पलामू. पलामू प्रमंडल सहित झारखंड के कोने कोने में उरांव, चेरो व खरवार जातियों का आगमन बिहार ते रोहतास जिला स्थित कैमूर पर्वत से हुआ है. झारखंड के पलामू व बिहार के रोहतास जिला का खरवार राजवंश मध्य काल से प्रसिद्ध रहा है. बारहवीं सदी से लेकर 16वीं सदी तक इस राजवंश ने बिहार के बड़े भू-भाग पर अपना राज्य स्थापित किया था. इस राजवंश ने प्रताप धवल देव ऐसे दैदीप्यमान नक्षत्र की भांति उदीयमान हुए की उनकी कृति दूर-दूर तक फैल गई.
कनौज के गढ़वाल शासन काल में एक पहले नायक हुए फिर उन्हें महानायक की पदवी प्राप्त हुई. प्रताप धवल ने कई शिलालेखों को अपने शासन काल में लिखवाया. जिसका इतिहास भी गवाह है. इसमें से अधिकांश शिलालेख कैमूर पहाड़ स्थित तुतला भवानी या तुतराही शिलालेख से जानकारी हुई. इसके कुछ अंशों को अंग्रेज काल में पढ़ा गया था. हालांकि यहां के संपूर्ण शिलालेख अभी तक अपठनीय है. इसका मुख्य कारण है कि शिलालेख मंदिर निर्माण काल से जमींदोज हो गया. प्रताप धवल देव का दूसरा शिलालेख फुलवरिया शिलालेख इसकी खोज एक प्रो. किल्हॉर्न ने की थी. किंतु सुनिश्चित स्थान न बता पाने के कारण इसे गुमनाम किया गया था. फुलवरिया शिलालेख की खोज पुन: वर्ष 2010 में ही किया गया. वर्ष 2019 में कैमूर पहाड़ी में उनके दो छोटे शिलालेख की भी खोज की गई. जिसमें पलामू जिला के हुसैनाबाद अनुमंडल स्थित जपला में भी इनकी एक प्रतिमा पर शिलालेख मिला.
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जपला में ही प्रताप धवल देव की माता जी राल्हा देवी द्वारा लिखित शिलालेख इतिहास को दोहराया. इस राजवंश में साहस धवल देव जो चेरो वंशज के राजा के रूप से प्रसिद्ध हुए. उन्होंने महानिरिपित की उपाधि सर्वप्रथम मिली. साहस धवल देव महानायक प्रताव धवल देव के तीसरे पुत्र थे. महाराज साहस धवल देव के पुत्रों-पौत्रों के शिलालेख तथा ताम्रपत्र पहले ही मिल चुके थे. और उन्हें कई विद्वान व शोध कर्ताओं द्वारा पढ़ा गया था. हालांकि इस वंशावली में अभी भी बीच के कुछ राज्यों की कड़ियों की खोज की जा रही है. झारखंड के पलामू जिला के रानिदेवा के बीचों-बीच दसशिशनाथ महादेव के समीप कई बड़े-बड़े पत्थरों पर लिखे गए शिलालेख भी कैमूर पहाड़ी के सीमावर्ती क्षेत्र पलामू को कई इतिहासकारों द्वारा खोज में यह प्रमाणित हुआ है कि कैमूर पहाड़ से ही झारखंड सहित भारत के कोने-कोने में आदिवासियों का बसेरा हुआ है. इस संबंध में बिहार के आकाशवाणी के वरिष्ठ अधिकारी श्यामसुंदर तिवारी ने पलामू का मध्य कालीन चेरो जनजाति राजवंश पर कई पुस्तकें व शोधालेख लिखकर प्रकाशित किया है. पलामू में शेर साह के समय तक एक नया राज्य स्थापित हो चुका था. जो चेरो राज्य जिसका प्रसार वर्तमान पलामू से बाहर भी था. इस मध्य कालीन जनजातीय राजवंश के शासन 275 वर्षों से अधिक समय तक रहा.