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संवाददाता, नई दिल्ली। राजा विक्रमादित्य हेमू को वामपंथी इतिहासकारों ने सही पहचान नहीं दी। ऐसा राजा जिसने 22 बार लड़ाई लड़ी और अकबर तक के दांत खट्टे कर दिए। लेकिन प्रतापी राजा हेमू के शौर्य, पराक्रम को भारत के इतिहास में सही पहचान नहीं मिल सकी। राजधानी दिल्ली के एक निजी होटल में आयोजित एक प्रेस वार्ता के दौरान हेमू विचार मंच के राष्ट्रीय संयोजक और बीजेपी व्यवसायिक प्रकोष्ठ के प्रदेश संयोजक राजु गुप्ता ने कही। उन्होंने कहा कि भारत के इतिहास को तोड़ने मरोड़ने का प्रयास किया गया। इसके साथ ही महिमामंडन वैसे राजाओं का किया गया जिन्होंने भारतीय संस्कृति को तहस नहस करने का काम किया था। उन्होंने बताया कि राजा हेमू की जयंती के मौके पर एक कार्यक्रम का आयोजन राजधानी दिल्ली में किया जाना है। उसी के रुपरेखा को तैयार करने के लिए वो सामाजिक संगठनों के साथ बैठक कर रहे है। इस कार्यक्रम के माध्यम से भारत के वैभवशाली अतीत को पूरी दुनिया के सामने लाने का प्रयास किया जाएगा। उन्होंने कहा कि सासाराम से हजार किलोमीटर दूर चलकर दिल्ली में अपना परचम लहराने वाले दानवीर हेमू ने समाज को संगठित करने का प्रयास किया। उस दौर में जब सनातन संस्कृति को विखंडित करने का प्रयास किया जा रहा था तब वो इसके शौर्य का पताखा पूरी भारत भूमि पर लहरा रहे थे।
इस मौके पर समाजसेवी मकेंद्र प्रसाद गुप्ता ने कहा कि इस तरह के कार्यक्रम के आयोजन से हमे अपने विरासत को सहेजने वाले वीर पुरुष को जानने का मौका मिलेगा। युवा पीढ़ी भी इससे अवगत होगी। वहीं, कृपाशंकर गुप्ता ने हेमू के विचार को जन जन तक पहुंचाने के संकल्प की सराहना की। उन्होंने कहा कि आयोजन से समाज को एक सूत्र में बांधने में मदद मिलेगी। पत्रकार विजय गुप्ता ने कहा कि भारत का वैभवशाली इतिहास रहा है। अपनी इतिहास को नहीं जानने वाला देश विघटित हो जाता है। मौके पर हेमू के शोधकर्ता प्रो सुबोध गुप्ता, बीजेपी नेता बलराम मिश्रा मौजूद थे।
जानिए कौन थे विक्रमादित्य रामचंद्र हेमू
हेमू को हिंदू शासकों में विशिष्ट परंपरा का शिखर पुरुष माना जाता है। भारतीय इतिहास में उनका अमिट योगदान मानते हैं। इतिहासकारों के अनुसार राजा हेमू का बचपन बिहार के सासाराम शहर में बीता था। 1556 में उनकी शहादत हुई थी। 22 युद्धों में मुगलों के खिलाफ उसे जीत हासिल हुई। इतिहासकारों का कहना है कि पानीपत की लड़ाई में उसे धोखे से मार दिया गया। इस पर शोध करने वाले सुबोध गुप्ता का कहना है कि सहसराम का रहने वाला हेमू दिल्ली की गद्दी पर पहुंचने वाला अंतिम हिन्दू राजा था। भारतीय संस्कृति को सहेजने वाला राजा हेमू ने अकबर की अधीनता नहीं स्वीकारी।
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