गोविंदा मिश्रा
विधानसभा चुनाव खत्म हुआ और नेताजी का कुर्ता बक्से में वापस चला गया। नेताजी ने लगातार दौरे कर रहे अब जीत का सेहरा अपने चहेते उम्मीदवार को पहना दिया है। नेताजी की व्यस्त रूटीन में भी बदलाव देखने को मिल रहा है। नेताजी अब अपनी कुर्सी पर आराम फहरा रहे हैं और चौक चौराहों पर जीत की खुशी शेयर करने में सबसे आगे हैं। जिसे देखकर उनके चमचे भी पूरी तरह हैरान हैं। सुबह होने के बाद नेताजी शहर के चौक, पार्क और आस-पास के गांव का दौरा शुरू कर देते हैं। भई नेताजी इतने पर कैसे खुश हो सकते हैं। चुनावी जंग के दौरान नेताजी हर जानकारी से अपडेट रहते थे। लेकिन अब भी कहां मानने वाले हैं। नेताजी चुनावी मैदान में उतरे विजेता उम्मीदवार को किस गांव से कितने वोट मिले उसका हाल बयां करते देखे जा सकते हैं। साथ ही उनके विरोधी के वोटों को कैसे काटा गया और अमुक व्यक्ति की नाराजगी को उनके विजेता उम्मीदवार के पक्ष में कैसे भुनाया गया इसका किस्सा बताते सुने जा सकते हैं। चुनाव के समय नेताजी की तो बहार थी। लेकिन अब भी कोई किसी भी हालत में उन्हें इन्नोर नहीं कर पा रहा है।
बड़े डिमांडिंग रहें नेताजी!
चुनाव के दौरान सबसे बड़ा मुद्दा वोटों को अपने पक्ष में करना था। इसके लिए नेताजी ने जमकर तैयारी की। लगातार नेताजी को खुश करना इतना आसान नहीं था। उन्होंने एसयूवी और इतने खर्चे के बिना अपने खास उम्मीदवार के पक्ष में प्रचार करने से साफ तौर पर इनकार कर दिया था। उनकी क्षमता जब भी रही तो पांच से 10 हजार वोटों के हेरफेर की रही। सलीके से सीला हुआ कुर्ता और पायजामा पहन प्रचार में हर रोज निकलने वाले नेताजी भी विधानसभा चुनाव लड़ने की बात सुनकर चवन्निया मुस्कान मुस्का देते हैं। बहरहाल, इस बार के चुनाव में भी नेताजी के दावे कुछ अलग नहीं थे। किसी भी उम्मीदवार को हराने के कई किस्से और कहानियां नेताजी के पास थे। जो अगले चुनावी सीजन में भी उसका बखान करेंगे। नेताजी चुनाव के बीच में अपने उम्मीदवार से नाराज हो गए। कई बार उन्होंने भगवान शिव की तरह विकराल रूप धारण कर लिया था। लगता था कि वो जमीन आसमान भी एक कर देंगे। उसके बाद फिर तो उम्मीदवार की शामत ही आई। चुनाव कार्यालय से लेकर विधानसभा क्षेत्र के कई हिस्सों में वो घूमघूमकर अपने नाराजगी के किस्से बताते सुनने को मिलते रहें। आखिर लोकतंत्र का महापर्व में चुनावी सीजन के फल और सब्जी सरीखे नेताजी के बिना चुनावी हमेशा मुश्किल ही रहेगी। लेकिन चुनावी सीजन खत्म होने के बाद नेताजी का कुर्ता उनके पुराने बक्से में चला गया।
(व्यंग्यकार खबरचीबंदर न्यूज पोर्टल के मैनेजिंग एडिटर और फाउंडर हैं।)