डिजिटल टीम, डेहरी। बिहार सहित पूरे देश की जेलों में आपदा की इस परिस्थिति में बड़ी संख्या में विचाराधीन और सजायाफ्ता कैदी बंद है। इनकी रिहाई के लिए देश की कई प्रदेश सरकार लगातार घोषणा कर रही है। मानवाधिकार संगठनों का मानना है कि वैसे कैदियों की रिहाई सुनिश्चित करनी चाहिए जिन्हें कई बीमारियां हैं और आचरण जेल नियमालवी के साथ रहा हो। इसके लिए सरकार की तरफ से घोषणा भी की जा रही है। इस संबंध में बिहार के रोहतास जिले के रहने वाले मानवाधिकार कार्यकर्ता (Human Rights Worker) और बंदी अधिकार आंदोलन से जुड़े सामाजिक कार्यकर्ता संतोष उपाध्याय ने पटना हाईकोर्ट में बुधवार को एक पीआईएल (PIL in Patna High Court) दाखिल की है। जिसमें बंदियों की रिहाई सुनिश्चित करने की मांग की गई है।
उपाध्याय ने मीडियाकर्मियों को गुरुवार को बताया कि उन्होंने पटना हाईकोर्ट के सीनियर वकील दीपक कुमार सिंह के माध्यम से एक जनहित याचिका दायर की है। उन्होंने कहा है कि कोरोना संकट के कारण लॉकडाउन लागू है। इस दौरान राज्य में कोर्ट बंद है और फिजिकल और वर्चुअल दोनों प्रकार से सुनवाई नहीं होना संभव नहीं है। इस कारण न्याय कैदियों तक पहुंचना संभव नहीं है। सिंगल बेंच कोर्ट में दायर इस याचिका में बिहार सरकार के प्रधान सचिव को मुख्य पक्ष बनाया गया है।
उन्होंने बताया कि जेल में क्षमता से अधिक कैदी बंद है। इस कारण सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करना पूरी तरह संभव नहीं है। इसके अलावा संक्रमण से रोकने के लिए जरुरी कदम उठाए जा रहे हैं। लेकिन वो नाकाफी साबित हो सकता है। उन्होंने बताया कि यूपी के एक जेल में निरुद्ध 17 कैदी 45 दिन की अंतरिम जमानत पर रिहा हो चुके हैं। इस तरह का निर्णय सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के आदेश पर लिया गया था। यूपी में जेल में निरुद्ध विचाराधीन बंदियों को अंतरिम जमानत पर रिहा करने की जिम्मेदारी सर्वोच्च न्यायालय एवं उच्च न्यायालय ने राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण को सौंपी है। जिसके अनुपालन में चित्रकुट के जिला विधिक अध्यक्ष जनपद न्यायाधीश रवींद्रनाथ दुबे ने विचाराधीन बंदियों और सजायाफ्ता कैदियों को रिहा करने का आदेश दिया है। जिसके तहत सिविल जज जू।डि। प्रशांत मौर्या द्वारा चित्रकूट के रगौली जेल से करीब 17 कैदी 45 दिन की अंतरिम जमानत पर रिहा किये गए हैं।
इस दौरान वैसे विचाराधीन बंदी सात साल से कम सजा वाले अपराध में बंद हैं, उन्हें 45 दिन की अंतरिम जमानत पर छोड़ा गया है। इसमें उन कैदियों को प्राथमिकता दी गयी है, जो 7 साल सजा वाले अपराध में बंद हैं या पूर्व में पैरोल पर छूटने के दौरान उनका आचरण अच्छा रहा है। 65 या इससे अधिक उम्र वालों की भी रिहाई की गई है। इस दायरे में गर्भवती या गंभीर रोगों से ग्रसित महिलाएं भी हैं। इसके अलावा बिहार सहित अन्य राज्यों की जेलों में बंद कैदियों को कोरोना की वैक्सीन भी लगाई जा रही है। ताकि वैश्विक महामारी से उनकी सुरक्षा सुनिश्चित हो सके। उन्होंने मांग की है कि हर जिले में विचाराधीन कैदी रिव्यू कमेटी की मीटिंग अविलंब हो। जिससे रिहा हो सकने वाले कैदियों के आवेदन पर त्नवरित विचार और कार्रवाई हो सके।