डेहरी ऑन सोन के न्यू एरिया मुहल्ले के रहने वाले पुष्कर प्रसिद्ध प्रोफेशनल पढ़ाई करने के बाद पटना में जॉब करते हैं। गुरुवार को वो अपने होम टाउन से पटना जाने के लिए निकले। इस दौरान नासरीगंज के बाद बिक्रमगंज तक उन्हें पूरी सड़क पर बहुत सारा गड्डा नजर आया। पुष्कर ने हमे एक ई-मेल कर अपनी समस्या बताई है। दरअसल, उनका कहना है कि डेहरी-पटना का लगभग 145 किलोमीटर की दूरी वाले रास्ते को तय करने में अधिकतम साढ़े तीन घंटे का समय लगना चाहिए। लेकिन नासरीगंज से बिक्रमगंज के रास्ते को तय करना इस बार काफी मुश्किल था। उन्हें इस बार की यात्रा पूरी करने में 5 घंटे से ज्यादा का रहा। पुष्कर के अनुसार, बिक्रमगंज के रास्ते पटना जाना छोटे वाहनों के लिए काफी मुश्किल भरा है।
इस समस्या को प्रशासनिक अधिकारियों और सरकार तक पहुंचा दीजिए
पुष्कर को लगता है कि मीडिया के चौथे स्तंभ तक अपनी बात पहुंचा कर वो समस्या का निपटारा कराने में सक्षम होंगे। हमने सोचा उनके विचारों को आप तक ही पहले पहुचाते हैं। लोकतंत्र के चौथे स्तंभ का काम हमेशा जनसरोकार को प्राथमिकता देना है। इस विशेष लेख में हमने कई मुद्दों को एक दूसरे से जोड़ने का प्रयास किया है। साथ ही सड़क पर चलने वाले लोगों की परेशानियों का कारण जानने का प्रयास किया।
जानिए समस्या का मूल कारण
डेहरी से पटना जाने वालों के लिए बहुत सारे रास्ते हैं। जिनमें औरंगाबाद से दाउदनगर का रास्ता, नासरीगंज से बाईपास के रास्ते राजधानी पहुंचने का विकल्प मौजूद है। लेकिन कई बसें और छोटी गाड़ियां अभी भी बिक्रमगंज से पीरो और आरा होते हुए पटना जाती है। पुष्कर का कहना है कि इस रास्ते में गढ़ढे में रास्ता है या रास्ते में गढ्ढा ये समझना काफी मुश्किल है। आपको बता दें कि रोहतास, भोजपुर, औरंगाबाद के अलावा जिन भी जिलों से सोन नदी गुजरती है वहां बड़े पैमाने पर बालू उत्खनन होता है। इस काम में लगी ज्यादातर गाड़िया ओवरलोड रहती हैं। इसके अलावा इससे संबंधित जरुरी नियमों का भी पालन नहीं होता है। बालू निकालने के तुरंत बाद उसका पूरा पानी निकालना पड़ता है। इसके अलावा वो पूरी तरह ढ़का हुआ होना चाहिए। आम तौर पर माना जाता है कि अलकतरा का दुश्मन पानी होता है। लेकिन इससे निकलने वाला पानी सड़क को ही नहीं उसके पूरे बेस को खत्म कर देता है। इसके अलावा ओवरलोडिंग के कारण सड़क की उम्र काफी कम हो जाती है। बिहार में एक बात पिछले 5 सालों में गौर करने वाली रही। ज्यादातर सड़कों का निर्माण हो चुका है। जिस सड़क के बारे में पुष्कर बात कर रहे हैं वो राज्य मार्ग 120 के तौर पर जाना जाता है। जिसकी देखरेख की जिम्मेदारी पथ निर्माण विभाग के पास है।
अब बात करते हैं डेहरी से नासरीगंज होते हुए बिक्रमगंज के सड़क की
जिस सड़क की बात कर रहे हैं वो एनएच 120 का हिस्सा है। जिसके एक भाग का कई महीनों से रिपेयर नहीं हो पाया है। विभागीय सूत्रों का कहना है कि सड़क निर्माण के बाद उसकी मेंटनेंस करना अभी के हालात में काफी मुश्किल है। ओवरलोडिंग के अलावा बालू लदी गाड़ियों से लगातार पानी गिरता रहता है। जिस कारण जिस सड़क को 5 साल तक लगातार सही रहना चाहिए। वो 6 महीने से 1 साल के अंदर पूरी तरह क्षतिग्रस्त हो जाता है। दरअसल, अलकतरा को सबसे ज्यादा नुकसान पानी से होता है। इस तरह के मामलों में पीडब्ल्यूडी वीडियो रिकॉर्डिंग कर ओवरलोडिंग की जानकारी अपने आलाधिकारियों और संबंधित विभागों से साझा करती है। लेकिन इसमें खनन विभाग, पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों का पूरी तरह सहयोग नहीं मिल पा रहा है। विभागीय सूत्र का मानना है कि बालू से जितना राजस्व सरकार को मिल रहा है उससे ज्यादा सड़कों को नुकसान पहुंच रहा है। संबंधित सूत्र ने एक महत्वपूर्ण जानकारी साझा की। नासरीगंज-बिक्रमगंज के बीच की सड़क का टेंडर होने के बाद यह मामला कोर्ट में चला गया। जिसके बाद पुराने निविदाकर्ता के पक्ष में पटना हाईकोर्ट ने फैसला सुना दिया। इस कारण रोड को मेंटेंन करने का मामला अगले विभागीय आदेश और प्रक्रिया के कारण लंबित है।
बालू लदे वाहन और सड़क के किनारे जमा धूल है जानलेवा
रोहतास जिले में इस सड़क के अलावा एनएच और डेहरी से नौहट्टा को जोड़ने वाली सड़क पर पर यात्रा करने के दौरान आपको सबसे बड़ी समस्या बेतरतीब तरीके से चल रहे बालू लदे वाहनों से होगी। इस कारण सड़क के दोनों ओर काफी धूल जमा है। जिससे सबसे ज्यादा परेशानी पैदल चलने वालों और मोटरसाइकिल सवारों को होती है। माना जा रहा है कि मोटरसाइकिल और अन्य दुपहिया पर सवार लोगों को इन सड़कों पर यात्रा के दौरान दुर्घटना का शिकार होना पड़ रहा है। इस समस्या के निपटारे के लिए जिले के आलाधिकारियों की एक समिती बनी हुई है। जिसकी अध्यक्षता खुद डीएम करते हैं। हर तीन महीने पर इसकी बैठक होती है। जिसमें परिवहन से जुड़े महत्वपूर्ण मुद्दों पर कई विभागों के अधिकारी एक दूसरे से अपनी बातें बैठक कर साझा करते हैं। साथ ही समस्या के निपटारे के लिए जरूरी विकल्प की तलाश भी की जाती है।
क्या नहीं उठाया जा रहा सवाल
माना जाता है कि मध्य और दक्षिण बिहार की पूरी अर्थव्यवस्था फिलहाल बालू पर आधारित है। ज्यादातार युवा अपनी जीविका के लिए इसी काम में लगे हुए हैं। बेरोजागारी खत्म करने की सार्थक पहल पिछले 15 सालों के अंदर नीतीश कुमार की सरकार ने नहीं की है। इसके अलावा बालू के व्यवसाय के कारण मार्केट में पैसा आ रहा है। इस कारण स्थानीय जनप्रतिनिधि या प्रशासनिक अधिकारी इसके लिए बहुत कठोर कदम उठाने से परहेज करते हैं।
यातायात नियमों का नहीं रहता है ध्यान
राष्ट्रीय राजमार्ग 2 पर बारुण के अलावा डेहरी के आस पास के कई घाटों से बालू लदे ट्रैक्टर गुजरते हैं। इन ट्रैक्टरों पर किसी भी तरह का प्रशासनिक लगाम सख्त नहीं हो सका है। रोहतास जिले के एसपी ने इस पर रोकथाम की पहल का वादा किया है। इसके लिए उन्होंने विशेष पुलिस बल की नियुक्ति कर रखी है। विगत दिनों पुलिस कप्तान आशीष भारती ने कहा था कि दिन में इसपर पूरी तरह प्रतिबंध रहेगा। जिसके लिए उन्होंने औरंगाबाद के वरीय पुलिस अधिकारी से बातचीत और समन्वय भी किया है। लेकिन इसपर लगाम लगाने की प्रशासनिक पहल कामयाब नहीं हो सकी।
कैसे सुलझेगी यह समस्या
जिला प्रशासन के एक अधिकारी से हमारी बातचीत हुई। अवैध बालू के मुद्दे पर उनका साफ कहना था कि खनन विभाग की सख्ती से इसपर पूरी तरह लगाम लगाई जा सकती है। अगर क्षमता से ज्यादा लोडिंग हो रही है तो उन्हें इसपर काम करना चाहिए। उन्होंने कहा कि इससे संबंधित सभी विभागों को एक साथ आना होगा। अधिकारी का यह भी मानना है कि रोहतास जिला में खनन विभाग के पास अधिकारियों की काफी कमी है। जिसकारण इस समस्या को रोकने की सख्त पहल नहीं हो पा रही है। बातचीत के दौरान इस अधिकारी ने बताया कि शेरघाटी के बालू घाट पर अभी ओवरलोडिंग की समस्या पर लगाम लगाई जा चुकी है। इसके लिए खनन विभाग के आलाधिकारियों ने सख्ती करना शुरू किया। जिसका परिणाम देखने को मिल रहा है।
गोविंदा मिश्रा, मैनेजिंग एडिटर