बिक्रमगंज (रोहतास) जातीय जनगणना को कुछ इस तरह से तुल दिया जा रहा है जैसे लग रहा है कि बिहार का विकास बिना इसके संभव नहीं हो पायेगा। यह कौन-सा बहुत बड़ा मुद्दा है। जिससे सभी लोगों को रोजगार मिल जायेगा। उक्त बातें बिहार प्रदेश भाजपा कार्यकारिणी के सदस्य प्रो0 बलराम मिश्र ने एक प्रेस-विज्ञप्ति जारी कर कही है। प्रो0 मिश्र ने अपने दिये बयान में कहा है कि यदि यह बहुत आवश्यक और देशहित में होता तो 1951 में जब पहली बार तत्कालीन गृहमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल के सामने इस प्रस्ताव को लाया गया तो उन्होंने यह कहकर इसे खारिज कर दिया था कि इससे देश का ताना-बाना बिगड़ सकता है। यद्यपि की 2011 में देश में कॉंग्रेस की सरकार थी और उस समय भी इस जातीय जनगणना के प्रस्ताव को सरकार के सामने रखा गया, बावजुद इसके इसमें अनेक खामियों को बताते हुए तत्कालीन सरकार की ओर से रिपोर्ट जारी नहीं कि गयी। पुनः एक बार बिहार का एक प्रतिनिधि मंडल माननीय मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जी के नेतृत्व में इस प्रस्ताव को लेकर यशस्वी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी से मिला।
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इस प्रतिनिधि मंडल में शामिल बिहार विधानसभा के प्रतिपक्ष के नेता तेजस्वी यादव ने कहा कि यह जातीय जनगणना राष्ट्रहित और गरीबों के हित में है। मेरा अपना विचार है कि इसमें कौन-सा राष्ट्रहित है और किस तरह से गरीबों के हित में है,इसको परिभाषित किया जाना चाहिए। ऐसे भी सम्मान्य प्रधानमंत्री देश के चहुँमुखी विकास के लिए कृतसंकल्प हैं और सबका साथ, सबका विकास चाहने वाले हैं। बावजूद इसके जातीय जनगणना पर प्रधानमंत्री जी की अपनी राय क्या है, अभी भविष्य के गर्त में है। इस प्रस्ताव पर उनका विचार निश्चित रूप से राष्ट्रहित में होगा,इसमें कतई संदेह नहीं।