गांधी जी ने अपने से शुरु किए था आश्रम, आज अतिक्रमण का झेल रहा है दंश
धनंजय कुमार आमोद (गिद्धौर)
गिद्धौर एक और जहां पूरे भारत में गांधी जी के जयंती पर सफाई अभियान चलाया जा रहा है और लोगो को सफाई के लिए बताया जा रहा है लेकिन वही आजादी मिले लगभग 76 वर्ष पूर्ण हो चुके है। वंही दूसरी ओर गांधी जयंती के दिन महात्मा गांधी जिंदाबाद,बापू अमर रहे जैसे नारे भी लगते रहे है। लेकिन गिद्धौर प्रखंड क्षेत्र के बंझूलिया गांव कि यदि बात करें तो गांधी जयंती के मौके पर महात्मा गांधी को याद करने की परम्परा अब मात्र औपचारिकता बन कर रह गई है। कोई भी महापुरुष उस समय अप्रासंगिक हो जाता है जब उनके सपने तार-तार हो जाते हैं। विडंबनाएं तो तब आती है जब समाज उनके सपने को भूलकर विपरीत दिशा में अपने पांव बढ़ाने लगता है।
गांधी जयंती को याद करते हुए भावुक हो जाने वाले वयोवृद्ध 95 जलधर पांडेय बताते है कि उन्होंने भी ‘अंग्रेजो भारत छोडो’ आन्दोलन में भाग लिया था। उन्होंने बताया कि गिद्धौर राज परिवार में जन्मे कुमार कालिका सिंह गांधी जी के सिद्धांतों एवं आन्दोलन से काफी प्रभावित थे। वे राजमुख को त्याग कर भारत की आजादी की लड़ाई में कुद पडे थे। कालिका सिंह राजभवन को छोडकर गिद्धौर के बनझुलिया ग्राम से सन् 1920 में ग्रामीणें के सहयोग से गांधी आश्रम का निर्माण करवाकर आन्दोलनकारियों के साथ संगठन में जुट गए थे। उस वक्त अपने चम्पारण प्रवास के दौरान गांधी जी ने कुमार कालिका सिंह उर्फ हीरा जी को संदेश भिजवाया था कि आजादी की लडाई के लिए बनझुलिया आश्रम के आस पास के गांवो में किसानों का एक संगठन बनाया जाए।तथा इसी आश्रम में उन्हे प्रशिक्षित करने की व्यवस्था की जाए। सन् 1942-43 में आंदोलनकारियों का संगठन बनाने के बाद महात्मा गांधी चम्पारण से बनझुलिया ग्राम के गांधी आश्रम पहुंचे तो उन्होंने कुमार कालिका सिंह के अलावा स्थानीय आन्दोलनकारी कुमार जमुना सिंह(धुटवे) जगदीश मिस्त्री (मागोंबंदर), महावीर पांडेय (बनझुलिया), मथुरा रावत (गिद्धौर) सहित कई आन्दोलनकारियों के साथ इस इलाके के धमना, गंगरा, संसारपुर, नावादा गांव में जाकर किसानों से सम्पर्क कर संगठन को और मजबूत बनाया था।
जलधर पांडेय बताते है कि गांधी जी हर रोज भ्रमण के बाद बनझुलिया के गांधी आश्रम में विश्राम किया करते थे। उनके साथ मुझे भी संध्या बेला में होने वाले प्रार्थना सभा में भाग लेने का भी सौभाग्य प्राप्त हुआ। उन दिनों लोग नदी का पानी पिया करते थे,लेकिन गांधी जी ने इस समस्या को देखकर ग्रामीणें के सहयोग से आश्रम के निकट एक कुआं खुदवाया था। उन दिनों में यह गांधी कुआं के नाम से जाना जाता था। बाद के दिनों में जब संत विनोवा भावे बनझुलिया के गांधी आश्रम पहुंचे तो इस आश्रम का लगभग साढे छः एकड़ भूमि दान स्वरुप उन्हें दिया गया था।
लगभग दस दशक बाद आज जो इस गांधी आश्रम का हश्र हुआ है इसके लिए किसे दोषी माना जाय। उन्होने बताया जिस भूमि पर यह गांधी आश्रम बना था आज उसे बेच दिया गया है। उस स्मृति स्थल पर कई अवैध कारोबार फल-फूल रहे है। बाकी बचे भूमि पर असामाजिक तत्वों द्वारा अतिक्रमण कर लिया गया है। भला ऐसे में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को गांधी जयंती दिवस पर याद करना सिर्फ औपचारिकता भर ही रह गई है।