सोन नदी के किनारे का शहर डेहरी। राजनीति का प्रयोगशाला और दिग्गजों का जुटान नई बात नहीं। राजनीति और राजनीतिक दलों के नेताओं के जुबान पर इन दिनों मौसमी नेताओं की चर्चा है। पूर्व विधायकों और भावी प्रत्याशियों की राजनीतिक दौड़ कभी इधर की रहती है तो कभी उधर की। चर्चा है कि इन दिनों वो काफी साइलेंट मोड में हैं। चुकी विधानसभा चुनाव काफी दूर है तो लोगों से भी दूरी बना रखी है। माना जा रहा है कि फिलहाल इन नेताओं के पास रसमलाई खिलाने के लिए भी पैसे नहीं जुट रहे हैं। छोटे से शहर में खबनवीसों की फौज से बचने का प्रयास ये नेताजी कर रहे हैं। नेताजी किस दल में रहते हैं और कब कहां जाते हैं किसी को नहीं पता रहता है। फिलहाल एक नीतीश का साथ लंबी लड़ाई लड़ने के बाद उन्हीं का झंडा थामे घूम रहे हैं। तो दूसरे नौ घाट का पानी पीने वाले भावी प्रत्याशी भी जनसंवाद के मोह से बाहर नहीं आ पा रहे हैं। राम का नाम लेते लेते उन्होंने जेपी, लोहिया और कपूर्री की राजनीति करने की ठान ली।
शहर छोटा है और अपने यहां के लोग तरह तरह के सवाल पूछने से गुरेज नहीं करते। विरोध और पक्ष के बीच बार बार याद आ रहा है कि उन्होंने धर्मांधता से तौबा कर लिया है और शायद भारत में नए तरह की राजनीति को आगे बढ़ाने के इरादे से काम कर रहे हैं। खैर नेताजी ने मौसम वैज्ञानिक होना पूरी तरह ठान लिया है। पूर्व विधायकों की लिस्ट से कोसों दूर नेताजी राजनीतिक तौर पर कई बार स्टेबल नहीं माने जाने वाले एक दिग्गज के साथ खड़े हैं। आशा है कि उनके सपनों को हर बार चार चांद लगाने में आम लोग पीछे नहीं हटेंगे।
(यह व्यंग्य न्यूज वेबसाइट के मैनेजिंग एडिटर गोविंदा मिश्रा ने लिखा है. इसका उद्देश्य केवल मनोरंजन माना जाए. )