डेहरी आन सोन। आधुनिक भारत के सबसे बड़े निर्माण कर्ता थे बाबा भीमराव अम्बेडकर।अम्बेडकर एक ऐसी राजनीतिक व्यवस्था के हिमायती थे, जिसमें सभी को समान राजनीतिक अवसर मिलें।जिसमें धर्म, जाति, रंग तथा लिंग आदि के आधार पर भेदभाव न किया जाए। उनका यह राजनीतिक दर्शन व्यक्ति और समाज के परस्पर संबंधों पर बल देता है।उक्त बातें डॉ अम्बेडकर की 130वीं जयंती पर अकोढी गोला स्थित बाबा साहेब डॉ भीम राव अम्बेडकर की आदम कद प्रतिमा पर माल्यार्पण करने के बाद अकोढी गोला जिला परिषद प्रतिनिधि व ज़िले के सबसे बड़े समाजसेवी राजीव रंजन सिंह उर्फ़ सोनू सिंह ने कहीँ।
उन्होंने कहा कि अम्बेडकर को दृढ़ विश्वास था कि जब तक आर्थिक और सामाजिक विषमता समाप्त नहीं होगी, तब तक जनतंत्र की स्थापना अपने वास्तविक स्वरूप को ग्रहण नहीं कर सकेगी।वे व्यक्ति की श्रेष्ठता पर बल देते हुए सत्ता के परिवर्तन को साधन मानते थे । वे कहते थे कि कुछ संवैधानिक अधिकार देने मात्र से जनतंत्र की नींव पक्की नहीं होती। उनकी जनतांत्रिक व्यवस्था की कल्पना में ‘नैतिकता’ और ‘सामाजिकता’ का समावेश है । दरअसल आज राजनीति में खींचा-तानी इतनी बढ़ गई है कि राजनैतिक नैतिकता के मूल्य गायब से हो गए हैं। हर राजनीतिक दल वोट बैंक को अपनी तरफ करने के लिए राजनीतिक नैतिकता एवं सामाजिकता की दुहाई देते हैं, लेकिन सत्ता प्राप्ति के पश्चात इन सिद्धांतों को अमल में नहीं लाते हैं।
उन्होंने कहा कि अम्बेडकर समानता को लेकर काफी प्रतिबद्ध थे। उनका मानना था कि समानता का अधिकार धर्म और जाति से ऊपर होना चाहिए। प्रत्येक व्यक्ति को विकास के समान अवसर उपलब्ध कराना किसी भी समाज की प्रथम और अंतिम नैतिक जिम्मेदारी होनी चाहिए। डॉ। अम्बेडकर के शिक्षा संबंधित विचार आज शिक्षा प्रणाली के आदर्श रूप माने जाते हैं। उन्हीं के विचारों का प्रभाव है कि आज संविधान में शिक्षा के प्रसार में जातिगत, भौगोलिक व आर्थिक असमानताएँ बाधक न बन सके, इसके लिए मूलअधिकार के अनुच्छेद 21-A के तहत शिक्षा के अधिकार का प्रावधान किया गया है। सिंह ने कहा कि पहले मजदूरों से प्रतिदिन 12-14 घंटों तक काम लिया जाता था। इनके प्रयासों से प्रतिदिन आठ घंटे काम करने का नियम पारित हुआ। इस मौके पर उत्तम सिंह, रंगू सिंह, रमेश सिंह, सुदामा पासवान, दशरथ पासवान, बिपिन बिहारी गुप्ता सहित कई अन्य उपस्थित थे।