1942 में जब देश आजादी की जंग लड़ रहा था तो एक 17 साल के किशोर के मन में अंग्रेजों के प्रति काफी गुस्सा भरा था। उन्हें भारत माता की बेड़ियां पसंद नहीं थी। वह पलामू के कई क्रांतिकारियों के संपर्क में तो थे ही पर उन पर सबसे ज्यादा प्रभाव गणेश प्रसाद वर्मा का था। यह किशोर थे डोमन राम, जिन्हें कुछ लोग डोमन साव भी कहते हैं। मैंने जो तस्वीर लगाई है वह आजादी के तुरंत बाद की है। इसमें पलामू के अग्रणी स्वतंत्रता सेनानी एक साथ हैं। यह तस्वीर उपलब्ध कराई है गणेश प्रसाद वर्मा के पौत्र चेतन आनंद ने। कहा तो यह भी जाता है कि ‘डोमन राम’ का नाम ‘पूरन चंद’ गणेश प्रसाद वर्मा ने ही दिया था। मेदिनीनगर में स्वतंत्रता सेनानियों के शिलापट्ट पर भी डोमन राम, इसे घेरे में दिखाया गया है, लिखा हुआ है। संभवतः यह तस्वीर पूरन जी की सबसे पुरानी तस्वीर हो। पूरन जी देश के चंद गिने-चुने लोगों में से हैं, जिन्होंने आजादी की लड़ाई में भी डालटनगंज की जेल में रातें गुजारीं और आपातकाल के खिलाफ जंग के दौरान भी। यानी आप ‘स्वतंत्रता सेनानी’ भी थे और ‘लोकतंत्र सेनानी॔ भी।
जेल को तो आपका ‘दूसरा घर’ ही कहा जाता था। ‘एक नोट-एक वोट’, ‘पूरन पैदल-जनता पैदल’ के नारे के साथ जनता के बीच रहने वाले पूरन जी संघर्ष और त्याग की मिसाल थे। मैंने उनपर पूर्व में भी काफी लिखा है। आज उनकी उनकी यादगार तस्वीर और शिलापट्ट पर लिखा उनका पुराना नाम लोगों से शेयर कर रहा हूं। साथ में स्वतंत्रता सेनानियों की पूरी तस्वीर भी लगा रहा हूं। इसमें यदुवंश सहाय और अमिय कुमार घोष (दोनों संविधान सभा के सदस्य) के साथ गणेश प्रसाद वर्मा भी हैं। 21वीं पुण्यतिथि पर पलामू के महान सपूत को सादर नमन।
लेखक पलामू के रहने वाले प्रभात मिश्रा वरिष्ठ पत्रकार हैं। अमर उजाला समूह से जुड़े हुए हैं।