देवा कुमार,
डिजिटल डेस्क
बिहार में सबसे ज्यादा बेरोजगारी है। क्योकि इस प्रदेश में न तो फैक्ट्री है न कोई रोजगार धंधा। युवा वर्ग को 10 हजार रुपय की भी नहीं नौकरी मिल रही। ना ही नीतीश सरकार बड़े पैमाने पर भर्तियां निकाल रही है। सरकारी नौकरी तो दूर की कौड़ी रही। प्राइवेट सेक्टर में भी कही से नौकरियां नहीं मिल रही। नीतीश सरकार लाख दावें करे लेकिन शिक्षित बिहार का सपना साकार करने की बात करने वाले सुबे के मुखिया ने रोजगार के विकल्प खड़ा करने में विफलता पाई। बिहार को आज भी पिछड़ा प्रदेश माना जाता है। इसी बिहार की धरती पर बड़े उद्योग समुह लंबे समय तक प्रगति करते रहे। डालमियानगर जैसी फैक्ट्री में चीनी, डालडा सहित कई प्रोडक्ट तैयार होते रहे। आज यह प्रदेश सिर्फ कामगारों की सप्लाई पूरे देश और दुनिया के हर कोनों में कर रहा है। चाणक्य और चंद्रगुप्त की धरती वाले इस भूमि को आज भी अपनी सही पहचान नहीं मिल सकी। लोकतंत्र की पूरे देश को पाठ पढ़ाने वाले इस प्रदेश में आध्यात्मिक, धार्मिक औऱ बड़े बड़े राजनेता ने देश को पहचान दिलाने का काम किया। लेकिन वर्तमान पिछड़ापन खोंखले राजनीति को दिखाता है। जिसमें इनका आम जन से सरोकार नहीं रहा।
राजनीतिक दलों को सिर्फ वोट चाहिए। उसके बाद जनता की सुनने वाला कोई नहीं है। इस कारण प्रदेश से युवाओं का लगातार पलायन हो रहा है। आपराधिक घटनाएं बढ़ने के कारण एक तरह असुरक्षा का माहौल है। राजनीतिक दलों के नेता नीतीश कुमार पर शराबबंदी के मामले में भी तंज कसते हैं। कहते हैं कि युवाओं के रोजगार के लिए एक अलग विकल्प तैयार हो गया।
अवसर की है कमी
समाज के हर वर्ग के लोगों का पलायन पूरी दुनिया में हो रही है। माता पिता चाहे किसी तबके के हो चाहते हैं कि उनका बच्चा अच्छी शिक्षा ग्रहण करे और नौकरी कर बेहतर जीवन जी सके। लेकिन प्रदेश में इसका कोई भी विकल्प नहीं मिलता। उद्योग समुह को अवसर देकर प्रदेश सरकार को पलायन रोकने का प्रयास करना चाहिए था। साथ ही आपराधिक घटनाओं पर लगाम लगानी चाहिए थी। जिससे बड़े उद्योगपति बिहार में निवेश करने के लिए इच्छूक हो सके।