मिलना था इत्तिफाक, बिछड़ना नसीब था, वो उतनी दूर हो गया, जितना करीब था। आज मसूरी से लौटते समय ‘’ठेठ बिहारन’’ याद आ रही थी। मौसम बड़ा सुहावना था। जो नसीब में था वो हुआ और उसे कोसने से क्या फायदा। बिहार के गांव की लड़की सूदूर युरोप के किसी शहर में थी। कल चुपके से उसके इंस्टा को देखा। प्रोफाइल लॉक था। बेबस होकर गुनगुना दिया, ‘’अब के हम बिछड़े तो शायद कभी ख़्वाबों में मिलें’’ 18 साल पहले की कहानी याद आ गई। घर पर था तभी फोन आया और ठेठ बिहारन ने कहा कि ऐ मैं पुणे जा रही हूं। मेरा मेडिकल में सलेक्शन हो गया है। मिलने नहीं आओगे। मुगलसराय से ट्रेन है। इतना सुनते ही पापा की स्कूटर उठाई और झट से स्टेशन की ओर भागा। पैसेंजर दो नंबर वाली प्लेटफॉर्म पर लगती। स्कूटर बाहर खड़ा कर उससे मिलने पहुंचा। उसने पूछा- खुश बार न? मैं असमंजस में था कि आखिर अब मुलाकात दूसरी बार कब होगी? इतनी दूर जा रही हो। छोटे शहर का प्यार थोड़ा अजीब होता है। चुपके से एक लिफाफे में बंद ग्रीटिंग्स पकड़ा दी। देशी अंदाज में उसके कुछ कान में बोला। डर था बड़े शहर में जाने के बाद ये याद करेगी और डॉक्टरी की पढ़ाई के बाद शायद………! ट्रेन प्लेटफॉर्म पर लग चुकी थी और मैंने आखिरी बार दूर से टाटा किया। ठेठ बिहारन का सिरफिरा………. सोचा बस इतना ही! बहुत नज़दीक आती जा रही हो, बिछड़ने का इरादा कर लिया क्या…….!