इस विधानसभा चुनाव में राजनीतिक संवाद के परंपरागत साधन और तौर-तरीक़े ग़ायब हो जाने से मीडिया लोगों के बीच चुनावी मुद्दों पर परिचर्चा का एक बड़ा विकल्प बनकर उभरा है.
लगभग सभी टीवी चैनल और कई अख़बार भी नगर-नगर डगर–डगर अपनी सार्वजनिक चौपाल लगा रहे हैं. इन्हीं चर्चाओं से स्थानीय चुनावी मुद्दों का अहसास होता है और जनमत की बानगी भी मिलती है.
लगभग सभी टीवी चैनल और कई अख़बार भी नगर-नगर डगर–डगर अपनी सार्वजनिक चौपाल लगा रहे हैं. इन्हीं चर्चाओं से स्थानीय चुनावी मुद्दों का अहसास होता है और जनमत की बानगी भी मिलती है.
इसलिए मैंने गाड़ी नेशनल हाई-वे से बस्ती शहर के लिए मोड दी. यहाँ चाय पर क़रीब 15-20 प्रतिष्ठित नागरिकों से मुलाक़ात हुई. ये वकील, डॉक्टर, अध्यापक और पत्रकार ऐसे लोग हैं, जो दिनभर में तमाम तरह के लोगों से मिलते रहते हैं और थोड़ा गहन चिंतन-मनन करते हैं.