
पिता धर्मः पिता स्वर्गः पिता हि परमं तपः।
पितरि प्रीतिमापन्ने प्रीयन्ते सर्वदेवताः॥
पद्मपुराण के ये श्लोक पिता डॉ मुनीश्वर पाठक के जीवन से सीख लेने औऱ जीवन में आगे बढ़ने की प्रेरणा देते रहे। पिताजी ने संघर्षमय जीवन जीकर समाज को रास्ता दिखाने का काम किया। हजारों किलोमीटर दूर रहने के बावजूद उनकी प्रेरणा से पूरे परिवार ने प्रगति की और समाजहित में काम कर रहे हैं। अमेरिका में पढ़ाई करने के बाद कांग्रेस के दिग्गज नेता विनोदानंद झा के लिखी एक चिट्ठी के बाद वो वापस लौटे और मातृभूमि की सेवा की। जगजीवन सैनेटोरियम की स्थापना के लिए मार्गदर्शन मिला और टीबी मरीजो के इलाज का काम शुरू हुआ। 20 अप्रैल 1951 के दिन इसकी आधारशिला रखी गई। साल 1954 में खुद बाबू जगजीवन राम ने इसका उद्घाटन किया। महिला शिक्षा के प्रति लगन के कारण उनके प्रयास से डेहरी में रामा रानी जैन बालिका उच्च विद्यालय की स्थापना की। खुद के प्रयास पंडित जवाहरलाल नेहरू को शहर के पास कॉलेज निर्माण के बाद उद्घाटन के लिए आमंत्रित किया। डालमियानगर में मॉडल स्कूल की स्थापना की पहल की।
समाजहित के लिए लगातार सजग रहे और आम लोगों के लिए विपरित परिस्थिति में खड़े रहे। उनकी ईमानदारी और कर्मठता से कारण लोगों के बीच लोकप्रियता बनी रही। जीवन प्रयंत डेहरी-ऑन-सोन में रहकर मानव हित के लिए काम करते रहे। आज उनके संस्कारों और प्रेरणा से परिवार के सभी सदस्य वटवृक्ष बन अपने स्तर से समाजहित में काम कर रहे हैं। राजनीतिक तौर पर काफी सशक्त रहने वाले पिता का देश के प्रसिद्ध कवि रविंद्रनाथ टैगोर, देश के राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद सहित राजनीतिक दिग्गजों और प्रशासनिक अधिकारियों से काफी नजदीकी संबंध रहा।
( लेखक लंदन में प्रतिष्ठित आर्थोपैडिक सर्जन हैं। उन्हें इंग्लैंड की महारानी ने साल 2010 में मेंबर ऑफ ब्रिटिश इम्पायर के तौर पर नियुक्त किया था।)