कोरोना काल के कारण लंबे समय से छोटे छोटे बच्चों की क्लासेज नहीं चल पा रही थी। पूरे साल स्कूल से दूर रहने के दौरान उनकी पढ़ाई से तो लगभग कुट्टी ही हो गई। लेकिन स्कूलों ने अपने स्तर से परीक्षा लेने का प्रयास किया। घर पर ही कॉपी भेजवा दी गई। लेकिन रिजल्ट मिलने का इंतजार किसे नहीं है। भले ही सरकार ने कोरोना के बढ़ते मामलों को देखते हुए शैक्षणिक संस्थानों को बंद करवा दिया हो। लेकिन प्राइवेट स्कूलों ने क्लासेज को सही तरीके से संचालित करने के लिए पूरी तैयारी कर ली थी। फिलहाल 11 अप्रैल तक स्कूल पूरी तरह बंद है। लेकिन उससे पहले स्कूल पहुंचे छोटे छोटे बच्चों के हाथ में रिजल्ट मिली तो सब का चेहरा देखने लायक था।
प्राइवेट स्कूल का संचालन करने वाले अरविंद कुमार का कहना है कि शिक्षा के क्षेत्र में लंबे समय से काम करने वाले सभी संचालक पूरी तरह जवाबदेह हैं। सरकार के हर गाइडलाइन्य का पूरी तरह पालन भी किया। लेकिन प्रदेश सरकार ने निजी विद्यालयों के आर्थिक नुकसान की भरपायी करने या राहत पहुंचाने का प्रयास नहीं किया। अरविंद का कहना है कि जैसे तैसे पिछला साल निकल गया। लेकिन इस साल फिर से लॉकडाउन ने छोटे स्कूलों की हालत काफी परेशानी वाली कर दी है। 30 मार्च को उनके स्कूल में जब बच्चे मास्क लगाकर अपना रिजल्ट लेने को पहुंचे तो उनका उत्साह देखने वाला था। बच्चों ने अपने शिक्षकों को पहचाना और रिजल्ट लेकर चेहरे पर एक प्यारी मुस्कान के साथ वापस लौटे। लौटने से पहले अपने गुरुजनों से आशीर्वाद लेना नहीं भूले।
डेहरी के संबिका कॉलोनी में श्री अरविंद एकेडमी और प्ले स्कूल का संचालन करने वाले भारती का कहना है कि सरकार के गाइडलाइन्स के अनुसार सारी तैयारी पूरी कर ली गई थी। लेकिन फिर से शैक्षणिक संस्थानों को बंद करने के निर्णय से उनके लिए परेशानी खड़ी हो गई है। भारती ने कहा कि प्राइवेट स्कूल एसोशियशन लगातार शिक्षक समुदाय और संचालकों की समस्या को तत्परता के साथ सबके सामने रख रहा है। भारती का कहना है कि एक स्कूल से बच्चों की शिक्षा दीक्षा चलती है. उनपर उनके जीवन को संवारने का दायित्व है। लेकिन इसके अलावा बहुत सारे लोगों की जीविका को चलाने का भार भी स्कूलों पर है।
अवनीश मेहरा, डेहरी ऑन सोन