
ऐ शब्द चुना करो। इतना कहना था कि वो यह ही नहीं समझ पाई कि मैं क्या बोलना चाहता हूं। दोस्त हैं साथ में काम कर लेंगे। मैंने पूछा- कैसे कर लेंगे। इसे प्रोफेशनल डिलेमा क्रिएट करना कहते हैं। लगातार बोलने की आदत में अपना अहित कैसे किया जा सकता है यह साफ दिख रहा था। खैर, दोबारा मिलती तो डांटता, पुचकारता और समझाता। लेकिन इस भीड़ में किसका किससे कौन सा वास्ता। वो रस्ते में ही कही भटक गई। बोलने से पहले शब्द चुनने का मतबल साफ है कि आप अपनी बातों में ही उलझ न जाएं। इस मामले में थोड़ी सी लापरवाही आपको कही का नहीं छोड़ती। कॉर्पोरेट और प्रोफेशनल लाइफ में कम बोलने में ही भलाई होती है। सबकी अपनी समझ होती है और प्रोफेशनल और व्यक्तिगत ईगो।
इस बार पाला पड़ा परेशान और बेचैन आत्मा से। यह लिखने का कतई मतलब नहीं है कि उसे हास्य का पात्र समझा जाए। अगर आप ईश्वर में विश्वास रखते हैं तो यह साफ समझना चाहिए कि आप धरा पर कुछ विशेष काम के लिए पहुंचे हैं। सबकी अपनी जगह है और सबके लिए अपने अपने रास्ते। इस बार मुलाकात हुई किसी विशेष स्थान पर इस मोहतरमा से। मेरे लिए वो जगह अपने जीवन में काफी खास है। मैं उन्हें सिर्फ सुन रहा था और शांत भाव से मनोस्थिति बनाते हुए समझा रहा था। जीवन का उद्देश्य क्या है- सामान्य शब्दों में जिम्मेदारियों का निर्वहन करना। सब करते हैं आपको भी करना होगा। आप इससे भाग नहीं सकते। धन निर्वहन के लिए सबसे जरूरी है। लेकिन गुरू ज्ञान का अपने उपर ही इस्तेमाल होने लगे तो बड़ा अजीब लगता है। दोस्तों की बातें और सुझाव भी सही लगते हैं कि सोच समझ के भलाई किया करो। और मूर्खों की भीड़ इकट्ठा करने से बेहतर है कि दस चालाक दुश्मन पाल लो।
शख्स को काम लायक बनाते बनाते हमारा दम ही फूल गया। सांसे बाहर आने लगी और समझदारी का लेवल धीरे धीरे पागलपन की ओर ले जाने लगा। मोहतरमा का लालच बढता जा रहा था। मुझे इलाज सुझ नहीं रहा था। सलाह देने की अपनी कभी आदत नहीं रही और इससे कोई लाभ न हो तो छोड़ देना चाहिए। श्रीमां के शब्दों में साफ कहा गया है एक बार समझा कर छोड़ दो। बाकि उसकी नियति।
पैसे फ्री में नहीं मिलते और अपनी ब्रांडिंग लेवल से उपर नहीं की जानी चाहिए। बाजार है सब बिकता है लेकिन दाम तो खरीददार ही बेहतर बता सकता है। बेचने वाला लाख प्रभावित कर उसे अपनी जाल में फंसाना चाहे लेकिन अंत में दाम तय होने का आधार काम ही होता है। आपके श्रम की कीमत का अंदाज आप जिस तरीके से लगाना चाहते हैं उसे देखने का हजारों तरीके का नजरिया हो सकता है। और इस धरा पर कोई भी मुर्ख नहीं है।
दुसरों को सुन कर रास्ता बनाने का प्रयास और लगातार उसपर काम करना काफी मुश्किल भरा होता है। लेकिन थी मेरी तरह। जहां हो वहां मुस्कुराती रहे। अलविदा कहना मुझे नहीं आता।
गोविंदा