रक्षा बंधन 2022
भारत पर्वों का देश है यहां प्रत्येक दिन हर पल कोई न कोई व्रत अवश्य मनाया जाता है। भारत कि अखंडता, समरसता तथा एकता का यह एक बहुत बड़ा कारण है।विभिन्नता में एकता का मिसाल केवल भारतवर्ष में ही संभव है। इसीलिए भारत को विश्व गुरु माना गया है। प्रवोंत्स्व कि दृष्टि से श्रावण मास का हिंदू जनमानस में विशेष महत्व है। श्रावण मास का वीराम भाई बहनों के अटूट प्रेम का प्रतीक रक्षाबंधन पर्व पर होता है। वर्ष 2022 में 11 अगस्त (श्रावण पूर्णिमा) कों प्रातः 09:35 के पश्चात रक्षाबंधन मनाई जानी है.भगवान विष्णु के 24 अवतारों में,ह्यग्रीव का अवतार, गुरुवार दिन तथा सौभाग्य नाम योग होने के कारण इस बार का रक्षाबंधन पर्व और भी महत्वपूर्ण हो गया है,आज के दिन हि देव भाषा “संस्कृत” का संस्कृत दिवस मनाया जाता है. सौभाग्य नाम के योग होने से बहनों के लिए “अखंड सौभाग्य” का भाइयों द्वारा दिए हुए आशीर्वाद और उपहार से फल प्राप्त होगा. इतने अच्छे योग बनने के पश्चात भी कुछ लोगों का मत है कि उस दिन भद्रा है, अशुभ है, ऐसा कुछ भ्रम समाज में फैलाया जा रहा है,जबकि यह सत्य नहीं है.पूर्णिमा मे भद्रा होता हि है. मकर राशि का चंद्रमा एक दिन पूर्व 10 अगस्त से 12 अगस्त 2022 कों संध्या 4:28 तक रहेगा,तब क्या ? 10 अगस्त लेकर 12 अगस्त तक रक्षाबंधन नहीं मनाई जानी चाहिऐ ? या भाद्र मास के प्रतिपदा को रक्षाबंधन मनाया जाए? श्रावण मास 12 अगस्त को प्रातः 07-25 तक हि है, इस तरह 12 अगस्त कों मनाने जाने वाला रक्षाबंधन भाद्र मास के प्रतिपदा में होगा.निर्णय सिंधु,धर्म सिंधु, भविष्योंत्तरपुराण तथा काशी का विद्वत मंडल ने 11 अगस्त के रक्षाबंधन को मान्यता देते हैं,12 अगस्त के रक्षाबंधन का त्याज्य किया है.इस तरह का भ्रम और अधूरी ज्ञान के कारण हि वर्तों का बिभाजन हो रहा है, उसका असर हिन्दू संकृति तथा हिन्दू धर्म पर पड़ रहा है.सर्वधर्म समन्वय, वसुधैव कुटुंबकं के जननी वेदों द्वारा निकला हुआ व्रत,पर्व हि भारत कि अखंडता कि नीव है, इसे कमजोर नहीं होने देना चाहिऐ.हिन्दू पर्व हमें हमारी संस्कृति और संस्कार कि जननी है. हमें यह आरोग्यता तथा भाईचारे का संदेश देता है.हिन्दू पर्व प्राकृत कि प्रकृति पर मानव जीवन के लिए निर्मित है, रक्षाबंधन सावन की पूर्णिमा को मनाया जाता है. इसमें पराह्नव्यापनी तिथि ली जाती है. यदि वह दो दिन हो या दोनों दिन हो, तो पूर्व (पहले ) कि तिथि कों लेना चाहिए.गोचर के आधार पर राशियों की स्थिति में परिवर्तन होता रहता है, राशि परिवर्तन के आधार पर ही भद्रा की स्थिति हुआ करती है, मकर राशि के भद्रा का निवास पाताल लोक में होता है, पाताल लोक में भद्रा रहने से प्रजा के लिए अत्यंत ही शुभ फलदाई माना जाता है.मुहूर्त चिंतामणि के आधार पर जब चंद्रमा कर्क,सिंह, कुम्भ और मीन राशि में होते हैं, तब भद्रा का वास पृथ्वी पर होता है.चंद्रमा जब मेष,वृष,मिथुन या वृश्चिक राशि रहते हैं तब भद्रा का वास स्वर्गलोक में होता है.तथा कन्या, तुला,धनु या मकर राशि में चंद्रमा स्थित होने पर भद्रा का वास पाताल लोक में होता है. ज्योतिष गणना के आधार पर,भद्रा की स्थिति सर्वविदित है, कि शुक्ल पक्ष के अष्टमी और पूर्णिमा के पूर्वार्ध में, एकादशी और चतुर्थी के पराधर्य भद्रा होती है. कृष्ण पक्ष के तृतीय और दशमी के उत्तरार्ध में तथा सप्तमी और चतुर्दशी के पूर्वार्ध में भद्रा होती है. रक्षाबंधन श्रावण पूर्णिमा को मनाई जाती है, और पूर्णिमा के दिन भद्रा रहता है तो क्या इस स्थिति में रक्षाबंधन नहीं मनानी चाहिए ? हमें भद्रा की स्थिति को जान लेना चाहिए. भद्रा का वास कहा है, और उसका फल क्या है.वाराणसी (काशी) के विभिन्न पंचांगों का मत (ऋषिकेश) पंचांग “रक्षाबंधनमस्यामेव पूर्णिमाया भद्रा रहितायाम त्रिमूहुर्ताधिककोंदयाव्यापि न्यामपरांह्णे प्रदोषे वा कार्यम”धर्मसिंध- श्रावण शुक्ल पूर्णिमा को सूर्योदय से तिन मुहूर्त से अधिक तिथि में भद्रा रहित अपराहन या प्रदोषकाल तिथि में रक्षाबंधन मनाना चाहिए. यदि सूर्योदय काल से पूर्णिमा तिथि 3 मुहूर्त से कम हो तो पूर्व दिन भद्रा रहित प्रदोषादि काल में रक्षाबंधन करना चाहिए. क्योंकि 12 अगस्त 2022 को पूर्णिमा तिथि 3 मुहूर्त से कम है, अतः रक्षाबंधन का पर्व 11 अगस्त 2022 को मनाया जाएगा. निर्णय सिंधु-“तत्सतवे तु रात्रावपी तदन्ते कुर्यादिति निर्णयामृते ईदम प्रतिपद्युतायां न कार्यम” अर्थात रक्षाबंधन का पर्व रात्रि में भी किया जा सकता है, परंतु प्रतिपदा में नहीं करना चाहिए. रक्षाबंधन का मुख्य उद्देश्य भाई और बहनों के रिश्ते को सम्मान देना होता है. असल में रक्षाबंधन का सही अर्थ होता है. वह बंधन जिस से रक्षा होती है, ( सुरक्षा) का प्रतीक रक्षाबंधन पर्व है. इस दिन मुख्य रूप से बहने अपने भाइयों कि कलाई पर रेशम के पावन पवित्र धागे को चंदन, तिलक लगाकर इस मंत्र को पढ़ते हुए-“येन बद्धॉ बली राजा दानवेंद्रो महाबल:। तेन त्वाममनुवंधनामी रक्षे मा चल मा चल “उन्हें बांधती है.जिससे आम भाषा में “राखी” कहा जाता है. भाई के प्रति बहन का स्नेह और प्रेम का प्रतीक रक्षाबंधन होता है. बहनें अपने भाई के कलाई पर रक्षा सूत्र बांधकर ईश्वर से अपनी भाई की लंबी उम्र की कामना करती है.भाई उसके बदले बहनों को उपहार देता है,और उसके सुरक्षा की वादा करता है. वर्तमान समय में रक्षाबंधन का पर्व केवल अपने भाइ और बहनों तक हि सिमित नहीं रह गया. इस पर्व ने अपना व्यापक स्वरूप बना लिया है. हमारी बहनें अपने देश की रक्षा में सीमा पर तैनात अपने सैनिक भाइयों की कलाइयों पर रक्षा बांधकर उनकी हौसला अफजाई करती हैं, ईश्वर से कामना करती हैं, उनकी लंबी आयु के लिए, उन वीर जवानों के लिए,जो विकट परिस्थितियों में, दुर्गम पहाड़ियों एवं हिम बर्फीली जगह पर देश की रक्षा के लिए अपनों से हजारों मील दूर है, उन्हें अपनापन का महसूस कराती हैं, दुनिया को संदेश देती हैं, हमारे एक भाई नहीं है. इससे देश प्रेम, राष्ट्रीयता तथा अनेकता में एकता का संदेश दुनिया वालों को मिलता है.
आचार्य विनय कुमार मिश्रा उर्फ़
विनय बाबा
आचार्य नगर पूजा समिति
रक्षाबंधन के समय पर विद्वान की राय: भ्रांति का नकारात्मक असर समाज पर पड़ता है
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