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नई दिल्ली, 10 फरवरी (हि.स.)। संसद भवन परिसर में महाराष्ट्र विधानमंडल के नव निर्वाचित सदस्यों के लिए आयोजित प्रबोधन कार्यक्रम के उद्घाटन सत्र को सम्बोधित करते हुए लोक सभा अध्यक्ष ओम बिरला ने संसद और विधानमंडलों की कार्यवाही में सदस्यों की कम हो रही भागीदारी व राजनीतिक गतिरोध पर चिंता व्यक्त की। उन्होंने विधानमंडलों की बैठकों की संख्या में कमी और उत्पादकता में गिरावट पर भी चिंता जताई।
बिरला ने कहा कि विधानमंडलों में योजनाबद्ध व्यवधान संविधान की लोकतांत्रिक भावना के विपरीत है। उन्होंने विधायकों से आग्रह किया कि वे सदन की कार्यवाही में व्यवधान न डालकर प्रश्नकाल जैसे प्रभावी विधायी साधनों का उपयोग करते हुए जनता के मुद्दे उठाएं।
उन्होंने विधायकों से यह भी कहा कि वे पूरी तैयारी और तथ्यों के साथ सदन में बहस के लिए आएं। बिरला ने कहा कि वे सदन में जितनी अधिक तैयारी के साथ आएंगे, उनकी भागीदारी उतनी ही अधिक प्रभावी होगी तथा सदन की कार्यवाही उतनी ही अधिक उत्पादक होगी। उन्होंने कहा कि सर्वश्रेष्ठ विधायक वही होता है, जो सदन की कार्यवाही में पूर्ण सहभाग करता है और समय-समय पर संसदीय कार्यों को समझकर, अच्छे शोध के साथ तर्कपूर्ण चर्चा करता है।
संविधान और गणतंत्र के 75 वर्ष पूरे होने के संबंध में बिरला ने कहा कि यह गर्व का विषय है कि भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र है और भारत का संविधान सभी को समान अधिकार और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता प्रदान करता है।
बिरला ने महाराष्ट्र विधान सभा की कार्योत्पादकता की प्रशंसा की। उन्होंने कहा कि यह चिंता का विषय है कि विधानमंडलों की बैठकों की संख्या घटती जा रही है परंतु देश की सभी विधानसभाओं में महाराष्ट्र विधान सभा की कार्योत्पादकता प्रशंसनीय है। महाराष्ट्र विधान सभा के गौरवशाली इतिहास का उल्लेख करते हुए बिरला ने कहा कि 1937 में अपनी स्थापना से लेकर आज तक महाराष्ट्र विधानमंडल ने सामाजिक-आर्थिक बदलावों की नींव रखी है। महाराष्ट्र के गौरवशाली इतिहास का उल्लेख करते हुए बिरला ने कहा कि महाराष्ट्र ने स्वतंत्रता आंदोलन, समाज सुधार और अध्यात्म की दिशा में व्यापक योगदान दिया है, जिसके कारण महाराष्ट्र देश के लिए प्रेरणास्रोत हैं।
संसदीय लोकतन्त्र शोध एवं प्रशिक्षण संस्था (प्राइड) द्वारा आयोजित इस प्रबोधन कार्यक्रम में बिरला ने लेजिस्लेटिव ड्राफ्टिंग की दक्षता व संसदीय समितियों की कार्यकुशलता के महत्व को रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि विधि निर्माण के दौरान लेजिसलेटिव ड्राफ्टिंग का विशेष रूप से ध्यान रखना किसी भी विधायक का महत्वपूर्ण दायित्व है क्योंकि लेजिस्लेटिव ड्राफ्टिंग में हुई छोटी सी त्रुटि का जनता पर दीर्घकालिक प्रभाव पड़ता है।
संसदीय समितियों को मिनी पार्लियामेंट बताते हुए बिरला ने कहा कि सभी जनप्रतिनिधियों को समितियों में सक्रिय रूप से भाग लेना चाहिए। उन्होंने बल देकर कहा कि विधायकों को पब्लिक अकाउंट और एस्टिमेट कमेटी में विशेष रूप से सुनिश्चित करना चाहिए कि सरकारी धन का व्यय सामाजिक-आर्थिक परिवर्तन की दिशा में हो ताकि जन प्रतिनिधि जन-कल्याण की दिशा में सकारात्मक परिणाम दे सकें।
प्रबोधन कार्यक्रम के सन्दर्भ में बिरला ने कहा कि इस कार्यक्रम के दौरान उपस्थित सभी विधायकों को संसदीय प्रक्रियाओं, परंपराओं और विभिन्न राज्यों के विधानमंडलों की कार्यविधियों के बारे में गहन जानकारी मिलेगी, जिससे वे अपने संसदीय दायित्वों का बेहतर निर्वहन कर सकेंगे। उन्होंने आगे कहा कि संसदीय कार्यों को समझने और प्रभावी रूप से करने के लिए निरंतर शिक्षा और प्रशिक्षण आवश्यक है। बिरला ने आगे कहा कि इस प्रशिक्षण से सभी जनप्रतिनिधि सामाजिक और आर्थिक परिवर्तन की दिशा में अपना योगदान दे सकेंगे।
बिरला ने आशा व्यक्त की कि सभी जन प्रतिनिधि अपने क्षेत्र के मुद्दों को लेकर सदन में उत्कृष्ट रूप से कार्य करेंगे। बिरला ने जन प्रतिनिधियों का मार्गदर्शन करते हुए कहा कि उनका कार्य सिर्फ क्षेत्र के मुद्दों तक सीमित नहीं है, बल्कि उन्हें अपने राज्य की समस्याओं और चुनौतियों पर भी ध्यान देना है और एक सकारात्मक दृष्टिकोण के साथ देश में आर्थिक और सामाजिक परिवर्तन लाना है।
इस अवसर पर महाराष्ट्र विधान सभा के अध्यक्ष एड. राहुल नार्वेकर ने सभा को सम्बोधित करते हुए लोक सभा अध्यक्ष ओम बिरला का आभार व्यक्त किया। महाराष्ट्र विधान परिषद् के सभापति श्री राम शिंदे ने भी इस अवसर पर उपस्थित विधायकों को संबोधित किया।
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