साल 1957 में कांग्रेस के दिग्गज नेता और तत्कालीन रेल मंत्री जगजीवन राम बड़़ी रेल लाइन की शुरुआत करने रांची पहुंचे थे। उस समय उन्हें एकाएक अपने पुराने साथी और स्वतंत्रता आंदोलन में रोहतास जिले में सक्रिय रहे परमानंद मिश्र की याद आई। वो अपने परम मित्र डॉ मुनीश्वर पाठक के साथ लोहरदग्गा उनके घर पर पहुंच गए। लाव लश्कर को पीछे छोड़ बाबू जगजीवन राम ने घंटों परमानंद मिश्र और उनके परिवार के लोगों के साथ समय बिताया। उस दौरान खांटी भोजपुरी में वो लगातार बात करते रहे। परमानंद मिश्र के बेटे सरोज मिश्र फिलहाल छत्तीसगढ़ के बिलासपुर शहर में रह रहे हैं। यह वाक्या बताते हुए वो काफी भाव विह्ल हो जाते हैं। उन्होंने बताया कि उनके पिताजी परमानंद मिश्र ने 1939 से 1941 बिहार के डेहरी-ऑन-सोन शहर में वैद्य के तौर पर प्रैक्टिस भी की थी। वे बीएचयू से आयुर्वेद के डॉक्टर की उपाधी भी ले चुके थे। उन्होंने बताया कि डेहरी थाना, रेलवे स्टेशन, तिलौथू में सरकारी दफ्तरों को नुक्सान पहुंचाने के बाद अकबरपुर रोहतास में थाना और पोस्टऑफिस को भी परमानंद मिश्र और उनके साथियों ने आग के हवाले कर दिया था। कांग्रेस के नेता बाबू जगजीवन राम, औरंगाबाद के अनुग्रह नारायण सिंह की उनसे काफी अच्छी बनती थी। उनके अकबरपुर रोहतास से फरार होने के बाद फिलहाल छत्तीसगढ़ के जशपुर शहर में रह रहे प्राणशंकर मिश्र ने इस इलाके में आजादी के आंदोलन की कमान संभाली। आजादी के आंदोलन में उनके प्रमुख सहयोगी रहे सरयु प्रसाद अग्रवाल का परिवार अब रोहतास से कही और बस चुका है।
रोहतास जिले के अकबरपुर रोहतास के मूल निवासी परमानंद मिश्र और प्राणशंकर मिश्र लोहरदग्गा और जशपुर बस गएं। उन्होंने बताया कि आजादी के आंदोलन के दौरान प्राणशंकर मिश्र की उम्र 15 साल की थी। लेकिन आजादी के आंदोलन में उन्होंने बढ़चढ़कर हिस्सा लिया। परमानंद मिश्र के रोहतास से फरार होने के बाद उन्होंने इतनी कम उम्र में आंदोलन का नेतृत्व किया। उनके बारे में रोहतास जिले के स्वतंत्रता संग्राम नामक किताब में जानकारी मिलती है।
प्रथम राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद भी थे अभिन्न मित्र
सरोज मिश्र ने बताया कि भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद भी उनके काफी करीबी मित्र थे। साल 1954 में वे रांची अखिल भारतीय आदिम जाति सेवा संस्थान के एक कार्यक्रम के दौरान पहुंचे थे। इसी दौरान जब उन्हें परमानंद मिश्र की जानकारी मिली तो वे लोहरदग्गा में उनके घर पहुंच गए। घर पर देश के तत्कालीन राष्ट्रपति के स्वागत के लिए मिठाईंया रखी हुई थी। लेकिन उन्होंने खुद को दमा का मरीज बताते हुए मकई या चने के भुट्टा खाने की डिमांड कर दी।
गोविंदा मिश्रा, मैनेजिंग एडिटर