डेहरी ऑन सोन. जिला पुलिस मुख्यालय डेहरी से 7 किलोमीटर दूर दरीहट बाजार से सटे गांव को 1980 के दशक में कंबल उद्योग केन्द्र के रूप में जाना जाता था। जहां पाल समाज के बुनकर अपने घरों में भेड़ के बाल से कंबल तैयार करते है। जिसकी आपूर्ति सरकारी अस्पताल और बिहार सैन्य पुलिस को कि जाती थी। मगर सरकार के उदासीन रवैया के कारण बुनकर समाज के लोग उद्योग धंधा समाप्त होने पर मजबूर होकर दूसरे राज्यों में पलायन करने लगे।
50 वर्षों में तीन पीढ़ी ने हर हाथ को दिया रोजगार, बुनाई कर बेटे को आईएसएम धनबाद से करा रहे पीएचडी
राज नारायण पाल उर्फ धर्मपाल अपने गांव में ही कंबल बुनकर कार्य के जरिए दर्जनों परिवार को रोजगार दे रहे हैं। उनका परिवार लगभग 50 वर्ष से कंबल बुनकर उद्योग धंधा में लगी है। बता दें कि धर्मपाल के दादा स्व रामलाल पाल ने भेड़ पालन और कंबल बुनाई का कार्य शुरू किया था। जिसके बाद धर्मपाल के पिता स्व शिवमंगल पाल कंबल बुनकर उद्योग को आगे बढ़ाते हुए, शीप एंड वूल विवर्स प्राइवेट लिमिटेड के पूर्व अध्यक्ष रहे। जबकि मां ननकी देवी पूर्व मुखिया रही हैं। चाचा अंबिका पाल 70 वर्ष ने बताया कि पिता के समय से ही हम पांच भाई भेड़ के बाल से कंबल बनाने का काम कर रहे हैं वर्तमान समय में परिवार के महिला एवं पुरुष सभी सदस्य कंबल उद्योग से ही जीविका चला रहे हैं। उन्होंने बताया कि गांव के आस-पास के इलाके में पाल और स्वर्णकार समाज के लोग इस धंधे में लगे हुए हैं। जो दरीहट प्राथमिक कंबल बुनकर सहयोग समिति के अध्यक्ष रामवृक्ष पाल के देखरेख में उद्योग धंधा को बढ़ाने का प्रयास कर रहे हैं। मगर सरकार के उदासीन रवैया के कारण कंबल उद्योग विलुप्त होने के कगार पर है। कंबल बुनकर उद्योग के संचालक राज नारायण पाल उर्फ धर्मपाल ने बताया कि उद्योग को चलाने के लिए भेड़ के बाल मुगलसराय, चंदौली, भदोही, आंध्रा और रोहतास से खरीदारी की जाती है। जो ₹25 प्रति केजी होती है।
कंबल बनाने की विधि:
भेड़ के बाल को मशीन से धुनाई की जाती है जिसे धुनाई के बाद गांव में घर-घर बुनकर को सुता बनाने के लिए दिया जाता है, जो बाल से सुता बनाने के लिए 30 रुपए प्रति किलो और एक हफ्ते का समय अवधि लगता है। सुता की मजबूती के लिए इमली के आटा का माडी देने के बाद तान-बनाते हैं। कंबल बनने के बाद मशीन से मिसी एवं धुलाई होता है जिसमें केमिकल डाला जाता है ताकि कंबल की मोटाई और मुलायम किया जा सके।
कंबल की बिक्री:
कंबल बंद करो को कंबल की बिक्री के लिए खुद से घूम घूम कर आर्डर लेना पड़ता है मगर 1980 के दशक में सरकार के द्वारा अस्पताल और होमगार्ड विभाग में सप्लाई लिया जाता था, जिससे ऊनी कंबल की अच्छी खासी मांग होती थी। वही दरीहट और बेलभद्रपुर के कंबल उद्योग से कंबल तैयार होने के बाद नेपाल बंगाल पश्चिमी चंपारण छत्तीसगढ़ और उत्तर प्रदेश जाता था जिससे दूसरे राज्यों में भी यहां के कंबल की गुणवत्ता की काफी सराहना होती थी।
जबकि वर्तमान समय में सरकार के नकारात्मक रवइए और सरकारी मांग बंद होने के बाद उद्योग धंधा 10% में सिमट के रह गया है। कंबल उद्योग में तीन तरह के डिजाइन बनाए जाते हैं।जिसकी कीमत ₹320 है।
कंबल बुनकर अशोक कुमार पाल का कहना है कि सरकारी सहयोग और अनुदान मिले तो कंबल उद्योग को बढ़ावा मिल सकता है,जिससे गांव और प्रवासी मजदूर को रोजगार के लिए गांव से बाहर नहीं जाना होगा। संतोष पाल का कहना है कि कृषि अनुदान के तर्ज पर कंबल उद्योग में भी अनुदान के जरिए ढंग का फर्निशिंग प्लांट हो। रॉ मटेरियल में बदलाव होना चाहिए साथ ही कंबल मे फर्निशिंग नहीं होने की वजह से कंबल के बाल झड़ते और गणित हैं जिससे कंबल की कम मांग है अगर आधुनिक प्रेस मशीन लगे तो इसको सुधारा जा सकता है। वही पूंजी के अभाव और मशीन नहीं होने के कारण उद्योग विलुप्त के कगार पर है।
मनोज पाल का कहना है कि पावर लेन लगाएं जाने के बाद कंबल उद्योग के आधुनिक मशीन के जरिए टोली मुलायम कंबल बेडशीट तैयार किए जा सकते हैं जिससे सरकारी संस्थानों में भी आसानी से निर्यात किया जा सकेगा।
राष्ट्रीय हथकरघा विकास कार्यक्रम के अंतर्गत दरी हट प्राथमिक कंबल बुनकर सहयोग समिति लिमिटेड एक वर्षों से बंद, नहीं मिल रहा बुनकरों को प्रशिक्षण
दरिहट ब्लॉक लेवल क्लस्टर ने सन 2016-19 सत्र के दौरान 5 वेज में 180 कंबल बुनकर को प्रशिक्षित दिया। जिसमें दौरान दरिहट, अकोढ़ीगोला, बराव, भेड़िया, नावाडीह और तेनुवज गांव के बंद करो को बुनाई, रंगाई और डिजाइनिंग का प्रशिक्षण दिया गया।
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200 बुनकर करते थे बुनाई का कार्य
कोरोना संक्रमण के कारण 35-40 प्रवासी मजदूर घर वापस लौटें:- दरिहट गांव के बुनकर मजदूर कई वर्षों से कंबल उद्योग बंद होने के कारण दूसरे राज्य में बुनाई और कढ़ाई का कार्य कर रहे है। कोरोना संक्रमण बढ़ने के कारण गांव वापस आए माया पाल का कहना है कि पूंजी क्या भाव में बुनाई एवं कढ़ाई का काम छोड़ कर खेत में दिहाड़ी पर मजदूरी करनी पड़ रही है। सत्येंद्र पाल का कहना है कि अधिकांश बुनकर के पास बुनाई के लिए फ्रेम लूम तो है मगर बुनाई कार्य करने के लिए सेड नहीं अगर सरकार सेड की व्यवस्था करे तो गांव में ही रोजगार के अवसर मिल सकते हैं। रामप्रवेश पाल का कहना है कि गांव में अपने बलबूते कंबल उद्योग तो चलाया जा रहा है मगर बॉयलर, रिजिंग, कलर मशीन और प्रेस मशीन नहीं होने के कारण कंबल की फिनिशिंग कार्य अधूरा रह जाता है। जिससे कंबल का बाल झड़ता और गड़ता है। सरकार को बुनकरों को अनुदान और सहयोग करना चाहिए ताकि बुनकरों का पलायन रुक सके।