में काम कर रहे कारीगर और महिलाएं भी अब अपने उत्पाद कम दाम पर बेच पाएंगी और ज़्यादा ग्राहकों तक पहुंचेंगी।
भारत का लक्ष्य है कि 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बने और निर्यात को दोगुना किया जाए। इस सपने को साकार करने में नया जीएसटी ढांचा मददगार साबित हो सकता है। कश्मीर का केसर, मैसूर का रेशम, महाराष्ट्र का आम या कोल्हापुर की चप्पलें जैसे पारंपरिक उत्पाद अब अंतरराष्ट्रीय बाजार में और प्रतिस्पर्धी दामों पर उपलब्ध होंगे। जब हमारे स्थानीय उत्पाद वैश्विक पहचान बनाएंगे तो न सिर्फ किसानों और कारीगरों की आमदनी बढ़ेगी बल्कि भारत का ब्रांड भी मजबूत होगा।
कृषि क्षेत्र पर भी इसका असर साफ दिखेगा। मसाले, फल, सब्जियां और कॉफी जैसे उत्पादों पर कम टैक्स का मतलब किसानों को अधिक दाम मिलेगा। यही नहीं, मधुबनी पेंटिंग बनाने वाले समूह या छत्तीसगढ़ के कारीगर अब अपने सामान को बेहतर दामों पर बेच पाएंगे। यह सुधार ग्रामीण अर्थव्यवस्था को गति देगा और युवाओं को गांवों में ही रोजगार उपलब्ध कराएगा।
स्टार्टअप और छोटे कारोबारियों के लिए भी अब रास्ता आसान होगा। पहले टैक्स अनुपालन की जटिलता से उनका काफी समय और पैसा खर्च होता था। अब नियम सरल होंगे तो वे अपनी ऊर्जा और पूंजी व्यवसाय को बढ़ाने में लगा पाएंगे। बड़े उद्योग भी इससे अछूते नहीं रहेंगे। ऑटोमोबाइल, इलेक्ट्रॉनिक्स और आईटी क्षेत्र को उत्पादन लागत घटने और सप्लाई चेन सुधरने का फायदा मिलेगा।
बेशक, चुनौतियां भी कम नहीं हैं। राज्यों की टैक्स आय घटने की संभावना है, जिससे उनकी वित्तीय स्थिति पर दबाव बढ़ सकता है। सरकार को यह देखना होगा कि राज्यों को समय पर क्षतिपूर्ति मिले ताकि वे विकास योजनाओं पर असर न डालें। दूसरी चुनौती तकनीकी ढांचे की है। जीएसटी नेटवर्क को और मज़बूत बनाना होगा ताकि छोटे दुकानदार और व्यापारी आसानी से ऑनलाइन अनुपालन कर सकें, खासकर वे जो डिजिटल तकनीक से ज्यादा परिचित नहीं हैं।
फिर भी, इस सुधार का असर व्यापक है। यह केवल टैक्स दरें घटाने का मामला नहीं है, बल्कि यह पूरे आर्थिक ढांचे को सरल और पारदर्शी बनाने की दिशा में निर्णायक कदम है। आम नागरिक से लेकर बड़े उद्योगपति तक, हर कोई इससे लाभान्वित होगा।
भारत ने अक्सर अपने सपनों और अपनी प्रणाली के बीच खाई देखी है। बड़े सपने तो थे, लेकिन नियम-कानून की जटिलताएं उन्हें रोक देती थीं। नया जीएसटी उस खाई को भरने का प्रयास है। जब कारोबारी बिना डर और बिना झंझट के काम करेंगे, तो निवेश बढ़ेगा, रोजगार पैदा होंगे और देश की आर्थिक रफ्तार तेज होगी।
यह कदम शायद किसी चंद्रयान मिशन या अंतरराष्ट्रीय शिखर सम्मेलन जितना सुर्खियां न बटोर पाए, लेकिन असर की दृष्टि से यह किसी भी बड़े कार्यक्रम से कम नहीं है। आने वाले वर्षों में लोग महसूस करेंगे कि यह सुधार उनके जीवन और देश की तरक्की दोनों के लिए कितना अहम था।
(लेखक पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं। केबी न्यूज के फाउंडर और मैनेजिंग एडिटर हैं। पत्रकारिता में 13 वर्षों से सक्रिय हैं। )
