होली का त्योहार आया बच्चों की बहार आ गई। बच्चे तो भाई सारी दुनियां से बेफिक्र होते हैं। उनका हर अंदाज अलग अलग और अनुठा होता है। गांव से ज्यादा वास्ता कभी भी नहीं रहा। लेकिन अपना छोटा सा शहर गांव जैसा ही था। अपने जोश में होली के पहले बदमाशी शुरू। बदमाशी ऐसी की लोग उस रास्ते का इस्तेमाल करने से पहले कई बार सोचते थे। ऐ छपाक और होली के रंग में सभी रंग जाते थे। गुस्सा होते य़ा नाराजगी जताते लेकिन हम सभी अपने काम से बाज आने वाले नहीं थे।
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होलिकादहन जिसे हम अगजा जलाना कहते थे उससे पहले मोहल्ले में कलेक्शन शुरू होता। कलेक्शन भी खास था। इस दौरान मोहल्ले के बच्चे हर घर के बाहर जाते और गोईठे की डिमांड शुरू कर देते। घर के बाहर जाकर दरवाजे के पास जाकर बोलते ”ऐ जजमानी तोहर सोने के कवांड़ी दस गो गोईठा द…..!’। कई घरों से गोईठा मिलता और कई घरों से टका सा जवाब। लेकिन हम मानने वाले कहां थे। फिर आखिर में कुछ मिल ही जाता और घर वालों की नसीहत भी। खैर बचपन तो कब का खत्म हो गया लेकिन वो यादें हमेशा से आपको आपके जमीन से जोड़ कर रखती हैं। वो यादें आपके अंदर से जीवंत बनाए रखती हैं।
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